रामानुजन: क्यों मनाया जाता राष्ट्रीय गणित दिवस ? जानिए हाल ही में नीना गुप्ता को मिले रामानुजन पुरस्कार के बारे में जो
22 दिसंबर 2021 को राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day) के रूप में मनाया जा रहा है। सिर्फ 32 वर्ष की अल्प आयु में जिसने पूरी दुनिया को अपने गणित का लोहा मनवाया, ऐसे महान गणितज्ञ श्रीनिवासन अयंगर रामानुजन के जन्मदिवस को "राष्ट्रीय गणित दिवस" के तौर पर मनाया जाता है।
हमारे देश को ऐसे ही जगतगुरु की उपाधि नहीं मिली थी। दुनिया के लगभग सभी क्षेत्रों के विकास में भारतीयों ने विश्व भर में अपनी काबिलियत से लोकप्रियता हासिल की थी। जिसमें एक प्रमुख नाम श्रीनिवास अयंगर रामानुजन जैसे महान गणितज्ञ का आता है। दुनिया में कहीं भी संख्या पर आधारित खोज की बात होती है तो वहां भारत के रामानुजन का नाम जरूर आता है। शुन्य और दशमलव जैसी बुनियादी गणितीय खोज भी हमारे देश की देन है। इन मूलभूत खोजों और सिद्धांतों के बिना गणित का कोई भी फार्मूला, आकाश में उड़ान भरने, समुद्रों की गहराई नापने और भौगोलिक पैमाइश के बारे में सोचना मुश्किल था।
नेशनल मैथमेटिक्स डे
आज की तारीख देश और गणित प्रेमियों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। क्योकि आज यानी 22 दिसंबर 2021 को राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day) के रूप में मनाया जा रहा है। सिर्फ 32 वर्ष की अल्प आयु में जिसने पूरी दुनिया को अपने गणित का लोहा मनवाया, ऐसे महान गणितज्ञ श्रीनिवासन अयंगर रामानुजन के जन्मदिवस को "राष्ट्रीय गणित दिवस" के तौर पर मनाया जाता है। जिसकी घोषणा 26 जनवरी 2012 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने मद्रास विश्वविद्यालय से रामानुजन की 125 वीं जयंती समारोह में की थी। इसके बाद से ही हर वर्ष हम 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाते हैं। राष्ट्रीय गणित दिवस के अवसर पर देश भर के विभिन्न राज्यों में स्थित विद्यालयों, विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में गणित से सम्बन्धित विभिन्न शैक्षणिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
रामानुजन का जन्म और बचपन
22 दिसंबर,1887 को श्रीनिवास रामानुजन का जन्म तमिलनाडु के इरोड में एक तमिल अयंगर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता श्रीनिवास अयंगर कपड़े की दुकान पर में काम करते थे। रामानुजन के घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी, फिर भी उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सन् 1903 में कुलभूषण के सरकारी कॉलेज से प्राप्त की। बचपन से ही रामानुजन का गणित के प्रति एक अलग ही लगाव था, यही वज़ह थी कि वे कम उम्र में ही न अनेक प्रमेय व गणित के सूत्रों की रचना कर चुके थे। रामानुजन खुद लोगों से कहते थे कि जब वह किसी सवाल या प्रमेय में उलझ जाते थे, तब उसका हल उन्हें सपने में उनकी कुलदेवी नामागिरी आकर करा देती थी। रामानुजन गणित के किसी भी सवाल को 100 से भी अधिक तरीकों से हल सकते थे।
मात्र 12 वर्ष में किए थ्योरम्स विकसित
रामानुजन का बचपन से ही गणित के प्रति गहरे लगाव का ही परिणाम था कि केवल 12 वर्ष की कम उम्र में ही उन्होंने बिना किसी की सहायता लिए त्रिकोणमिती में महारत पा ली थी। उन्होंने कई थ्योरम्स की भी ख़ोज की। बता दें कि रामानुजन का 17 पन्नों का एक पेपर जो बर्नोली नंबर पर आधारित था, उसका प्रकाशन इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी के जर्नल में हुआ था।
