पैट्रोल में 20% तक होगी एथेनॉल की मिलावट, 2025 तक सरकार की ये है योजना
पिछले दो दशकों से भारत लगातार एक ऐसे परिवेश के निर्माण में लगा है, जहां ज्यादा से ज्यादा एथेनॉल युक्त पेट्रोल वाले ईंधन का इस्तेमाल दोपहिया और चारपहिया वाहन में हो। साल 2001 में सरकार ने पहली बार पेट्रोल में 5% एथेनॉल मिलाने का निर्णय लिया था।
राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति लंबे समय से चर्चा में है। बुधवार को केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018 में संशोधन को मंजूरी दे दी जिसके बाद ईंधन कंपनियां को पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिलाना पड़ेगा। बता दें कि इस नीति के लागू होने की संभावना 1 अप्रैल 2023 से है।
भारत में एथेनॉल युक्त ईंधन का इतिहास
पिछले दो दशकों से भारत लगातार एक ऐसे परिवेश के निर्माण में लगा है, जहां ज्यादा से ज्यादा एथेनॉल युक्त पेट्रोल वाले ईंधन का इस्तेमाल दोपहिया और चारपहिया वाहन में हो। साल 2001 में सरकार ने पहली बार पेट्रोल में 5% एथेनॉल मिलाने का निर्णय लिया किंतु शुरू में ये कुछ राज्यों तक ही सीमित था, यहां तक कि 2013-14 तक पूरे भारत में एथेनॉल की मिलावट का स्तर 1.5% से ऊपर नहीं गया।
साल 2015 में सरकार ने E5 ईंधन नीति के जरिए पूरे भारत में 5% एथेनॉल की पेट्रोल में मिलावट को सुनिश्चित किया था, बाद में 2019 में E10 ईंधन नीति को लाया गया। बता दें कि सरकार ने न सिर्फ पेट्रोल में 20% एथेनॉल की बात कही है, बल्कि 2030 तक डीजल में भी 5% जैव डीजल के मिलावट का लक्ष्य रखा है।
इंजन पर इस मिलावट का असर
मूल रूप से E0 के लिए बनाए गए चारपहिया वाहन, जिन्हें E10 के लिए मोडिफाई किया जाता है, उनमें E20 ईंधन के इस्तेमाल से 6-7% तक ईंधन दक्षता में कमी आ जाती है। वहीं ऐसे दोपहिया वाहन की इंजन दक्षता में 3-4% तक कमी आ जाती है। इस पर कार निर्माता कंपनियों का कहना है कि कुछ बदलाव को अगर इंजन में लाया जाए तो इंजन दक्षता में आई कमी को कम किया जा सकता है।
एथेनॉल युक्त पेट्रोल का अंतराष्ट्रीय अनुभव
‘फ्लेक्स फ्यूल इंजन टेक्नोलॉजी’ यानी एक ऐसी वाहन टेक्नोलॉजी जिसमें वाहन पूर्णत एथेनॉल से चलते हैं, 2019 में ब्राजील में 80% ऐसे वाहनों का विक्रय हुआ। ऐसे फ्लेक्स वाहनों की कीमत आम वाहन की तुलना में ₹17000 से लेकर ₹25000 तक ज्यादा होती हैं।
अगर एथेनॉल ईंधन के वैश्विक उत्पादन की बात करें तो वो 2019 में 110 बिलियन लीटर पहुंच चुका है और सालाना 4% की रफ्तार से बढ़ रहा है।
एथेनॉल युक्त पेट्रोल का पर्यावरण पर असर
चूंकि इथेनॉल पेट्रोल की तुलना में ज्यादा दक्षता के साथ जलता है, इसलिए इससे कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं होता है। हालांकि, भारत में किए गए परीक्षणों से पता चला है कि इससे नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन में कोई कमी नहीं आई है, जो प्रमुख प्रदूषकों में से एक है।
इसके अतिरिक्त एथेनॉल उत्पादन के लिए हमें बहुत बड़े भूभाग पर मक्के की खेती करनी होगी, या फिर अगर हम गन्ने से एथेनॉल उत्पादन की ओर बढते हैं तो 1 लीटर एथेनॉल के लिए 2860 लीटर पानी खर्च करना होगा। परंतु आने वाले समय में इतने पानी का उपभोग कर पाना भी एक अलग चुनौती है।