भगवान राम भारत की 'आत्मा' या धार्मिक विवाद का विषय
भगवान राम भारत की 'आत्मा' हैं, फिर भी दुर्भाग्य से सेक्यूलरिज़्म के सबसे बड़े प्रतीक पर ही सर्वाधिक धार्मिक विवाद भारत में हुआ है। राम करोड़ों भारतवासियों के लिए पूजनीय हैं पर हैरनी तो तब होती है जब उनको भारत से नहीं अपितु एक धर्म विशेष से जोड़कर देखा जाता है। परंतु वास्तविकता तो कुछ और ही है, भारत के विभिन्न धर्मों, संप्रदायों और पंथों में श्री राम को आदरणीय स्थान प्राप्त है।
भगवान राम भारत की 'आत्मा' हैं, फिर भी दुर्भाग्य से सेक्यूलरिज़्म के सबसे बड़े प्रतीक पर ही सर्वाधिक धार्मिक विवाद भारत में हुआ है। राम करोड़ों भारतवासियों के लिए पूजनीय हैं पर हैरानी तो तब होती है जब उनको भारत से नहीं अपितु एक धर्म विशेष से जोड़कर देखा जाता है। परंतु वास्तविकता तो कुछ और ही है, भारत के विभिन्न धर्मों, संप्रदायों और पंथों में श्री राम को आदरणीय स्थान प्राप्त है।
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का मानना था कि रामायण न केवल एक अनोखी नीति कथा है बल्कि अलौकिक सच्चाई का दस्तावेज भी है। इससे व्यापक रूप से भारतीय आनंद लेते हैं। 'रामायण' भारतीय संस्कृति की विरासत है इसलिए इस पर सिर्फ़ हिंदुओं का अधिकार होना अन्यायपूर्ण है।
रामायण की कहानी सिर्फ़ एक कहानी नहीं है, यह एक गाथा है, जो कि अनंत है और इस अनंत गाथा के अनेकों रूप रहे हैं। इसलिए तुलसीदास जी ने लिखा भी है -
हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
हिंदुओं की मान्यता के अनुसार 'मूल रामायण' देवर्षि नारद ने महर्षि वाल्मीकि को सुनाई थी और उसी को महर्षि वाल्मीकि ने लेखन बद्ध किया जो आगे चलकर वाल्मीकि रामायण के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसे आज के दौर में रामायण का सबसे पुराना टेक्स्ट माना जाता है परंतु इसके अलावा भी हिंदुओं में अनेक रामायण प्रचलित हैं; जैसे कि 12वीं सदी में तमिल भाषा में लिखी गई 'रामावतारम्' और 14वीं सदी में तेलुगु भाषा में लिखी गई 'श्री रंगनाथ रामायण'।
कमाल की बात है कि कालांतर में रामायण का विभिन्न धर्मों और संप्रदायों से परिचय हुआ जिसके परिणामस्वरूप अनेक अन्य राम कथाओं का जन्म हुआ। इसी कड़ी में कंबोडियन रामायण 'रिआमकेर' का जन्म हुआ जो कि सातवीं शताब्दी के 'वियेल कांटेल' शिलालेख में उल्लेखित है। खास बात यह है कि इस रामायण में हिंदू विचारों को बौद्ध विषयों के अनुकूल बनाया गया है।रामायण के अन्य बौद्ध संस्करण जैसे कि 'हिकायत सेरी रामा' और 'फ्रा लक फ्रा राम' ने तो हिंदू धर्म से अपना जुड़ाव ही खो दिया और अब वे जातक कथाओं के रूप में जाने जाते हैं। बौद्ध धर्म में ऐसी मान्यता है कि जातक कथाएं भगवान बुद्ध के पिछले जन्म की कहानियां हैं। 850 AD से 950 AD के बीच लिखी गई थाई रामायण 'रामकियेन' में थेरवाद बौद्ध धर्म के साथ जीवात्मा सिद्धांत (थाईलैंड के मूल निवासियों का सिद्धांत) के तत्त्वों का मिश्रण दिखाई देता है।
कई जैन ग्रंथ भी भगवान श्रीराम से जुड़ाव रखते हैं। हरीभद्र द्वारा प्राकृत भाषा में रचित 'ध्रुतखयाना' में श्री राम को 63वां सकल पुरुष यानी कि महान व्यक्ति माना गया है। हेमचंद्र द्वारा रचित 'त्रिषष्ठीसकलपुरुषचरित्र' भी इस बात की पुष्टि करता है। जैन धर्म में भगवान राम को आठवां बालभद्र यानी कि वह व्यक्ति जिसने आदर्श जैन जीवन जिया है, भी माना गया है।
