Book Review: मुनव्वर राना साहब की खूबसूरत गजलों का गुलदस्ता “पीपल छाँव”
राना साहब ने कई प्रसिद्ध किताबें लिखी हैं जैसे मुहाजिरनामा, माँ और पीपल छाँव, आज हम पीपल छाँव पर बात करते हैं जो तकरीबन 90 गजलों का एक खूबसूरत गुलदस्ता है, पीपल छाँव पढते हुए आपको एक उदासी, एक दुख, वर्तमान समय की त्रासदी और कष्ट करीब से महसूस होगा, हम सभी की एक किताब-भर जिदगीं तो होती ही है, और पीपल छाँव किताब पढते हुए आप अपनी वो किताब-भर जिन्दगी को जैसे एक बार दोबारा जी लेते हैं
साहित्य समाज का दर्पण होता हैं, गजलें, शेर-ओ-शायरी, नज्म, कविता, कहानियों और उपन्यास के आप जितना करीब पहुँचते हैं उतना ही आप खुदसे भी रूबरू हो रहे होते हैं, उर्दू गजलों और मुशायरों की बात हो तो मुनव्वर राना साहब को कोई कैसे भूल सकता है, उनके द्वारा रचित पीपल छाँव एक खूबसूरत गजलों का गुलदस्ता है। राना जी बताते हैं कि जब वे पढाई के दिनों में कलकत्ता(कोलकाता) में रहा करते थे तो उनके बंगाली दोस्त अक्सर उन पर तंज किया करते थे कि जब हमारा बांग्ला साहित्य अंग्रेजों से जंग किया कर रहा था तब आपकी उर्दू किसी नगरवधू की देहरी से उतर रही थी, साथ ही राना साहब के दौर की शायरी आने से पहले उर्दू गजलें, महबूब, मोहब्बत, चाँद और हिज्र(विरह) से भरी हुई थी, जैसे ही राना साहब ने शायरी लिखना शुरू किया तो कई जगहों से असहमतियाँ आईं, लोगों ने आपत्ति की इसके पीछे का कारण ये था कि राना साहब ने अपनी माँ को अपना महबूब मानकर उन पर शायरी करना शुरू किया, वे तर्क करते हैं कि जब एक सामान्य शक्ल-ओ-सूरत की महिला मेरी महबूब हो सकती हैं तो मेरी माँ क्यों नहीं, महबूब का मायने सिर्फ एक ही नहीं हो सकते, और अपनी खूबसूरत गजलों का एक गुलदस्ता उन्होनें पीपल छाँव किताब के माध्यम से पाठकों को उपहार के रूप में दिया है।
पीपल छाँव, खूबसूरत गजलों का गुलदस्ता:-
निष्कर्ष:-
कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा,,
तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा.
ये सोच कर कि तेरा इंतज़ार लाज़िम है,,
तमाम उम्र घड़ी की तरफ़ नहीं देखा.
यहां तो जो भी है आबे-रवां का आशिक़ है,,
किसी ने ख़ुश्क नदी की तरफ़ नहीं देखा.
वो जिसके वास्ते परदेस जा रहा हूं मैं,,
बिछड़ते वक़्त उसी की तरफ़ नहीं देखा.
न रोक ले हमें रोता हुआ कोई चेहरा,,
चले तो मुड़ के गली की तरफ़ नहीं देखा.