‘भारत विरोधी’ गतिविधियों के आरोप में कश्मीरी पत्रकार सज्जाद गुल गिरफ्तार, UAPA के मामलों में हुई बढ़ोतरी
अमेरिकी मीडिया ने भी सज्जाद गुल की गिरफ्तारी को निदंनीय माना है और कड़ी आलोचना कर उनकी रिहाई कि मांग की है। वहीं कश्मीर प्रेस क्लब ने भारत सरकार को चिट्ठी लिखकर अपना दुःख जताया है।
5 जनवरी, बुधवार को सुबह करीब 10 बजे जम्मू कश्मीर पुलिस ने उत्तर कश्मीर के बांदीपोरा जिले से एक फ्रीलांस जॉर्नलिस्ट सज्जाद गुल को उनके घर से डिटेन कर लिया था। पुलिस के मुताबिक कुछ दिन पहले उनके भड़काऊ बयान तथा देश-विरोधी नारों का वीडियो उनके अपने ट्विटर अकाउंट से अपलोड हुए थे। जिसके बाद पुलिस ने उन्हें UAPA के तहत गिरफ्तार कर लिया है।
जम्मू कश्मीर के बांदीपोरा जिले के शाहगुण्ड गांव निवासी सज्जाद गुल सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ जम्मू कश्मीर से पत्रकारिता में बी. ए. फिर फिर एम. ए. कर चुके हैं। एम. ए के बाद गुल ने पत्रकारिता को अपना पेशा बना लिया। अपनी पत्रकारिता के कारण वह हमेशा विवाद में रहे हैं। यह पहला मौका नहीं है, जब सज्जाद को गिरफ्तार किया गया। इससे पहले सेना के फर्जी मुठभेड़ में मारे गए बेकसूर कश्मीरियों के लिए आवाज़ उठाने के नाम पर भी उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया गया था।
इस मामले में अमेरिकी मीडिया ने भी सज्जाद गुल की गिरफ्तारी को निदंनीय माना है और कड़ी आलोचना कर उनकी रिहाई कि मांग की है। वहीं कश्मीर प्रेस क्लब ने भारत सरकार को चिट्ठी लिखकर अपना दुःख जताया है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया है कि पत्रकारिता को स्वतंत्र रखा जाए और किसी भी पत्रकार को पुलिस के माध्यम से प्रताड़ित न किया जाए।
बता दें कि पत्रकारों के साथ इस तरह का व्यवहार कोई नया नहीं है। कोरोनाकाल में रिपोर्टिंग करने वाले कई पत्रकारों पर फर्ज़ी मुकदमा दर्ज कर जेल भी भेजा गया था। वहीं कुछ दिन पहले यूपी में एक पीड़ित महिला से रिश्वत मांगने के मामले में मज़बूत साक्ष्यों व दोनों पक्षों के बयान के आधार पर खबर चलाने वाले पत्रकार विवेक गुप्ता के खिलाफ महिला आयोग की सदस्य की तहरीर पर पुलिस ने थाना कोतवाली में मुकदमा दर्ज किया था।
इसके अलावा हाल-फ़िलहाल में नवभारत टाइम्स के पत्रकारों द्वारा 'स्टिंग अनाज' नाम से स्टिंग ऑपरेशन किया गया। जिसमें दिखाया गया था कि कैसे गरीबों के राशन की बंदरबांट की जाती है। इसमें मार्केटिंग इंस्पेक्टर शशि सिंह बेनकाब हुआ। इस खबर के सामने आने के बाद नवभारत टाइम्स के पत्रकारों पर फर्ज़ी मुकदमा दर्ज किया गया। कोरोनाकाल में मिर्ज़ापुर जिले के विकासखड़ जमालपुर के प्राथमिक विद्यालय शिऊर में मिड डे मील में नमक-रोटी परोसे जाने पर इस खबर का खुलासा करने वाले स्थानीय अखबार के पत्रकार पवन जायसवाल पर भी FIR दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया था।
पेरिस स्थित विदआउट बॉर्डर्स के वार्षिक विश्लेषण द्वारा रिपोर्ट्स के अनुसार वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 180 देशों में से भारत का 142 वां स्थान है। रिपोर्ट्स विदआउट बॉर्डर्स एक नॉन-प्रॉफिट संगठन है, जो दुनियाभर के पत्रकारों और पत्रकारिता पर होने वाले हमलों का दस्तावेज एकत्रित करने और उनके साथ खड़े रहने का काम करता है। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि भारतीय मीडिया के स्तर में गिरावट का कारण हिंदू राष्ट्रवादी सरकार का मीडिया पर बनाया गया दबाव है। जो पत्रकार देश की कमियों के बारे में लिखता है, उसके खिलाफ सोशल मीडिया पर सुनियोजित तरीके से घृणा फैलाई जाती है। सोशल मीडिया पर उससे गाली-गलौज और उसको परेशान किया जाता है।
UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) जिसे गैरकानूनी गतिविधियां(रोकथाम) अधिनियम भी कहते है। साल 1967 में यह कानून आया। इसे साल 2004 और 2008 में आतंकवाद विरोधी कानून के रूप में संशोधित किया गया। अगस्त 2019 में संसद ने व्यक्तियों पर आतंकवाद के रूप में नामित करने के लिए UAPA(संसोधन) बिल 2019 को मंजूरी दी थी।
UAPA सामान्य कानूनी प्रक्रिया से अलग यह एक आतंकवाद से संबंधित अपराधों से निपटने के लिए कड़ा कानून है, जहां आरोपी के संवैधानिक सुरक्षा उपायों को कम कर दिया जाता है। यानी कि किसी व्यक्ति पर UAPA लगने के बाद उसके लगभग सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं। UAPA में सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसकी धारा 43(D) (5) में निहित है। यदि पुलिस किसी व्यक्ति को UAPA के तहत गिरफ्तार करती है, तो उस व्यक्ति को जमानत मिलना मुश्किल है। जबकि व्यक्ति के लिए कानून में जमानत लेने का अधिकार प्रदान किया गया है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड बयूरो यानी कि NCRB के आंकड़े के अनुसार साल 2016 और 2019 के बीच UAPA के तहत कुल 4,231 मामले दर्ज़ किए गए, लेकिन सिर्फ़ 112 मामले ही सिद्ध हो पाए हैं।