बढ़ते तापमान से खत्म होता अंटार्कटिका और विनाश की तरफ अग्रसर धरती
पृथ्वी एवं विज्ञान मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, जहां भारत में साल 2013 से 2016 के बीच लू लगने से लगभग 4,620 लोगों की मौत हुई थी। वहीं साल 2017 में पाकिस्तान के कराची शहर में लू लगने से 65 लोगों की मौत हुई थी
ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण के कारण पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। इस बढ़ते तापमान की वज़ह से पूरी दुनिया की सरकारें भी परेशान नज़र आ रही हैं। अगर ऐसे ही पृथ्वी का तापमान बढ़ता रहा तो इसका असर हमारे मौसम चक्र पर भी पड़ेगा, जिससे आने वाले समय में गर्मी काफी बढ़ सकती है, और चिलचिलाती धूप व उमस से लोगों का जीना मुश्किल हो सकता है। पिछले साल लू से लोगों के मारे जाने की खबरें दुनिया भर से सामने आई हैं। ऐसे में अगर पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता रहा तो आने वाले समय में लू से मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी इसे और अधिक बेहद चिंताजनक विषय बना देगी।
शोधकर्ताओं के अनुसार पेरिस समझौते के तहत पृथ्वी के बढ़ते तापमान को रोकने के लिए अगर निर्धारित और ठोस कदम नहीं उठाया गया तो पृथ्वी का बढ़ता तापमान हमारी जिंदगी पर भारी पड़ सकता है। आने वाले समय में बढ़ते तापमान के कारण सभी देशों में मरने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जाएगी।
पेरिस समझौता क्या है ?
लंबे समय से पृथ्वी के बढ़ते तापमान की वज़ह से एक तरफ जहां ग्लेशियर की बर्फ तेजी से पिघल रही है, तो वहीं दूसरी तरफ मौसम में भी तेजी से परिवर्तन होने लगा है। जिसे देखते हुए साल 2015 में पेरिस समझौते के तहत सभी देशों ने विश्व के बढ़ते औसत तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस नीचे लाने का लक्ष्य रखा था, जिससे कि जलवायु परिवर्तन का खतरा कम हो सके।
लगातार बढ़ते तापमान से लू के खतरे भी बढ़े
पृथ्वी एवं विज्ञान मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, जहां भारत में साल 2013 से 2016 के बीच लू लगने से लगभग 4,620 लोगों की मौत हुई थी। वहीं साल 2017 में पाकिस्तान के कराची शहर में लू लगने से 65 लोगों की मौत हुई थी। लू के कारण साल 2018 में जापान में भी लगभग 30 हजार से ज्यादा लोग अस्पताल में भर्ती हुए थे। जिस कारण वहां की सरकार ने लू को एक प्राकृतिक आपदा घोषित कर दिया था।
शोधकर्ताओं के अनुसार 21वीं सदी के अंत तक पूरे विश्व के तापमान में लगभग 4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हो सकती है। जिसका असर सभी देशों पर पड़ेगा और खासकर भारत जैसे देशों में 2036 के बाद लू (गर्म हवाओं) का कहर बहुत ज्यादा बढ़ सकता है, जो आज के समय से 25 गुना अधिक होगा। यह रिपोर्ट यूरो-मेडिटेरेनियन सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज द्वारा बताई गई है।
तापमान बढ़ने का असर साबित होगा घातक
लेखिका अन्ना मारिया विकेडो-कैब्रेरा का कहना है कि अगर हम वैश्विक तापमान की वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने में कामयाब हुए, तो भविष्य में लू के कारण मरने वालों की संख्या कम की जा सकती है। जिसका फायदा सीधे तौर पर अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण एशिया के देशों को देखने को मिल सकता है, लेकिन अगर वैश्विक स्तर पर तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो इसका असर पृथ्वी के लिए बहुत घातक साबित हो सकता है।
बढ़ते तापमान का ग्लेशियर पर प्रभाव
ग्लोबल वार्मिंग के कारण विश्व भर के ग्लेशियर लगातार तेजी से पिघल रहे हैं और पिछले कुछ सालों में इनके पिघलने की रफ्तार और भी तेज हो गई है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ने साल 2019 की रिपोर्ट में चिंता जाहिर करते हुए बताया कि जिस तरह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, उस हिसाब से 21 वीं सदी तक 80% बर्फ पिघल कर समाप्त हो सकती है। वहीं सामने आई रिपोर्ट्स के अनुसार साल 1975 से 2012 के बीच अंटार्कटिका की बर्फ की मोटाई 65% तक कम हुई है।
2040 के बाद खत्म हो जाएगा अंटार्कटिका
ग्लोबल वार्मिंग के कारण तीन दशकों में आर्कटिक पर बर्फ का क्षेत्रफल करीब 50% हो चुका है। आर्कटिक काउंसिल की रिपोर्ट ‘स्नो, वॉटर, आइस, पर्माफ्रॉस्ट इन द आर्कटिक’ के अनुसार 2040 तक आर्कटिक की बर्फ पूरी तरह पिघलकर समाप्त हो जाएगी। शोधकर्ताओं के अनुसार आर्कटिक की बर्फ पिघलने से पृथ्वी के वातावरण में भयावह परिवर्तन आ सकते हैं। क्योंकि इन ग्लेशियर से निकला पानी सीधे समुद्र में जाता है। जिससे समुद्र के जलस्तर में बढ़त देखी जा रही है। 20 वीं सदी में दुनिया भर के समुद्रों का जलस्तर लगभग 15 सेंमी से अधिक बढ़ा है। अगर ऐसे ही बर्फ तेजी से पिघलती रही तो आने वाले 100 सालों में समुद्र का जल स्तर 2 से 3.5 मीटर तक बढ़ सकता है।
समुंद्र के किनारे बसे शहर पानी में डूब सकते हैं
ग्लेशियर के पिघलने के कारण समुद्रों का जलस्तर तेजी से बढ़ता जा रहा है। जिस कारण समुद्रों के किनारे बसे मुंबई, चेन्नई, मेलबर्न, सिडनी, केपटाउन, शांघाई, लंदन, लिस्बन, कराची, न्यूयार्क, रियो-डि जनेरियो और दुनिया के तमाम खूबसूरत शहरों को खतरा हो सकता है। समुद्र का पानी बर्फ के मुकाबले गहरे रंग का होता है। जिस वजह से यह ज्यादा गर्मी सोखता है। अंटार्कटिका पर जितनी ज्यादा बर्फ पिघलेगी, उतना ही अधिक पानी गर्मी को सोखेगा, जिससे विश्व के तमाम ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार और भी ज्यादा बढ़ जाएगी।