एक दलित लड़की के माया से मायावती बनने का सफर

एक लड़की एक बड़े से हॉल के एक कमरे में अपने आप को बंद किए हुए है जिसको बाहर रेप करने की, जान से मारने की भद्दी गालियों की गूंज सुनाई दे रही है, वह लड़की जिसकी मदद के लिए पुलिस तक नहीं पहुंची। मायावती जो स्त्री होकर भी स्त्रियों की नफरत का शिकार हुई तथा जिसने चार बार एक प्रदेश की मुख्यमंत्री रहने के बावजूद भी दलित होने के नाते खुद को समय-समय पर लोगों की हंसी का पात्र बना हुआ पाया। माया वह लड़की जिसके घोर विरोधी तक यह कहते नजर आए हैं कि लॉ एंड ऑर्डर के मामले में बहन जी का कोई जवाब नहीं है।

September 8, 2021 - 15:23
December 9, 2021 - 11:12
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एक दलित लड़की के माया से मायावती बनने का सफर
Mayawati @Business Standard

एक लड़की एक बड़े से हॉल के एक कमरे में अपने आप को बंद किए हुए है जिसको बाहर रेप करने की, जान से मारने की भद्दी गालियों की गूंज सुनाई दे रही है, वह लड़की जिसकी मदद के लिए पुलिस तक नहीं पहुंची। मायावती जो स्त्री होकर भी स्त्रियों की नफरत का शिकार हुई तथा जिसने चार बार एक प्रदेश की मुख्यमंत्री रहने के बावजूद भी दलित होने के नाते खुद को समय-समय पर लोगों की हंसी का पात्र बना हुआ पाया। माया वह लड़की जिसके घोर विरोधी तक यह कहते नजर आए हैं कि लॉ एंड ऑर्डर के मामले में बहन जी का कोई जवाब नहीं है।

दिल्ली की दलित लड़की माया : 

माया जिसका जन्म दिल्ली के एक सामान्य परिवार में हुआ और जिसकी आंखों में सपना था ‘ भारतीय प्रशासनिक सेवा’ यानी आईएएस अफसर बनने का। जिस देश में लड़कियां आज भी अच्छी शिक्षा से वंचित रह जाती हैं, माया ने उस दौर में दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कॉलेज से पहले कला में स्नातक किया फिर 1976 में मेरठ विश्वविद्यालय से B.Ed तथा 1983 में दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। एलएलबी की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात माया ने प्रशासनिक सेवा की तैयारी और साथ में दिल्ली के एक स्कूल में शिक्षण कार्य करने को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाते हुए अपना समय बिताया, जिससे कि अर्थव्यवस्था उसकी तैयारी के मार्ग में रोड़ा ना बन पाए।

ममता एक विद्रोही : 

माया जिसने समाज के रीति-रिवाजों से इतर हटकर कभी शादी नहीं करने का फैंसला लिया। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की माया के व्यक्तित्व के सामने पाखंडवाद मिमियाता नजर आता है। माया जो परंपरागत सजने-सँवरने को कब का पीछे छोड़ते हुए अपने कदम आगे बढ़ा चुकी है। एक स्त्री जो पुरुषों की बराबरी नहीं करती वरन् पुरुषों को बतलाती है, दिखलाती है कि एक स्त्री कैसे काम करती है, वह लॉ एंड ऑर्डर के माध्यम से उस पुरुषवादी मानसिकता को बताती है कि उसका ओहदा समाज में क्या है, जो अपनी मर्दानगी के दम पर प्रदेश में उत्पात मचाते हैं। जब देश संपूर्ण क्रांति में पूर्ण आहुति देते हुए इंदिरा की ओर लौट रहा था माया ने उक्त समय में तमाम विरोधों और लांछनों के बावजूद काशीराम के घर पर रहने का निर्णय किया और उस पर अडिग रही थी। यह वह हौसला था जिसने ‘माया को मायावती’ बनाया।

दलितों की नेता : 