बचपन में रामानुजन ने की थी खुदकुशी की कोशिश
रामानुजन पढ़ाई में सभी विषयों से ज्यादा गणित पर ध्यान देते थे, इसलिए वे बाकी विषयों में कमजोर हो गए थे। जिस कारण 11 वी कक्षा में गणित के अलावा वह किसी भी विषय में पास नहीं हो सके। इससे उनको पढ़ाई के लिए मिली छात्रवृत्ति भी गंवानी पड़ी। जिसका रामानुजन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होने खुदकुशी करने की कोशिश भी की।
मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी
अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद 1912 में आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण रामानुजन को मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क के तौर पर नौकरी करनी पड़ी। यहीं पर एक अंग्रेज सहकर्मी ने उनके गणित कौशल को देखकर उन्हें गणित पढ़ने के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जी एच हार्डी के पास भेजा। प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन से प्रभावित होकर उनका दाखिला ट्रिनिटी कॉलेज में कराया और छात्रवृत्ति दिलवाने में भी मदद की। वर्ष 1916 में रामानुजन ने इसी कॉलेज से बैचलर ऑफ साइंस (Bsc) की डिग्री प्राप्त की तथा वर्ष 1917 मे इनको लंदन मैथमेटिकल सोसायटी में जगह भी दी गई।
हार्डी - रामानुजन नंबर
रामानुजन पर लिखी जीवनी के अनुसार प्रोफेसर जी एच हार्डी एक बार रामानुजन से मिलने अस्पताल पहुंचे। हार्डी ने बताया कि वह आते समय 1729 नंबर की एक खास टैक्सी से आए हैं। तब रामानुजन ने उनकी बात सुनकर बताया कि यह दो अलग क्यूब के योग को दो तरीकों से जानने के लिए सबसे छोटा अंक है। तभी से गणित के जगत में 1729 अंक को हार्डी - रामानुजन नंबर के नाम से प्रचलित हो गया।
'अनंत को जानने वाला व्यक्ति' का निधन
इंग्लैंड जैसी ठंडी जगह पर रहते हुए रामानुजन की तबीयत खराब हो गई और वह साल 1919 में भारत वापस आ गए। टीबी रोग के कारण रामानुजन का 26 अप्रैल 1920 के दिन कुभंकोणम में निधन हो गया। श्रीनिवास रामानुजन को हम 'अनंत को जानने वाले व्यक्ति (Man who Knew Infinity) के रूप में भी हैं। उन्होंने गणित के क्षेत्र में गणितीय विश्लेषण, संख्या सिद्धांत, अनंत श्रृंखला और निरंतर भिन्नों में अपना अहम योगदान दिया है। जिसमें गणितीय समस्याओं के समाधान भी शामिल है।
वर्ष 1991 में उनकी जीवनी "द मैन हू न्यू इंफिनिटी" (The Man Who Knew Infinity) प्रकाशित हुई थी। इसी जीवनी पर आगे चलकर साल 2015 में फिल्म भी बनाई गई थी।
रामानुजन प्राइज फॉर यंग मैथमेटिशियन पुरस्कार
महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की याद में साल 2005 में इस पुरस्कार की शुरुआत हुई। यह पुरस्कार इटली में स्थित अंतर्राष्ट्रीय सैध्दांतिक भौतिकी केंद्र द्वारा दिया जाता है। यह पुरस्कार हर साल विकासशील देशों के युवा गणितज्ञों को दिया जाता है। जिनकी उम्र 45 वर्ष से कम हो। पुरस्कार के साथ उन्हें 15000 अमेरिकी डॉलर नगद भी दिया जाता है
हाल ही में इंडियन स्टैटिस्टकल इंस्टीट्यूट (ISI) कोलकाता में गणित की प्रोफेसर नीना गुप्ता को यह पुरस्कार मिला है। साथ ही वह ये सम्मान पाने वाली भारत की तीसरी महिला है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह पुरस्कार पाने वाले चार भारतीयों में से तीन इंडियन स्टैटिस्टकल इंस्टीट्यूट (ISI) के ही फैकल्टी सदस्य हैं। वहीं रामानुजन पुरस्कार सबसे पहले 2006 में सुजाता रामादोरई को मिला था। उसके बाद साल 2015 में अमलेंदू कृष्णा को तथा 2018 में ऋतब्रत मुंशी को यह पुरस्कार मिल चुका है।