चीन के कर्ज में फंसे भारत के पड़ोसी देश और कोरॉना की वज़ह से फिसलती अर्थव्यवस्था
श्रीलंका में विपक्ष के नेता और अर्थशास्त्री हर्षा डी सिल्वा ने संसद सत्र के दौरान कहा कि “ हमारा देश पूरी तरह से दिवालिया हो जाएगा , आईटी सिस्टम बंद हो जाएंगे। यहां तक कि हम गूगल मैप का भी इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे, क्योंकि हम इसके लिए पैसे देने की स्थिति में नहीं होंगे। “आईए जानते हैं हर्षा डी सिल्वा के इस बयान का क्या तात्पर्य है ?
यह बात किसी से छुपी नहीं है कि वर्ल्ड बैंक ने पूरे विश्व में जितना कर्ज़ दिया है , उससे कहीं ज्यादा कर्ज चीन पूरे विश्व में अलग-अलग देशों को बांट चुका है। इसके पीछे की मंशा भी साफ है कि चीन पूरे विश्व को अपने कर्ज के जाल में फंसाना चाहता है। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए कर्ज़ रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है। चीन ने पिछले 20 वर्षों में अपने निर्यात और घरेलू उत्पाद दर से जो पूंजी प्राप्त की है , उसे B.R.I अर्थात् बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में निवेश कर भविष्य में अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ बनाने की ओर देख रहा है । बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत् चीन , यूरोप , अफ्रिका और एशिया में सड़कमार्ग व जलमार्ग से अपने व्यापार को जोड़ना चाहता है , इस परियोजना को पूरा करने के लिए उसने कई विकासशील देशों में बुनियादी ढांचा पूरा करने के लिए उन देशों को काफी कर्ज दिया , लेकिन वर्तमान में पाकिस्तान , श्रीलंका, मालदीव अब कर्ज चुकाने में सक्षम नजर नहीं आ रहे हैं। अगर भविष्य भी यही रहा और ये कर्ज नहीं चुका पाए तो चीन को आर्थिक तौर पर बहुत नुकसान सहना पड़ेगा।
चीन के कर्ज़ का विशाल दायरा
एशिया के तीन देश- पाकिस्तान, श्रीलंका और मालदीव पर चीन का बेशुमार कर्ज़ हैं , पिछले साल श्रीलंका को एक अरब डॉलर से ज़्यादा कर्ज़ के कारण चीन को हम्बनटोटा पोर्ट सौंपना पड़ा , इसी प्रकार पाकिस्तान को भी अपना करांची व ग्वादर बंदरगाह चीन के हाथों सौंपना पड़ा।
श्रीलंका के ऊपर कर्ज का बोझ
चीन अब तक श्रीलंका को 5 अरब डॉलर से अधिक कर्ज दे चुका है। पिछले साल श्रीलंका आंतरिक वित्तीय संकट से उबरने के लिए चीन से और एक अरब डॉलर का कर्ज ले चुका है। अगले साल तक देश को घरेलू और विदेशी कर्ज़ के भुगतान के लिए करीब 7.3 अरब डॉलर की जरूरत है। श्रीलंका को इसी साल जनवरी में 50 करोड़ डॉलर के इंटरनेशनल सॉवरेन बॉन्ड का भुगतान करना है। बता दें, नवंबर तक देश में विदेशी मुद्रा का भंडार महज 1.6 अरब डॉलर था।
आखिरकार श्रीलंका क्यों नहीं चुका पा रहा है यह कर्ज़
कोरोना संकट के कारण श्रीलंका में टूरिज्म बुरी तरह प्रभावित हुआ, जिसने श्रीलंका की कमर तोड़ने का काम किया है। चूंकि श्रीलंका की कुल जीडीपी में पर्यटन का हिस्सा 10 प्रतिशत है, लेकिन महामारी के कारण यह टूरिज्म सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। जिसके चलते ट्रैवल एंड टूरिज्म सेक्टर से 200,000 अधिक लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा और सरकारी खर्च में बढ़ोतरी और टैक्स में कटौती ने देश की अर्थव्यवस्था को नीचे गिरा दिया। कोरोना महामारी के कारण श्रीलंका में विदेशी मुद्रा भंडार एक दशक के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया था , जिस कारण सरकार को घरेलू कर्ज और विदेशी बॉन्ड्स को चुकाने के लिए पैसे भी छापने पड़े थे। श्रीलंका इस समय वित्तीय संकट का सामना कर रहा है। श्रीलंका में महंगाई अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है, खाद्य पदार्थों की कीमतों में काफ़ी तेजी आ गईं है और सरकारी खजाना भी तेजी से खाली हो रहा है। कुछ रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया जा रहा है कि श्रीलंका इस साल दिवालिया हो सकता है।
पाकिस्तान पर कर्ज का बोझ
पाकिस्तान , चीन से अब तक 100 करोड़ डॉलर से ज्यादा का कर्ज ले चुका है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश को एक बड़े कर्ज में डूबो दिया है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इतनी नीचे जा चुकी है कि पाकिस्तान के पास चीन के द्वारा लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए भी पैसे नहीं हैं। पाकिस्तान ने केवल चीन ही नहीं बल्कि यूएई , सऊदी अरब, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी भारी मात्रा में कर्ज लिया हुआ है। पाकिस्तान पर 50 हजार अरब से भी ज्यादा का कर्ज हो चुका है। रिपोर्ट में बताया गया है कि एक साल पहले हर एक पाकिस्तानी पर लगभग 75 हजार रुपये का कर्ज हो गया था।
मालदीव पर चीन के कर्ज का बोझ
भारत का पड़ोसी देश मालदीव भी चीन के कर्ज में फंस चुका है। मालदीव पर चीन द्वारा दिए गए कर्ज की मात्रा उसकी अर्थव्यवस्था के बराबर है। मालदीव को डर है कि चीन कर्ज के बदले श्रीलंका की तरह ही उससे भी काफी कुछ हड़पने की कोशिश कर सकता है। बता दें कि मालदीव पर चीन का 3.1 अरब डॉलर का कर्ज है, जबकि मालदीव की पूरी अर्थव्यवस्था करीब 4.9 अरब डॉलर की है। मालदीव ने साल 2018 में अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए यह कर्ज लिया था। मालदीव की खराब स्थिति का भी एक प्रमुख कारण पर्यटन पर कोरॉना का प्रभाव है, क्योंकि मालदीव की अर्थव्यवस्था पूरी तरह पर्यटन उद्योग पर निर्भर है। यहां बड़ी संख्या में विदेशी सैलानी आते हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से यहां का पर्यटन उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है और ऐसे में इसका सीधा असर इसके सरकारी खजाने पर पड़ा है।