आज बाबा साहेब और मान्यवर कांशीराम जी के बाद अगर दलितों के कुछ नेता दिखाई देते हैं तो यह कहने में कोई आश्चर्य नहीं होगा कि मायावती को शीर्ष पर खड़े नेताओं में गिना जा सकता है। मायावती को भारत की उस जनता के लिए  देवी कहा जा सकता  है जिनकी भारत के कई हजार साल पुराने इतिहास में दासता के सिवा कोई जगह तक नहीं दिखाई देती हैं। यह दुर्भाग्य कहा जाना चाहिए कि दलितों की एक सबसे बड़ी नेता को समाज के सबसे दलित तबके (औरतों) कि घृणा का शिकार बनना पड़ता है। माया का स्वतंत्र होना उन दबी हुई औरतों को आजादी के बारे में सोचने की छूट देता है जो खुद को पुरुषों से निम्न समझती हैं। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि जिस दिन भी समाज के सबसे दलित वर्ग ने मायावती को अपना नेता मान लिया वह दिन समाज और राजनीति के परिवेश में संपूर्ण क्रांति का दिन होगा।

एक तानाशाह के रूप में माया:

राजनीति को लिखा जाए तो इसकी शुरूआत ही राज शब्द से होती है जिसका अर्थ ही स्वतंत्रता के साथ खड़ा होने की गवाही नहीं देता। पुराने अनुभवों के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि इसका नशा हर नशे के ऊपर सर चढ़कर बोलता है। जो लोग मायावती की राजनीति को करीब से समझते हैं वो लोग जानते हैं कि जब बसपा शासन में होती है तो उसकी सुप्रीमो एक महारानी के रूप में अपने सिंहासन पर विराजमान रहती हैं और उनके सिपहसालार उनके चरणों में, कोई उनकी जूती साफ करता दिखाईं देता है तो कोई किसी जनसभा में उनके साथ मंच साझा करते हुए चप्पल उतार कर मंच पर चढ़ता नजर आता है। और यह भी सच है कि जब तानाशाह किसी पर खफा होता है तो चाहे वह कितना ही करीबी क्यों ना हो उसे एक झटके में बाहर का रास्ता दिखा देने में संकोच नहीं करता। यह देखा गया कि माया शासन में रही हो या विपक्ष में वह अपने किए की बहुत ज्यादा सफाई देती नजर नहीं आई। बहुत कम लोग जानते हैं कि मायावती ने अपनी डेढ़ दशक की राजनीति में कभी भी विधायक या विधान परिषद के सदस्य के रूप में विधानसभा में पैर तक नहीं रखा, उन्होंने कभी विपक्ष की नेता के रूप में विधानसभा में कोई मुद्दा नहीं उठाया। पहली बार 3 जून 1995 वह दिन था जब मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही माया ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में प्रवेश किया था।

राजनीति और मायावती : 

मायावती को सोशल इंजीनियरिंग के ऐसे कोर्स की संस्थापक कहा जा सकता है जिसने राजनीति में तथाकथित समाज के सबसे उच्च वर्ग और सबसे निम्न दर्जे के लोगों को एक मंच पर लाकर न केवल सरकार बनाई बल्कि विपक्षियों को दिखाया भी की सामाजिक समरूपता क्या होती है। मायावती एक लड़की जिसे राजनीति में लाने वाले काशीराम कहते हैं कि तुम आईएएस बनने के लिए नहीं बल्कि आईएएस अफसरों से काम करवाने के लिए पैदा हुई हो। उनके रहते हुए भी माया ने पार्टी में अपने निर्णय स्वयं लेना शुरु कर दिया था जो उनकी ताकत को दिखाता है और उन्हें जया और सोनिया से अलग करता है। जहां सोनिया को मनमोहन की जरूरत पड़ती है और जया कभी भी अपने को एमजीआर से अलग नहीं कर पाती। वहां माया मायावती बनती है। जहां मायावती की सोशल इंजीनियरिंग के सामने मुलायम और कल्याण सिंह जैसे नेता पानी भरते दिखाई देते हैं तो वही खुद उनके साथी एक पैर पर खड़े रहते हैं। वहीं मुख्तार अंसारी जैसे बड़े नेता उनके साथ मंच साझा करते समय चप्पल मंच से नीचे छोड़कर आते हैं। मायावती जिस पर हमले करवाए जाते हैं, जिसे देश में जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़े सूबे की राजधानी के गेस्ट हाउस में बंधक बना लिया जाता है और जान से मारने व रेप करने की कोशिश की जाती है। मायावती एक ऐसी मुख्यमंत्री जिसे भारत के दसवें प्रधानमंत्री वि.पी. नरसिम्हा राव,’ जनतंत्र का जादू’ कहकर संबोधित करते हैं।

