Inspirational poem: निराशा को हराकर आगे बढ़ो – मैथिलीशरण गुप्त की प्रेरणादायक कविता
Inspirational poem: यह कविता हमें सिखाती है कि जीवन में किसी भी परिस्थिति में निराश न हों। असफलताओं को चुनौती की तरह स्वीकार करें और आगे बढ़ें।

निराशा को हराकर आगे बढ़ो – मैथिलीशरण गुप्त की प्रेरणादायक कविता
विद्यार्थियों को कई बार असफलताओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन असली विजेता वही होते हैं जो निराशा को त्यागकर नए जोश के साथ आगे बढ़ते हैं। प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त की कविता "नर हो, न निराश करो मन को" इसी भावना को प्रकट करती है।
नर हो, न निराश करो मन को – मैथिलीशरण गुप्त
नर हो, न निराश करो मन को,
कुछ काम करो, कुछ काम करो।
जग में रहकर कुछ नाम करो।
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो,
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को,
नर हो, न निराश करो मन को।
इस कविता से क्या सीख मिलती है?
यह कविता हमें सिखाती है कि जीवन में किसी भी परिस्थिति में निराश न हों। असफलताओं को चुनौती की तरह स्वीकार करें और आगे बढ़ें।
विद्यार्थियों के लिए 5 सफलता सूत्र
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पढ़ाई में कभी निराश न हों, हर असफलता एक सीख होती है।
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समय का सही उपयोग करें, बेवजह चीजों में समय न गँवाएँ।
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छोटी-छोटी उपलब्धियों को भी सराहें, ये आपको आगे बढ़ने का हौसला देंगी।
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खुद पर भरोसा रखें और मेहनत करते रहें।
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असफलता मिलने पर नए तरीके अपनाएँ, हार मानना विकल्प नहीं है।