श्रीराम से मेल मिलाप रखने में सिख धर्म भी पीछे नही है। रामायण का सिख संस्करण भी है जो कि सिखों के धर्मग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब' में उल्लिखित है तथा यह आध्यात्मिक रूप में वर्णित है। इसमें राम को 'अंतरात्मा', लक्ष्मण को 'मन,' सीता को 'बुद्धि' तथा रावण को 'अहंकार' के रूप में देखा गया है। गुरु गोविंद सिंह द्वारा लिखा गया सिखों के 'दशम ग्रंथ' में एक रचना है जिसे 'चौबीस अवतार' के नाम से जाना जाता है। इस रचना में राम बीसवें अवतार के रूप में वर्णित किए गए हैं। इसके अलावा गुरु गोविंद सिंह ने 'राम अवतार' के नाम से एक अन्य रचना भी की है जिसमें श्री कृष्ण अवतार भी सम्मिलित है।
अगर अभी तक आप ऐसा सोच रहे थे कि सिर्फ भारत में जन्मे धर्मों ने श्री राम को अपनाया है तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। इस्लाम ने भी भगवान राम पर उतना ही प्यार और अधिकार दिखाया है। 14वी सदी में बंगाल के मुस्लिम पठान शासकों ने संस्कृत में लिखी रामायण का बंगला भाषा में अनुवाद करवाया। ऐसा करने के पीछे उनका उद्देश्य मात्र श्री राम से लगाव और अपनी भारतीय संस्कृति से प्यार रहा। केरल और लक्षद्वीप के मुसलमान तो मप्पिला गीतों पर खेमार नृत्य कर रामायण के ऊपर प्रस्तुति देते हैं। 'मप्पिला' गीतों की एक इस्लामिक शैली है जिसमें अरबी व मल्यालम भाषाओं की काव्य संरचना एवं ढांचों का प्रयोग किया जाता है तथा खेमार नृत्य एक प्रकार का कम्बोडियन नृत्य है।
धर्मों के साथ-साथ प्रभु राम की कथा ने अलग अलग प्रान्तों को भी जोड़ने का काम किया है। उड़ीसा में जहां उड़ीया भाषा में 'विलंका रामायण' और 'जगमोहन रामायण' है तो वहीं बंगाल की संस्कृति में 'कृतिवासी रामायण' प्रख्यात है। सुदूर दक्षिण में कन्नड़ भाषा में 'श्री रामायण दर्शनम' और 'तोरावे रामायण' है। मल्यालम भाषा में 'अध्यात्मरामायणम् किलिपट्टू', गोआ में कोंकणी भाषा में 'रामायणु', मराठी में 'भावार्थ रामायण', कश्मीर में कश्मीरी भाषा में 'रामावतार चरित्र' और अवधि में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा कृत 'रामचरितमानस' सुप्रसिद्ध है।
श्री राम की कहानी में जन- जातियाँ भी हैं और तथाकथित नीच समझी जाने वाली जातियाँ भी, ब्राह्मण भी हैं और क्षत्रिय भी। धनवान भी हैं और गरीब भी। जिस प्रकार से इस कहानी ने देश के हर व्यक्ति को छुआ है, चाहे वह किसी भी धर्म, प्रांत, श्रेणी या जाति का हो, यह कहना कदापि गलत नहीं होगा कि रामायण की कथा ने पूरे देश को एक धागे में पिरो रखा है। राम, भारत के प्रत्येक जन के तन-मन में बसे हैं इसलिए राम कथा अमर है।
राम की ज़रूरत समाज को हमेशा ही रहेगी और हर काल में नई-नई रामायण लिखी जाएंगी जो समाज तक श्री राम के संदेश आवश्यकतानुसार पहुँचाते रहेंगे। हमें वर्तमान परिस्थितियों में इस बात को समझना चाहिए और द्वेष को त्याग कर प्रेम से मिल जुलकर अपने देश को राममय बनाकर रहना चाहिए। इस प्रकार तुलसीदास जी ने सालों पहले पूरे लेख का सार समझा दिया था -
नाना भाँति राम अवतारा।
रामायन सत कोटि अपारा।।
आज इसे समझ कर प्रभु श्री राम के सिद्धांतों पर हमें अमल करने की आवश्यकता है। राम, भारत की आत्मा हैं व रहेंगे और रामायण, भारत की 'अमिट विरासत'।
By-:सीमांकन सहाय