रामप्रसाद बिस्मिल जयंती: मौत से डर कर नहीं तो क्यों आएं फांसी से पहले काकोरा कांड के आरोपी बिस्मिल को आंसू ?
Ramprasad Bismil Jayanti: फांसी से पहले उनकी वीरमाता उनसे मिलने पहुंची और बिस्मिल की आंखों में आंसू देख उलाहना दिया, अरे! मैं तो समझती थी कि मेरा बेटा बहुत बहादुर हैं और उसके नाम से अंग्रेज सरकार भी कांपती है। मुझे नहीं पता था कि वह मौत से इतना डरता है। तब बिस्मिल ने आंसू पोंछ डाले और कहा, आंसू मौत के डर से नहीं तुमसे बिछड़ने के शोक में आए हैं।
क्रांतिकारी, लेखक, साहित्यकार, इतिहासकार और बहुभाषी अनुवादक रामप्रसाद बिस्मिल(Ramprasad Bismil ) का जन्म 11 जून 1897 को शाहजहांपुर में हुआ था। बिस्मिल ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने कई युवा पीढ़ियों को प्रभावित किया है। भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करने के संघर्ष में बिस्मिल ने मौत को भी स्वीकार कर लिया था। आइए जानते हैं राम प्रसाद बिस्मिल के जीवन कि कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में...
भाई की फांसी ने बिस्मिल के सीने में लगा दी थी आग
बिस्मिल ने स्वामी दयानंद का सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा और वे ब्रह्मचर्य से प्रभावित हो गए। उन्होंने सत्य का भी पालन पूरी निष्ठा से किया। साल1916 में बिस्मिल ने कांग्रेस अधिवेशन के दौरान लखनऊ शहर की सड़कों पर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की शोभायात्रा निकाली, तो उनका नाम मशहूर हो गया। 1915 में उनके भाई परमानन्द को अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी जिसके चलते बिस्मिल के सीने में आग की ज्वाला धधक रही थी।
अहिंसा को छोड़ चंद्रशेखर आजाद को अपनाया
रामप्रसाद बिस्मिल का असहयोग आंदोलन के बाद हिंसा से मोहभंग हो गया था। वे अहिंसा को छोड़ हिंसक मार्ग अपनाना चाहते थे। वे चंद्रशेखर आजाद के हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएशन में शामिल हो गए और शस्त्र खरीदने के लिए धन जुटाने हेतु काकोरी काण्ड को अंजाम दिया। बिस्मिल ने अंग्रेजों के खिलाफ़ आग उगलने वाली किताबें लिखीं, उन्हें चोरी छिपे छपवाया और बेचना भी शुरू किया। उन किताबों की बिक्री से मिले पैसों से उन्होंने और बंदूकें ख़रीदीं।
पुलिस को ऐसे दिया चकमा
मैनपुरी कॉन्स्पिरेसी में बिस्मिल को छोड़ उनके सभी साथी पकड़े गए। जेल से छूटने पर उनके साथी क्रांतिकारियों ने अफवाह फैला दी कि राम प्रसाद पुलिस मुठभेड़ में मारे जा चूके हैं जबकि पुलिस मुठभेड़ के दौरान रामप्रसाद बिस्मिल यमुना नदी में कूद कर जिंदा बच निकले थे। जान बचाकर बिस्मिल जंगल में पहुंचे थे और उस वीरान जंगल में आत्मकथा लिखने लगे थे।
फांसी से पहले क्यों रोए बिस्मिल
फांसी से पहले उनकी वीरमाता उनसे मिलने पहुंची और बिस्मिल की आंखों में आंसू देख उलाहना दिया, अरे! मैं तो समझती थी कि मेरा बेटा बहुत बहादुर हैं और उसके नाम से अंग्रेज सरकार भी कांपती है। मुझे नहीं पता था कि वह मौत से इतना डरता है। तब बिस्मिल ने आंसू पोंछ डाले और कहा, आंसू मौत के डर से नहीं तुमसे बिछड़ने के शोक में आए हैं।
देश के खातिर हो गए कुर्बान
9 अगस्त 1925 को काकोरी ट्रेन से बिस्मिल और उनके साथियों ने सरकारी ख़ज़ाना लूटा। अंग्रेजों ने बिस्मिल को पकड़ लिया और 19 दिसंबर 1927 को अशफाकउल्ला खान, रोशनसिंह, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी के साथ उन्हें फांसी दी गई।
रक्त में उबाल पैदा कर देने वाली बिस्मिल की कविता
बिस्मिल ऐसे क्रांतिकारी हैं जिन्होंने कई युवा पीढ़ियों को प्रभावित किया है। उनकी लिखी हुई कवितायें रक्त में उबाल पैदा कर देती हैं। उनकी एक कविता यहाँ पेश है-
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साहिले-मक़सूद पर ले चल खुदारा नाखुदा आज हिंदुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है
दूर हो अब हिंद से तारीकी-ए- बुग्जो-हसद। अब यही हसरत यही अरमां हमारे दिल में है
बामे- रफअत पर चढ़ा दो देश पर होकर फना ‘बिस्मिल' अब इतनी हविश बाकी हमारे दिल में है।