महिला सशक्तिकरण की शक्ति का एहसास कराती पदला भूदेवी
पदला भूदेवी एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वो पिछले 26 वर्षों से सामाजिक कार्य करती आ रहीं हैं। ख़ासकर महिलाओं के लिए। इसी लिए मार्च 2020 में उनको राष्ट्रपति की ओर से "नारी शक्ति सम्मान" से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्होंने कृषि क्षेत्र के लिए सराहनीय काम किया है।
पदला भूदेवी, एक ऐसा नाम जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। अगर आपको महिला सशक्तिकरण की मिसाल देखनी है तो इनके बारे में जानना बहुत ज़रूरी है। आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में जन्मी पदला जी महिलाओं के लिए काम करती हैं। वो सीतमपेटा क्षेत्र में रहने वाले सबरा आदिवासी समुदाय से हैं। इलाके के आदिवासी और विधवा महिलाओं के कल्याण के लिए वो कई बरस से काम कर रहीं हैं। इन्हीं प्रयासों की वजह से उन्हें मार्च 2020 में, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की ओर से “नारी शक्ति पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था।
हालांकि उनका सफ़र कतई आसान नहीं रहा है। महज़ 11 वर्ष की उम्र में उनकी ज़बरदस्ती शादी करवा दी गई। वो बताती हैं कि उनके पति ने उनको शारीरिक और मानसिक, दोनों तरीकों से प्रताड़ित किया। तीन बेटियों के जन्म के बाद उनको छोड़ दिया। इसके बाद से वो अपने माँ- बाप के साथ रह रहीं । वर्ष 1996 से अपने पिता जी की संस्था, “आदिवासी विकास सोसाइटी” से अपने समाजसेवी जीवन की शुरूआत की। पिछले 26 सालों से ये सफ़र जारी है।
वर्ष 2007 में पिता की मृत्यु के बाद इसका नाम “चिनई आदिवासी विकास सोसाइटी” रख दिया गया। इलाके की सारी महिलाओं के साथ उनका एक अटूट रिश्ता है। वो उनकी बातें सुनती हैं। समस्याओं से रूबरू होती हैं। इसमें साफ़-सफ़ाई, पीरियड्स, स्वास्थ्य, घरेलु हिंसा जैसे विषयों पर चर्चा होती है। वो "एकीकृत जनजातीय विकास संगठन" (ITDA) के साथ काम करती हैं। ये संगठन महिलाओं और बच्चों के आहार को बेहतर बनाने में उनकी मदद करता है। इसी संगठन के साथ काम करते हुए पदला जी ने जाना कि आदिवासी लोगों को सही पोषण और बेहतर आमदनी की आवश्यकता है।
इसके अलावा कृषि क्षेत्र के लिए भी वो लगातार काम कर रही हैं। आदिवासी क्षेत्रों से वो दुर्लभ बीज जमा करती हैं। फ़िर उसी क्षेत्र में वो फ़सल बोती हैं जिससे वहां के परिवारों को भरपूर पोषण मिल पाए। उनके मुताबिक अबतक वो अलग-अलग प्रकार के 125 बीज जमा कर चुकी हैं। बाजरे की फ़सल की वो बहुत बड़ी जानकार हैं। इसके अलावा उनकी संस्था द्वारा बनाए गए बाजरा के बिस्कुट 47 होस्टल में भेजे जाते हैं। वन उत्पादों के लिए भी उनकी संस्था काम कर रही है। हिना मेहंदी, जो भारत के घर-घर में लगाई जाती है, उसके उत्पाद भी ये संस्था बनाती है। इसके लिए 30 महिलाओं को ट्रेनिंग दी जा चुकी है।
वर्ष 2013 में वो कृषि क्षेत्र में शोध के लिए चीन और नीदरलैंड भी जा चुकी हैं। इसके अलावा वो दो कंपनियों की निदेशक हैं। एक अनाज का सौदा करती है और दूसरी किसानों की मदद करती है।
यक़ीनन, 11 साल की छोटी उम्र में तीन बच्चियों की परवरिश भी आसान काम नहीं है। बतौर, महिला उद्यमी वो एक प्रेरणा हैं। एक मज़दूर से निदेशक तक का सफ़र भावुक कर देता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी महिलाओं के लिए एक रोल मॉडल के रूप में काम करने के उनके प्रयासों की प्रशंसा की है। असल मायनों में महिला सशक्तिकरण तो ये है....