लाला लाजपतराय की 157वीं जयंती पर जानिए उनसे जुड़े कुछ पहलु
साल 1917 में लाला लाजपतराय ने न्यूयॉर्क में अमेरिका की भारतीय होम रूल लीग (Home Rule League) की स्थापना की। जिसके बाद अमेरिकी विदेश मामले की हाउस कमेटी में भारत के पक्ष को रखते हुए उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ एक याचिका भी दायर की थी। यह याचिका कुल 32 पन्नों की थी, जो एक रात में तैयार की गई थी।
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपतराय को दो लोकप्रिय नामों से जाना जाता है ‘पंजाब केसरी' या ‘पंजाब का शेर'। लाला लाजपत राय एक राष्ट्रवादी नेता थे जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए हुए संघर्षों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। आइए रूबरू होते हैं लाला लाजपत राय के जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं से-
लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 में पंजाब के मोगा जिले में धुदीके गांव के अग्रवाल जैन के घराने में हुआ था। राय के पिता का नाम मुंशी राधाकृष्ण अग्रवाल था, जो एक सरकारी स्कूल में ऊर्दू और पारसी भाषा को पढ़ाते थे। उनकी शुरुआती शिक्षा हरियाणा के रेवाड़ी से हुई, जिसके बाद राय ने लाहौर के राजकीय कॉलेज से लॉ की पढ़ाई की। इसी बीच राय ने लाहौर एवं हिसार से अपने वकालती कैरियर की भी शुरआत की। इसके अलावा राय ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता को दिखाने के लिए पत्रकारिता के क्षेत्र में भी योगदान दिया था, जिसमें उन्होंने द ट्रिब्यून सहित कई अखबारों के साथ काम किया या अपनी राजनीतिक गतिविधियों को नियमित रूप से दिखाया। साल 1914 के बाद राय ने वकालत को पूरी तरह से त्याग दिया। इसके साथ ही राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में मूल रूप से अपनी भागीदारी को निभाने लगे।
जब राजनीति में लाला लाजपत राय ने अपना कदम रखा तो उन्हें पहले ब्रिटेन जाने का मौका मिला फिर उसके बाद अमेरिका जाने का। साल 1917 में उन्होंने न्यूयॉर्क में अमेरिका की भारतीय होम रूल लीग (Home Rule League) की स्थापना की। जिसके बाद अमेरिकी विदेश मामले की हाउस कमेटी में भारत के पक्ष को रखते हुए उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ एक याचिका भी दायर की थी। यह याचिका कुल 32 पन्नों की थी, जो एक रात में तैयार की गई थी।
साल 1917 में अमेरिकी सीनेट में इस याचिका पर चर्चा भी की गई थी। इसके बाद कैलिफोर्निया में उनके सम्मान में एक भोज भी आयोजित हुआ जो उनकी अमेरिका में लोकप्रियता के साथ-साथ उनकी प्रतिष्ठा को बयां करता है। साल 1919 में लाला लाजपत राय के भारत लौटने पर वह कांग्रेस के एक बड़े नेता बनकर उभरे। उन्हें 1920 में कलकत्ता में होने वाले अधिवेशन में अध्यक्ष के लिए भी चुना गया। इसके अगले साल ही राय ने लाहौर में सर्वेंट्स ऑफ द पीपुल सोसाइटी नाम की एक संस्था की भी स्थापना की।
आजादी के संघर्ष के लिए उन्होंने बाल गंगाधर तिलक तथा बिपिन चंद्र पाल के साथ मिलकर एक गर्म दल का गठन भी किया था। इन तीनों की जोड़ी को लाल, बाल, पाल की तिगड़ी जोड़ी के नाम से भी जाना जाता है। बता दें कि लाला लाजपत राय ने पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की भी स्थापना की थी । उनकी याद में दिल्ली गेट में एक मार्केट को स्थापित किया गया है जहां उनकी एक प्रतिमा भी लगाई गई है।
साल 1928 में, देश की राजनीतिक स्थितियों पर नजर रखने के लिए भारत में अंग्रेजी सत्ता द्वारा साइमन कमीशन को भारत में लाया गया। इसकी स्थापना के समय भारतीयों ने कमीशन का विरोध भी किया था। वहीं लाला लाजपत राय ने ब्रिटिश साइमन कमीशन का विरोध करने एवं कमीशन का बहिष्कार करने के लिए अहिंसात्मकता को अपनाकर मार्च का नेतृत्व किया, लेकिन अहिंसा होने के कारण प्रदर्शनकारियों के विरोध में पुलिस द्वारा लाठी चार्ज किया गया जिसमें राय गंभीर रूप से घायल हुए और इस बीच 17 नवंबर, 1928 को दिल का दौरा पड़ने से लाला लाजपतराय की मृत्यु हो गई।
यदि यह कहा जाए कि लाला लाजपत राय वह नाम है जिसने भारतीय राजनीति के साथ भारतीय समाज सुधार के क्षेत्र में शिक्षा एवं आर्थिक सुधार में यानी भारत के चहुंमुखी सुधार में एक अहम भूमिका निभाई है तो इसमें कोई दो राय नहीं है। लाला लाजपतराय का यह भी मानना था कि आजादी हाथ जोड़कर नहीं मिलती बल्कि इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है। इसके साथ ही उन्होनें भारतीय समाज को एक दिशा भी प्रदान की।