लॉ एंड ऑर्डर से भ्रष्टाचार तक का सफर :

जैसे कि लगभग हर नेता पर आरोप लगते हैं, मायावती पर भी रीत के अनुसार आरोप लगे आखिर वह भी थी तो एक ‘राजनेता’ ही। एक बड़ा तबका स्वीकार करता है कि उनके शासनकाल में अपने  को भयमुक्त माहौल जन्मा था, जहां औरतें और लड़कियां अकेले बाहर जाने में कतराती नहीं थी, उनके शासन काल में राजा भैया जैसे अनेक बाहुबली जेल की सलाखों के पीछे नजर आए। हालांकि एक तबका वह भी है जो कहता है कि मायावती ने ‘पत्थरों की सरकार चलाई थी'। यह भी आरोप लगे कि मायावती अपने नेताओं को काम के आधार पर नहीं बल्कि पैसों के आधार पर टिकट वितरित करती हैं और चुनाव लड़ाती हैं। हालांकि माया के संदर्भ में यह भी सुनने को मिलता है कि माया की पॉलिसी साफ थी ‘पैसा दो और विधायक बनो’। हालांकि भ्रष्टाचार के संदर्भ में उनके समर्थक इस बात से साफ इंकार करते नजर आते हैं और मायावाती के भ्रष्ट्राचार से संबंध होने को नकारते नजर आते है। परंतु वो उन्हीं की शासन व्यव्स्था का दौर था जब एनएचआरएम, ताज कॉरिडोर, मनरेगा घोटाला, स्मारक घोटाला, खाद्यान्न घोटाला, धान खरीद जैसे घोटाले हुए।
कोई कितना ही बड़ा समर्थक उनकी समाजसेवी की छवि प्रदर्शित करने का प्रयास करे इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि मायावती ने जिन दलितों को अपना वोट बैंक बनाया उन्हीं के महापुरुषों के स्मारक बनवाने में पैसा हजम कर गई। एक अलग इतिहास है उन पैसों का भी जिनसे एक आम से परिवार में जन्मीं और समाज में दलितों के लिए जीने मरने की कसम खाने वाली नेता अपने लिए स्पेशल विमानों से चप्पलें मंगवाती थी।

इतिहास में चंद्रगुप्त अशोक जैसे राजा हुए हो जो आम परिवारों से थे जिनकी जाति के बारे में हम नहीं जानते हैं। आजाद भारत में लेकिन इस घटना को करिश्में से कम नहीं माना जा सकता कि देश में पहली बार किसी राज्य का मुख्यमंत्री एक दलित बनता है और यह अप्रत्याशित तब हो जाता है जब वह एक दलित होने के साथ औरत भी हो। परंतु क्या आज हमें मायावती उस रूप में दिखती हैं जो अपने दम पर किसी समय अटल बिहारी बाजपेई जैसे नेताओं की सरकार गिरा देने का सामर्थ्य रखती थी। इस सवाल का जवाब देना मुश्किल है पर कुछ सवाल हैं जिनके जवाब वक्त के गर्भ में जाकर ढूंढने की आवश्यक्ता है जैसे:- क्या कारण है कि आज मायावती को अपना नेता मानने वाला वर्ग उनसे दूर होता दिखाई दे रहा है और क्यों? और क्यों मायावती हमें आज राष्ट्र राजनीति में मुखर नहीं दिखाई देती?

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