Taj Mahal News: जानिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा ताजमहल के बाईस कमरों को खोलने के विवाद पर ?
ताजमहल ( TajMahal) के कमरों को खुलवाने के लिय डाली गई याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने कहा, "इस तरह की बहसें अदालत के लिए नहीं, बल्कि ड्राइंग रूम के लिए होती हैं।"
Taj Mahal News: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ पीठ ने गुरुवार को एक याचिकाकर्ता को जमकर फटकार लगाई है। यह याचिकाकर्ता वही है जिसने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को ताजमहल परिसर के अंदर 20 से अधिक बंद कमरों को खोलने के निर्देश दिए जाने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता भाजपा की अयोध्या इकाई के मीडिया प्रभारी डॉ. रजनीश सिंह हैं, जिन्होंने दावा किया था कि ताजमहल के बारे में झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है और वे सच्चाई का पता लगाने के लिए पास के कमरों में जाकर रिसर्च करना चाहते हैं।
याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने कहा, "इस तरह की बहसें अदालत के लिए नहीं, बल्कि ड्राइंग रूम के लिए होती हैं।" बता दें कि इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था कि अदालत को एक समिति नियुक्त करनी चाहिए और देश के नागरिकों को ताजमहल के बारे में सच्चाई जानने की जरूरत है। वहीं याचिकाकर्ता ने कहा कि "मैं यह स्पष्ट करता हूं कि मेरी मुख्य चिंता बंद कमरों को लेकर है और हम सभी को पता होना चाहिए कि उन कमरों के पीछे क्या है। कृपया मुझे उन कमरों में जाने और रिसर्च करने की अनुमति दें।"
इस पर सीजेआई रमना पीठ ने कहा कि "कल आप आएंगे और क्या हमें इस अदालत के माननीय न्यायाधीशों के चैंबर में जाने के लिए कहेंगे?" वहीं पीठ ने आगे पूछा कि क्या यह अदालत को तय करना है कि ऐतिहासिक स्मारक का निर्माण किसने किया था। पीठ ने कहा, "आप मानते हैं कि संरचना (ताजमहल) शाहजहां ने नहीं बनाई थी? क्या हम यहां कोई फैसला सुनाने आए हैं? कृपया हमें उन ऐतिहासिक तथ्यों पर न ले जाएं जिन पर आप विश्वास करते हैं।" साथ ही पीठ ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए यह भी कहा कि अधिकारियों ने उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और अगर वह नाराज हैं तो उन्हें आदेशों को चुनौती देनी चाहिए। तथा अदालत ने उनसे पूछा कि क्या न्यायाधीशों के पास ऐसे मुद्दों को निर्धारित करने के लिए इस तरह के कौशल हैं।
जिसके बाद याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्हें बंद कमरों के बारे में जानने का अधिकार है तथा सूचना प्राप्त करने की आजादी का हनन किया जा रहा है। इस बात पर, अदालत ने सवाल किया कि किस अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है और सूचना का अधिकार कैसे काम करता है, आपको जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है और अधिनियम के तहत आपके पास अनेक उपाय हैं।
पीठ ने पूछा, कि “क्या एक विशेष अध्ययन कराने के लिए यह सही है?" याचिका का विरोध करते हुए, उत्तर प्रदेश राज्य ने मामले के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के बारे में प्रारंभिक आपत्ति उठाई और अदालत को यह भी सूचित किया कि इस मुद्दे पर आगरा अदालत के समक्ष पहले से ही एक मुकदमा लंबित चल रहा है। याचिकाकर्ता के वकील ने कुछ समय के लिए सूचना के अधिकार पर कुछ निर्णयों का हवाला देने का अनुरोध किया। परंतु इस अनुरोध की पालना करने से कोर्ट ने मना कर दिया और दोपहर 2 बजे लंच के बाद मामला पोस्ट कर दिया। पीठ ने कहा, "आपके द्वारा दायर याचिका कई दिनों से मीडिया में घूम रही है और अब आप ऐसा कर रहे हैं? हम दोपहर के भोजन के बाद स्थगित नहीं करेंगे और सुनवाई नहीं करेंगे।"
आपको बता दें कि इस याचिका के बारे में रिट याचिका, भाजपा की अयोध्या इकाई के मीडिया प्रभारी डॉ. रजनीश सिंह ने दायर की थी। जिसमें सरकार को 'ताजमहल के वास्तविक इतिहास' के अध्ययन और प्रकाशन के लिए एक फेक्ट-फाइंडिग कमेटी का गठन करने और इसके आसपास के विवाद को खत्म करने का निर्देश देने की मांग रखी गई थी। एडवोकेट रुद्र विक्रम सिंह के माध्यम से दायर की गई इस याचिका में आगे कहा गया है कि समूहों ने दावा किया है कि ताजमहल एक पुराना शिव मंदिर है जिसे 'तेजो महालय' के नाम से जाना जाता था और इसे कई इतिहासकारों ने भी माना है।