आलोक धन्वा की तीन कविताएं : Alok Dhanwa Best Poems- 'अचानक तुम आ जाओ', 'छतों पर लड़कियां', 'भूल पाने की लड़ाई'

Alok Dhanwa Best Poems: 'अचानक तुम आ जाओ', 'छतों पर लड़कियां', 'भूल पाने की लड़ाई' हिन्दी की प्रसिद्ध कविताएँ हैं।

September 5, 2021 - 18:45
July 14, 2023 - 17:39
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आलोक धन्वा की तीन कविताएं : Alok Dhanwa Best Poems- 'अचानक तुम आ जाओ', 'छतों पर लड़कियां', 'भूल पाने की लड़ाई'
Alok Dhanwa Best Poems

आलोक धन्वा की तीन कविताएं : Alok Dhanwa Best Poems

कविता पढ़ना मानव को संवेदनशील बनाता है और कठिन समय में धीरज बढ़ाने का काम करता है । आलोक धन्वा हिंदी साहित्य के वर्तमान समय के लोकप्रिय कवियों में से एक है और उनकी कविता में पाठक को  खोजते हुए उम्मीद और शांति मिलती है तो कभी आज़ादी और 
बेचैनी की झलक मिलती है । 

कविता पढ़ने से पहले कवि के बारे में जानना बेहतर होता है।आलोक धन्वा जी की प्रसिद्ध कविताएं है : जनता का आदमी’, ’गोली दागो पोस्टर’, ’कपड़े के जूते’ और ’ब्रूनों की बेटियाँ’। 

इस लेख में कवि आलोक धन्वा की तीन रचना है जिनके माध्यम से मानव जीवन के तीन स्वभाव को समझने में समझ विकसित होगी । किसे के इंतजार में रहना , उनके प्रेम का पात्र बनना और अंत में किसी को भूलने की कोशिश करना ।

 
1.अचानक तुम आ जाओ :- आलोक धन्वा

" इतनी रेलें चलती हैं
 भारत में
 कभी
 कहीं से भी आ सकती हो
 मेरे पास
कुछ दिन रहना इस घर में
जो उतना ही तुम्हारा भी है
तुम्हें देखने की प्यास है गहरी
तुम्हें सुनने की

कुछ दिन रहना
जैसे तुम गई नहीं कहीं

मेरे पास समय कम
होता जा रहा है
मेरी प्यारी दोस्त

घनी आबादी का देश मेरा
कितनी औरतें लौटती हैं
शाम होते ही
अपने-अपने घर
कई बार सचमुच लगता है
तुम उनमें ही कहीं
आ रही हो
वही दुबली देह
बारीक चारख़ाने की
सूती साड़ी
कन्धे से झूलता
झालर वाला झोला
और पैरों में चप्पलें
मैं कहता जूते पहनो खिलाड़ियों वाले
भाग-दौड़ में भरोसे के लायक

तुम्हें भी अपने काम में
ज़्यादा मन लगेगा
मुझसे फिर एक बार मिलकर
लौटने पर

दुख-सुख तो
आते जाते रहेंगे
सब कुछ पार्थिव है यहाँ
लेकिन मुलाक़ातें नहीं हैं
पार्थिव
इनकी ताज़गी
रहेगी यहीं
हवा में !
इनसे बनती हैं नई जगहें
एक बार और मिलने के बाद भी
एक बार और मिलने की इच्छा
पृथ्वी पर कभी ख़त्म नहीं होगी"

2. छतों पर लड़कियां :- आलोक धन्वा

"अब भी
छतों पर आती हैं लड़कियाँ
मेरी ज़िंदगी पर पड़ती हैं उनकी परछाइयाँ।
गो कि लड़कियाँ आयी हैं उन लड़कों के लिए
जो नीचे गलियों में ताश खेल रहे हैं
नाले के ऊपर बनी सीढियों पर और
फ़ुटपाथ के खुले चायख़ानों की बेंचों पर
चाय पी रहे हैं
उस लड़के को घेर कर
जो बहुत मीठा बजा रहा है माउथ ऑर्गन पर
आवारा और श्री 420 की अमर धुनें।

पत्रिकाओं की एक ज़मीन पर बिछी दुकान
सामने खड़े-खड़े कुछ नौजवान अख़बार भी पढ़ रहे हैं।
उनमें सभी छात्र नहीं हैं
कुछ बेरोज़गार हैं और कुछ नौकरीपेशा,
और कुछ लफंगे भी

लेकिन उन सभी के ख़ून में
इंतज़ार है एक लड़की का !
उन्हें उम्मीद है उन घरों और उन छतों से
किसी शाम प्यार आयेगा !"



3. भूल पाने की लड़ाई :-  आलोक धन्वा

 "उसे भूलने की लड़ाई
 लड़ता रहता हूँ
 यह लड़ाई भी
 दूसरी कठिन लड़ाइयों जैसी है
दुर्गम पथ जाते हैं उस ओर

उसके साथ गुजारे
दिनों के भीतर से
उठती आती है जो प्रतिध्वनि
साथ-साथ जाएगी आजीवन

इस रास्ते पर कोई
बाहरी मदद पहुँच नहीं सकती

उसकी आकस्मिक वापसी की छायाएँ
लम्बी होती जाती हैं
चाँद-तारों के नीचे

अभिशप्त और निर्जन हों जैसे
एक भुलाई जा रही स्त्री के प्यार
के सारे प्रसंग

उसके वे सभी रंग
जिनमें वह बेसुध
होती थी मेरे साथ
लगातार बिखरते रहते हैं
जैसे पहली बार
आज भी उसी तरह

मैं नहीं उन लोगों में
जो भुला पाते हैं प्यार की गई स्त्री को
और चैन से रहते हैं

उन दिनों मैं
एक अख़बार में कॉलम लिखता था
देर रात गए लिखता रहता था
मेज़ पर
वह कब की सो चुकी होती
अगर वह कभी अचानक जग जाती
मुझे लिखने नहीं देती
सेहत की बात करते हुए
मुझे खींच लेती बिस्तर में
रोशनी गुल करते हुए

आधी नींद में वह बोलती रहती कुछ
कोई आधा वाक्य
कोई आधा शब्द
उसकी आवाज़ धीमी होती जाती
और हम सो जाते

सुबह जब मैं जगता
तो पाता कि
वह मुझे निहार रही है
मैं कहता
तुम मुझे इस तरह क्या देखती हो
इतनी सुबह
देखा तो है रोज़
वह कहती
तुम मुझसे ज़्यादा सुन्दर हो
मैं कहता
यह भी कोई बात हुई

भोर से नम
मेरे छोटे घर में
वह काम करती हुई
किसी ओट में जाती
कभी सामने पड़ जाती

वह जितने दिन मेरे साथ रही
उससे ज़्यादा दिन हो गए
उसे गए !"

Abhishek Tripathi तभी लिखूंगा जब वो मौन से बेहतर होगा।