Rajput Regiment: वीरता का पर्याय और अपनी माटी की रक्षा के लिए अपनी गर्दन कटवा लेने वाली रेजीमेंट

गोरखा शक्ति के खिलाफ अंग्रेजों का अभियान हो या, एंगलो सिख युद्ध या फिर बात की जाए गुजरात युद्ध की,राजपूत रेजीमेंट के सिपाही बड़ा हिस्सा बनकर अंग्रेजों की ओर से लड़े थें। इतना ही नहीं 1857 के विद्रोह के स्वर भी राजपूत रेजीमेंट से शुरू हुए थे। इनकी दहाड़ की आवाज़ पहले और दूसरे विश्व युद्ध में भी सुनने को मिलती है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इन्होंने बर्मा अभियान से लेकर Egypt, Ethiopia, Hong Kong और EL Alamein रेगिस्तान में दुश्मनों को तबाह करके रख दिया था।

January 24, 2021 - 17:12
December 7, 2021 - 22:29
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Rajput Regiment: वीरता का पर्याय और अपनी माटी की रक्षा के लिए अपनी गर्दन कटवा लेने वाली रेजीमेंट
Rajput Regiment

रेत और दहकती गर्मी से तैयार हुए लोहे के बदन वाले जवान,जिनसे मौत भी मुंह फेर लेती है। जिनके साहस और महत्वकांक्षाओं के दहकते अंगारों के सामने दुश्मन राख हो जाते हैं। भारतीय सेना के विशाल बरगद की एक ऐसी रेजीमेंट जिसकी जड़ें 250 साल पुरानी हैं। जिसका नाम है राजपूत रेजीमेंट। 

राजपूत रेजीमेंट भारतीय सेना की इन्फेंट्री रेजीमेंट है, जिसमें आने वाले सिपाही राजपूत,अहीर और गुर्जर समुदाय से संबंध रखते हैं। सालों पहले आज के समय का राजस्थान और उससे जुड़े उत्तर पश्चिमी इलाके राजपूताना कहलाते थे,और यहीं पर बसते थे राजपूत। राजपूत यानी राजा का बेटा, जो पुराने समय में क्षत्रिय धर्म निभाते थे। क्षत्रियों का कर्म अपने लोगों और मातृभूमि की रक्षा करना था। राजपूतो की ताकत को समझाने के लिए कालविजय राजपूती क्षत्रिय अमर सिंह और पृथ्वीराज का नाम ही काफी है।

इनके लिए कहा जाता है की यह वीर योद्धा अपनी माटी की रक्षा और मान सम्मान के लिए अपनी गर्दन कटवा लेते थे, लेकिन कभी सर नहीं झुकाते थे। और इसी बात ने अंग्रेजी सल्तनत को इनकी तरफ आकर्षित किया और 1778 राजपूतों को 3rd बटालियन के रूप में अपने सेना में शामिल कर 31 बंगाल नेटिव इन्फेंट्री को अस्तित्व में लाया गया।

यह बटालियन मौजूदा समय में  भारतीय सेना के मजबूत अंगों में से एक है। अपने जन्म से लेकर अब तक शायद ही ऐसा कोई भी युद्ध रहा होगा जिसमें राजपूत रेजीमेंट के शेरों ने हिस्सा ना लिया हो। पहली बटालियन ने दिल्ली के युद्ध में इंपीरियल कोर्ट में मराठों की मौजूदा शक्ति को तोड़ कर रख दिया था,इसी रेजीमेंट ने हैदर अली से युद्ध में कुड्डालोर जीता था। उनकी इसी बहादुरी के लिए "विपरीत दिशाओं में बने  कटारों" को राज चिन्ह प्रदान किया गया था, जो आज तक राजपूत रेजीमेंट का बिल्ला है।

