हरीश चौधरी की मांग ने दी नई चेतना: राजस्थान से उठी जातिगत जनगणना की राष्ट्रीय पुकार

वर्ष 2022 में राजस्थान के कांग्रेस विधायक हरीश चौधरी ने जातिगत जनगणना की मांग उठाकर सामाजिक न्याय की बहस को नई दिशा दी। उन्होंने आंकड़ों के आधार पर नीति निर्धारण और आरक्षण की पारदर्शिता की बात कही। अब जब यह मुद्दा राष्ट्रीय बहस बन चुका है, चौधरी की पहल को उसकी बुनियाद माना जा रहा है।

May 2, 2025 - 23:03
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हरीश चौधरी की मांग ने दी नई चेतना: राजस्थान से उठी जातिगत जनगणना की राष्ट्रीय पुकार
Harish Choudhary MLA Barmer

बाड़मेर, अप्रैल 2025— कांग्रेस विधायक और राजस्थान के पूर्व राजस्व मंत्री हरीश चौधरी एक बार फिर सामाजिक न्याय की बहस को नई दिशा देने के केंद्र में हैं। वर्ष 2022 में जब उन्होंने राजस्थान में जातिगत जनगणना की जोरदार मांग की थी, तब यह मुद्दा सिर्फ एक राजनीतिक वाक्य नहीं, बल्कि समाज की सही तस्वीर सामने लाने का प्रयास था। आज, दो साल बाद, जब केंद्र सरकार इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा कर रही है, हरीश चौधरी के प्रयासों को एक निर्णायक शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।

"वास्तविक समानता की पहली सीढ़ी है डेटा"

हरीश चौधरी का मानना है कि जब तक जातिगत आंकड़े सार्वजनिक नहीं होंगे, तब तक सामाजिक असमानता की जड़ें मजबूत रहेंगी। उन्होंने कहा था, “जातिगत जनगणना से हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि देश में किस समुदाय की क्या सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति है। इसी आधार पर नीतिगत निर्णय लेने चाहिए।”

2011 से 2022 तक: उपेक्षित आदेश और टूटी उम्मीदें

हरीश चौधरी ने इस बात को बार-बार उठाया कि 2011 की जातिगत सर्वे रिपोर्ट, जिसे यूपीए सरकार ने कराया था, भाजपा सरकार द्वारा अब तक सार्वजनिक नहीं की गई। उनका आरोप था कि सरकारें आंकड़ों से डरती हैं, क्योंकि वह सामाजिक हकीकत को उजागर कर देंगे।

राजस्थान से उठी आवाज, बनी राष्ट्रीय बहस

2022 में जब उन्होंने बाड़मेर से यह मुद्दा उठाया, तो प्रदेशभर में इसे राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों का समर्थन मिलने लगा। जल्द ही यह एक राज्यीय विमर्श से निकलकर राष्ट्रीय जनमंच पर आ गया। **कांग्रेस नेता राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, और अन्य विपक्षी नेताओं ने भी जातिगत जनगणना को समर्थन दिया। हरीश चौधरी का यह योगदान उस राष्ट्रीय विमर्श को जन्म देने वाला साबित हुआ।

आंकड़ों के आधार पर आरक्षण की नई सोच

हरीश चौधरी ने यह भी कहा कि आरक्षण व्यवस्था को मजबूती देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 15(5) का सही तरीके से प्रयोग होना चाहिए और 50% की सीमा समाप्त कर वंचित वर्गों को उनके अनुपात में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।

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