क्या आप जानते हैं रवींद्रनाथ टैगोर का नोबेल पुरस्कार हुआ था चोरी, जानिए पूरी कहानी

गीतांजलि के लिए साल 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार विश्व-भारती विश्वविद्यालय की सुरक्षा में रखा गया था, लेकिन 2004 में वहां से किसी ने चोरी कर लिया था।

February 3, 2022 - 08:27
February 3, 2022 - 12:11
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क्या आप जानते हैं रवींद्रनाथ टैगोर का नोबेल पुरस्कार हुआ था चोरी, जानिए पूरी कहानी
रवींद्रनाथ टैगोर का नोबेल पुरस्कार हुआ था चोरी- फोटो: gettyimages

गुरु रविन्द्रनाथ टैगोर कवि, कथाकार, निबंधकार और चित्रकार भी थे। उन्होंने 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के अंत में संगीत, भारतीय कला को फिर से जीवन्त कर दिया था। रवीन्द्रनाथ टैगोर के नोबेल पुरस्कार मेडल की चोरी के आरोप में कथित रूप से शामिल होने के आरोप में एक बाउल गायक को गिरफ्तार किया गया था। बता दें कि मेडल की चोरी साल 25 मार्च 2004 को विश्व भारती विश्वविद्यालय के संग्रहालय से हुई थी। जिसके बाद यह बात सामने आई थी कि चोरी में एक बांग्लादेशी और दो यूरोपीय नागरिक शामिल थे।

मेडल चोरी घटना पर राजनीतिक घमासान

मेडल चोरी के बाद राजनीति गरमाने के चलते इस मामले की जांच तत्कालीन प. बंगाल सरकार ने सीबीआई को सौंप दी थी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस चोरी को लेकर केंद्र सरकार को निशाने पर रखते हुए बयान भी दिया था। सीबीआई के एक आला अधिकारी के मुताबिक, सीबीआई टीम इस मामले में अनेक हफ्तों तक विश्व भारती विश्वविद्यालय परिसर मे कैंप डालकर जांच करती रही थी।

साल 2016 में ममता बनर्जी ने इस मामले में आईपीएस अधिकारी राजीव कुमार के नेतृत्व में एक एसआईटी का गठन किया था। प. बंगाल पुलिस का दावा था कि एक मामले की जांच के दौरान एक सिंगर को गिरफ्तार भी किया गया था और तब जांच से पता चला था कि इस मामले में एक बांग्लादेशी समेत दो यूरोपियन लोगों का हाथ शामिल था।

सीबीआई कर रही है जांच

सीबीआई में एसएसपी पद से सेवानिवृत्त हुए एन एस खड़ायत के मुताबिक, राज्य सरकार की सहमति के बाद यह केस सीबीआई के पास आया था। सूत्रों के मुताबिक, विश्वविद्यालय के जिस कर्मचारी पर सीबीआई को जांच के दौरान शक हुआ था उसके बारे में पता चला था कि उसने जिस परिसर में पदक रखा हुआ था, उस परिसर का दरवाजा खोलते ही कहा था कि सर्वनाश हो गया और तब तक यह पता भी नही था कि पदक चोरी हुआ है। लेकिन जांच के दौरान पुख्ता तथ्य ना मिलने पर कार्रवाई नहीं की जा सकी थी। सीबीआई की जांच टीम को कॉलेज के उसी एक कर्मचारी पर शक था लेकिन सबूत न मिलने के कारण इस मामले को बंद कर दिया गया था।

सीबीआई ने इस मामले में गहन जांच करने के लिए अपने दो बार जांच अधिकारियों का भी स्थानांतरण किया था। कोलकाता पुलिस भी इस चोरी में विदेशी हाथ होने की शंका जता रही थी। सीबीआई सूत्रों के मुताबिक, इस मामले को पहले साल 2007 में बंद किया गया था और फिर इसकी जांच साल 2008 में शुरू की गई थी लेकिन सबूत ना मिलने पर साल 2009 में क्लोजर रिपोर्ट लगा दी गई थी।

सीबीआई और कोलकाता पुलिस दोनों के इस मामले में अपने-अपने दावे थे लेकिन इन दावों के उलट एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि कोई भी जांच एजेंसी अभी तक चोरी हुए नोबेल पुरस्कार को वापस नहीं ला सकी है।

गीतांजलि कृति के लिए मिला नोबेल हो गया चोरी

गीतांजलि मूलतः बांग्ला भाषा में लिखी गई है। रविन्द्र नाथ टैगोर जन-जन तक यह साहित्य पहुंचाना चाहते थे, जिसके चलते उन्होंने इसका अंग्रेजी अनुवाद भी किया था। उन्होंने इसमें से कुछ चुनिंदा कविताएं अपने चित्रकार मित्र विलियम रोथेंसटाइन के साथ साझा की थी। टैगोर की तरह उन्हें भी यह कविताएं बेहद पसंद आईं थी और उन्होंने प्रसिद्ध कवि डब्ल्यू.बी.यीट्स को भेजी थी। डब्ल्यू.बी.यीट्स को यह इतनी पसंद आई कि उन्होंने पढ़ने के लिए अनुवादित गीतांजलि मंगवाई। धीरे-धीरे यह किताब प्रसिद्ध होने लगी और 1913 में इसके लिए रवींद्रनाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार विश्व-भारती विश्वविद्यालय की सुरक्षा में रखी गई थी, लेकिन 2004 में वहां से इसे किसी ने चोरी कर लिया था।