गोरखा शक्ति के खिलाफ अंग्रेजों का अभियान हो या, एंगलो सिख युद्ध या फिर बात की जाए गुजरात युद्ध की,राजपूत रेजीमेंट के सिपाही बड़ा हिस्सा बनकर अंग्रेजों की ओर से लड़े थें। इतना ही नहीं 1857 के विद्रोह के स्वर भी राजपूत रेजीमेंट से शुरू हुए थे। इनकी दहाड़ की आवाज़ पहले और दूसरे विश्व युद्ध में भी सुनने को मिलती है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इन्होंने बर्मा अभियान से लेकर Egypt, Ethiopia, Hong Kong और EL Alamein रेगिस्तान में दुश्मनों को तबाह करके रख दिया था।

भारत की आज़ादी के समय रेजिमेंट में 50% की भारी संख्या में मौजूद पंजाबी और बंगाली मुस्लिम सैनिक, इसका मजबूत हिस्सा थे। 1947 में बंटवारे के वक्त इन्हें पाकिस्तान को सौंप दिया गया, जिससे रेजिमेंट का बहुत बड़ा हिस्सा खाली हो गया बाद में इसे गुर्जर समुदाय के लोगों से भरा गया जो कि पंजाब रेजिमेंट द्वारा सौंपे गए थे।

General Harry Hallon इन राजपूतों की काबिलियत से बखूबी परिचित थे, उनका पसंदीदा नंबर 7 होने के कारण आजादी से पहले सभी राजपूत रेजीमेंट के नाम से पहले 7 लगा होता था। जिसे बाद में भारतीय सेना में शामिल करते वक्त 7 हटाकर सिर्फ राजपूत रेजीमेंट कर दिया गया। जम्मू कश्मीर के ऑपरेशन में इन्होंने जांबाजी की मिसाल कायम की थी। 

राजपूत रेजीमेंट ने 50th Parachute Brigade के नेतृत्व में जमकर दुश्मनों का सामना करते हुए,Jangar से Kotli को जोड़ती हुई एक जरूरी सड़क को सुरक्षित करते हुए हजारों दुश्मनों को मौत की नींद सुला दिया था, वहीं  Sep. Sikdar singh, hav. Mahadeo singh, sub. Gopal Singh जख्मी हालत में लड़ते हुए जंग नायक के रूप में सामने आए थे। बता दें कि 1965 हो या 1971 इन्होंने आसमान से बरसती बारूदी आग के बीच दोनों युद्ध में पाकिस्तान के दांत खट्टे किए थे।

राजपूत रेजीमेंट द्वारा हासिल किए गए पुरस्कार:

  • 1 परमवीर चक्र
  • 7 महावीर चक्र
  • 3 अशोक चक्र
  • 66 वीर चक्र
  • 313 सेना मेडल
  • 8 विक्टोरिया क्रॉस
  • 1 पद्मश्री
  • 12 कीर्ति चक्र
  • 313 सेना मेडल
  • 2 बैटल ओनर 

अक्सर लोग रेजीमेंट और राजपूताना राइफल को एक समझ बैठते हैं मगर यह दोनों अलग-अलग रेजिमेंट हैं। राजपूत रेजीमेंट का केंद्र फतेहगढ़,उत्तर प्रदेश में मौजूद है। भारत के पहले और 23rd आर्मी चीफ Kodandera Madappa Cariappa तथा  Gen. V.K. Singh राजपूत रेजीमेंट से ताल्लुक रखते हैं। रेजिमेंट अपने सिद्धांत 'सर्वत्र विजय' मतलब victory everywhere के साथ पूरा इंसाफ करती हुई बड़ी दृढ़ता से आगे बढ़ रही है। जंग में 'विजय या मृत्यु' के अलावा,सब कुछ नामंजूर करने वाले, भारतीय सेना के इन योद्धाओं ने सदियों से जाबाजी के नए पैमाने देते हुए, अपने बलिदान दिए हैं,और आगे भी देते रहेंगे अगर यह कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।