राजस्थान के छोटे गांव से JNU अध्यक्ष पद तक: किसान का बेटा बना छात्रों की आवाज़ — जानिए कहानी प्रदीप ढाका की

सीकर ज़िले के एक छोटे से गांव से आने वाले प्रदीप ढाका (Pradeep Dhaka) एक साधारण, ग्रामीण और पिछड़े वर्ग से हैं। उनका जीवन बचपन से ही आर्थिक चुनौतियों, जातीय असमानता और संसाधनों की कमी से जूझता रहा। उनके पिता स्वरोजगार करते हैं और ड्राइवरी से परिवार का पालन-पोषण करते हैं। इन्हीं संघर्षों को देख-सुनकर प्रदीप ने सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की लड़ाई को अपनी राह बना लिया।

April 20, 2025 - 16:20
April 20, 2025 - 16:34
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राजस्थान के छोटे गांव से JNU अध्यक्ष पद तक: किसान का बेटा बना छात्रों की आवाज़ — जानिए कहानी प्रदीप ढाका की
NSUI Presidential Candidate Pradeep Dhaka

नई दिल्ली, अप्रैल 2025— संघर्ष, सपने और संकल्प की एक प्रेरणादायक कहानी, जो राजस्थान के सीकर के एक छोटे से गांव से शुरू होती है और जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष पद तक पहुँचती है। NSUI ने JNU छात्रसंघ चुनाव 2024-25 के लिए प्रदीप ढाका को अध्यक्ष पद का आधिकारिक उम्मीदवार घोषित किया है। एक ड्राइवर के बेटे, किसान आंदोलन से जागरूक हुए इस नौजवान ने शिक्षा, हिम्मत और ज़मीनी मुद्दों के बल पर खुद को एक सशक्त छात्र नेता के रूप में साबित किया है।

कौन हैं प्रदीप ढाका?

प्रदीप वर्तमान में JNU के स्कूल ऑफ कम्प्यूटेशनल एंड इंटीग्रेटिव साइंस (SCIS) में तीसरे वर्ष के PhD शोधार्थी हैं। उन्होंने 2019-21 में स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज़ से मास्टर्स की पढ़ाई की है। वे NSUI-FRATERNITY गठबंधन की ओर से अध्यक्ष पद के उम्मीदवार हैं।  

सीकर ज़िले के एक छोटे से गांव से आने वाले प्रदीप एक साधारण, ग्रामीण और पिछड़े वर्ग से हैं। उनका जीवन बचपन से ही आर्थिक चुनौतियों, जातीय असमानता और संसाधनों की कमी से जूझता रहा। उनके पिता स्वरोजगार करते हैं और ड्राइवरी से परिवार का पालन-पोषण करते हैं। इन्हीं संघर्षों को देख-सुनकर प्रदीप ने सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की लड़ाई को अपनी राह बना लिया।

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आंदोलन से बना नेता

JNU में प्रवेश के बाद से ही प्रदीप कैंपस के छात्र आंदोलनों में लगातार सक्रिय रहे हैं। चाहे फीस वृद्धि के खिलाफ संघर्ष, MANF स्कॉलरशिप स्क्रैप का विरोध, या फिर कोविड के दौरान कैंपस दोबारा खोलने की माँग — हर मोर्चे पर प्रदीप ने छात्रों की आवाज़ बनकर नेतृत्व किया।  

उन्होंने किसान आंदोलन और पहलवानों के न्याय संघर्ष में भी हिस्सा लिया, दिल्ली बॉर्डर पर धरनों में शामिल होकर ज़मीनी हक की आवाज़ बुलंद की। जेएनयू में किसानों के समर्थन में मार्च का नेतृत्व कर उन्होंने बताया कि छात्र और किसान एकजुट हैं।

विज्ञान का छात्र, न्याय का योद्धा

साइंस स्कूल से होने के बावजूद प्रदीप ने कैंपस में ABVP-Admin गठजोड़ के खिलाफ़ मजबूती से मोर्चा लिया और फंड कटौती जैसी नीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई। उन्होंने वंचितों, पिछड़ों, मेवात के मुस्लिमों और दलित छात्रों के मुद्दों को हमेशा आगे रखा — जातीय न्याय और सांप्रदायिकता के खिलाफ संगठित संवाद किए।  

राजनीति में उतरने का कारण

प्रदीप ने राजनीति में आने का निर्णय किसान आंदोलन के दौरान लिया। उन्होंने महसूस किया कि "भारत जैसे कृषि प्रधान देश में, किसानों और कृषक पृष्ठभूमि से आने वाले विद्यार्थियों के साथ लगातार हो रहा अन्याय अगर किसी को झकझोर नहीं रहा, तो बदलाव लाने की ज़िम्मेदारी हमारी है।"

प्रदीप ढाका की कहानी सिर्फ एक छात्र नेता की नहीं है, यह उस आम ग्रामीण भारत की कहानी है, जो संसाधनों से नहीं, सपनों से लड़ता है। NSUI का यह चेहरा सिर्फ JNU का नेतृत्व नहीं, बल्कि एक नए भारत की आवाज़ बनने की ओर बढ़ रहा है।

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