राजस्थान: आसाराम की सुनवाई टली, बयान देने नहीं आए डीसीपी अजय पाल लांबा
लांबा ने साल 2013 में आसाराम मामले की जांच की थी, जांच के फलस्वरूप आसाराम को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। हाल ही में लांबा द्वारा आसाराम के आपराधिक जीवन पर लिखी एक पुस्तक प्रकाशित हुई है और इसी पुस्तक के कारण अजय लांबा और आसाराम फिर से एक बार सुर्खियों का हिस्सा बन गए हैं। पुस्तक का नाम “गनिंग फ़ॉर द गॉड मैन” है।
राजस्थान के जोधपुर हाई कोर्ट में आसाराम पर चल रहे यौन उत्पीड़न के मामले में 7 मार्च को तत्कालीन डीसीपी अजय पाल लांबा की पेशकश थी। अजय ने कोर्ट में पेश न होने की वजह अपनी अस्वस्थता बताई है। अजय लांबा वही अफ़सर हैं जिन्होंने साल 2013 में आसाराम मामले की जांच की थी।
डीसीपी अजय लांबा का इस केस से संबंध:
लांबा ने साल 2013 में आसाराम मामले की जांच की थी, जांच के फलस्वरूप आसाराम को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। हाल ही में लांबा द्वारा आसाराम के आपराधिक जीवन पर लिखी एक पुस्तक प्रकाशित हुई है और इसी पुस्तक के कारण अजय लांबा और आसाराम फिर से एक बार सुर्खियों का हिस्सा बन गए हैं। पुस्तक का नाम “गनिंग फ़ॉर द गॉड मैन” है जिसमें संपूर्ण घटनाक्रम को पूर्ण रूप से लिखा गया है। आसाराम के वकील का कहना है कि पुस्तक में घटनास्थल पर बनाए गए किसी वीडियो का जिक्र किया गया है, जबकि असलायित में बीते 8 वर्षों में ऐसी किसी भी वीडियो का जिक्र न तो पीड़िता ने किया है और ना ही जांच करने वाले अधिकारयों ने। वकील के इस याचिका ने आसाराम के साथ–साथ डीसीपी लांबा को भी कटघरे तक ला दिया है।
क्या है पूरा मामला?
संपूर्ण घटनाक्रम की शुरुआत आज से लगभग 8 साल पहले हुए जब 15 अगस्त 2013 के दिन आसाराम के आश्रम में पढ़ने वाली एक नाबालिग छात्रा ने आसाराम पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। छात्रा का कहना है कि आसाराम ने अपने जोधपुर के फार्म हाउस पर उसका यौन उत्पीड़न किया। हालंकि पीड़िता घटना के 5 दिन बाद यानी 20 अगस्त 2013 को दिल्ली आयी और दिल्ली के कमला नगर थाने में मामला दर्ज कराया। घटनास्थल जोधपुर में होने के कारण दिल्ली पुलिस ने इस मामले को जोधपुर भेज दिया। जोधपुर पुलिस ने मामले को दर्ज किया और 31 अगस्त 2013 को आसाराम को उसके इंदौर के आश्रम से गिरफ्तार कर जोधपुर ले आए। 5 सालों तक इस मामले पर कोर्ट में सुनवाई चलती रही और साल 2018 में कोर्ट ने अपना अंतिम फैसला सुनाते हुए आसाराम को दोषी करार दिया तथा आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
क्या है किताब का माजरा ?
आसाराम केस के जांच अधिकारी अजय पाल लांबा ने अपनी किताब “गनींग ऑफ द गॉड मैन” में घटनास्थल पर खुद के द्वारा रिकॉर्ड किए गए एक वीडियो का जिक्र किया है जबकि असलियत में अजय लांबा ने कोर्ट के समक्ष कहा था की घटनास्थल पर किसी भी प्रकार की रिकॉर्डिंग नहीं की गई थी। आसाराम के वकील देवदत्त कामत ने दलील देते हुए कहा है कि उन्होंने सुनवाई के वक्त ही कोर्ट से कहा था कि पीड़िता के बयान देने से पहले पीड़िता को उस घटनास्थल का विडियो दिखाया गया था। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने किसी भी प्रकार की रिकॉर्डिंग न होने की बात कही और आसाराम को सजा सुना दी। जांच में गड़बड़ी की आशंका के कारण आसाराम के वकील पुनः पूरे केस की जांच करवाना चाहते हैं।
इस मामले पर अजय लांबा का कहना है कि किताब के शुरुआत में यह लिखा हुआ है की किताब के कुछ भाग काल्पनिक भी हैं। किताब में वीडियो के ज़िक्र को भी काल्पनिक करार दिया गया है। इसी मतभेद के कारण जोधपुर हाई कोर्ट ने तात्कालिक डीसीपी अजय लांबा को कोर्ट में 7 मार्च को पेश होने के लिए समन जारी किया था।
अगली सुनवाई कब?
7 मार्च को होने वाली सुनवाई में अजय लांबा अपनी अस्वस्थता के कारण हाजिर नहीं हो पाए और इसी कारण हाई कोर्ट ने मामले को टाल दिया है। अब अगली सुनवाई 22 मार्च को जोधपुर हाई कोर्ट में होगी।