Pola Festival: जानिए छत्तीसगढ में धूमधाम से मनाए जाने वाले पोला पर्व का महत्त्व
छत्तीसगढ की लोक संस्कृति का प्रमुख त्योहार पोला पर्व इस वर्ष 6 सितंबर को धूमधाम से मनाया जाना है। भारत एक कृषि प्रधान देश है, तथा यहां कृषि को बेहतर बनाने में मवेशियों का भी बड़ा योगदान होता है। इसी कारण इनका जीवन मवेशियों व पेड़ पौधों से विशेष मानसिक भावात्मक रूप से जुड़ा हुआ है।
छत्तीसगढ की लोक संस्कृति का प्रमुख त्योहार पोला पर्व इस वर्ष 6 सितंबर को धूमधाम से मनाया जाना है। भारत एक कृषि प्रधान देश है, तथा यहां कृषि को बेहतर बनाने में मवेशियों का भी बड़ा योगदान होता है। इसी कारण इनका जीवन मवेशियों व पेड़ पौधों से विशेष मानसिक भावात्मक रूप से जुड़ा हुआ है। और इसी कारण वे मवेशियों व कई अन्य प्राकृतिक रचनाओं को अपने भाव से जोड़कर विभिन्न त्योहार मनाते हैं,"बैल पोला पर्व"इसका ही उदाहरण है। यह किसानों द्वारा अपने बैल, गायों को पूज्य मानकर मनाया जाने वाला विशेष त्यौहार है।
मुख्यत: इस त्यौहार को महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह प्रतिवर्ष भादो माह की अमावस्या को मनाया जाता है। इस अमावस्या को ही पिठोरी अमावस्या भी कहा जाता है। इस पर्व पर किसान परिवार अपनी गाय और अपने बैलों को दुल्हन की भांति बड़े ही प्रेमपूर्वक सजाते हैं।
आज के दिन पशुओं की रस्सियां खोल कर इन्हें आजाद कर दिया जाता है। गाय व बैलों को हल्दी, सरसों,उबटन लगाकर मालिश की जाती है और इसके बाद उन्हें अच्छे से नहलाया जाता है और इनके शरीर को विभिन्न रंगों की कलाकृतियां द्वारा सजाया जाता है। इनके पैरों तथा गले में घुंघरू व धातु के छल्ले पहनाकर लोग इन्हें बड़े चाव से सजाते हैं।
त्यौंहार का नाम पोला क्यों पड़ा:
पोला पर्व की जड़े श्री कृष्ण के बचपन से जुड़ी हुई हैं। जब श्री कृष्ण अपने बचपन की अवस्था में थे और यशोदा के साथ रहते थे। उस समय श्री कृष्ण के मामा कंस ने अनेक असुरों को श्री कृष्ण को मारने के लिए भेजा था, उसी सूची में एक पोलासुर नामक असुर था जिसको कान्हा ने मार दिया था। जिस दिन यह घटना हुई वह अमावस्या का दिन था। उस दिन के बाद से इसे पोला कहा जाने लगा। चूंकि कान्हा उस समय बचपन की अवस्था में थे, इसलिए इस दिन को बच्चों का दिन कहते हुए उन्हें विशेष प्यार दिया जाता है।
पोला पर्व का महत्व:
अपनी खेती में मदद मिलने की वजह से किसान इन पशुओं को अपनी तरक्की का कारण समृद्धि का प्रतीक व अपने घर का सदस्य मानते है। वे इन्हें मां लक्ष्मी का दर्जा देकर इनकी पूजा भी करते है। पोला पर्व को मनाने के दो तरीके हैं। एक तरीका है बड़ा पोला जिसमें बैल की पूजा की जाती है और दूसरा तरीका है छोटा पोला। छोटा पोला में बच्चे खिलौने के बैल बनाकर घर घर ले जाकर बदले में पैसे व उपहार लेते है।