RANI KI VAV: क्या है रानी की बावड़ी , जिसके अंदर बनी हुई है 30 किलोमीटर लंबी खुफिया सुरंग

ऐसा माना जाता है कि पहले रानी की वाव की इस खुफिया सुरंग का इस्तेमाल राजा और उसके परिवार द्वारा युद्ध या फिर किसी कठिन परिस्थिति में किया जाता था। फिलहाल यह सुरंग पत्थरों और कीचड़ों की वजह से बंद है।

January 25, 2021 - 18:25
January 7, 2022 - 21:55
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RANI KI VAV: क्या है रानी की बावड़ी , जिसके अंदर बनी हुई है 30 किलोमीटर लंबी खुफिया सुरंग
RANI KI VAV- Photo : Social Media

राजा-महाराजाओं द्वारा पुराने जमाने में अक्सर अपने राज्य में जगह-जगह कुए खुदवाए जाते थे, ताकि कभी पानी की कमी न हो। भारत में ऐसे हजारों कुएं देखे जा सकते हैं, जो सैकड़ों साल पुराने हैं और कुछ तो हजार साल से ज्यादा पुराने भी। आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे ही कुएं के बारे में , जिसे 'रानी की बावड़ी' कहते हैं। बावड़ी का अर्थ सीढ़ीदार कुआं होता है। 'रानी की वाव ' का इतिहास 900 साल से भी ज्यादा पुराना है और यहां भारी संख्या में पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। बता दें कि साल 2014 में यूनेस्को इसे विश्व विरासत स्थल घोषित कर चुका है।

वाव का निर्माण भीमदेव प्रथम (1022 -1063 ई.) की रानी उदयमती ने 11वीं  सदी के अंतिम चतुर्थांश में करवाया। भीमराज प्रथम सोलंकी वंश के (अहिनवाड , तालूका :पाटन ,जिला :साबरकाटा, गुजरात ) संस्थापक मूलराज के पुत्र थे। 

पूर्व -पश्चिम में बनी वाव ,जिसका कुआं पश्चिमी छोर पर स्थित है, 64 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी तथा  27 मीटर गहरी  है। वाव में स्तम्भ युक्त बहुमंजिला मंडप, कुआं और अतिरिक्त पानी जमा करने हेतु बड़़ा कुंड है। वाव की वास्तुगत विशेेषता की झलक इसकी सुदर नक्काशी में दिखाई देती है। वाव की दीवारे महिषासु-मर्दिनी, पार्वती, और अन्य शिव की प्रतिमाओं, भैरव, गणेश, सूर्य, कुबेर, लक्ष्मीनारायण तथा अन्य कई मूर्तियों सेे अलंकृत है। साथ ही अप्सरा, नाग कन्या आदि का भी विभिन्न मुद्राओं मेेें चित्रण देखा जा सकता है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत रानी की वाव  को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन राष्ट्रीय महत्त्व का संरक्षित स्मारक  घोषित किया गया है। वर्ष 2014 को इसे राष्ट्रीय धरोहर में सम्मिलित किया गया। कालांतर में सरस्वती नदी में आई बाढ़ एवं उपेक्षा के कारण इसे काफी हानि पहुंची है, 20 वी सदी के छठे दशक तक किसी को इस अलंकृत विलक्षण वास्तुकला से परिपूरित इस वाव  के अस्तित्व की जानकारी नहीं थी, क्योंकि यह वाव, ऊपरी हिस्से को छोड़कर पूरी तरह से मिट्टी एवंं रेत से ढक चुकी थी।  भारतीय पुुरातत्व सर्वेक्षण के सतत प्रयास एवं उत्खनन के परिणामस्वरूप मिट्टी में दबी इस अमूल्य वास्तुशिल्प के घटक अपने मूूल स्थान से अलग हो गए थे।

अपने नाम के अनुरूप ही "रानी की वाव " भारत की सभी वावो में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।