सरोजिनी नायडू की 143 वीं जयंती: जानिए भारत कोकिला सरोजिनी नायडू कौन थीं?

सरोजिनी नायडू को महात्मा गांधी ने अपनी खूबसूरत कविता के लिए ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’ नाम दिया था। सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष और भारत में पहली महिला राज्यपाल भी थीं।

March 2, 2022 - 16:59
March 2, 2022 - 17:39
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सरोजिनी नायडू की 143 वीं जयंती: जानिए भारत कोकिला सरोजिनी नायडू कौन थीं?
सरोजिनी नायडू की जयंती-फोटो: सोशल मीडिया

Sarojini Naidu Death Anniversary: 'नाइटिंगेल ऑफ इंडिया' के नाम से प्रसिद्ध सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) की आज, 2 मार्च को पुण्यतिथि है। सरोजिनी नायडू भारत में महिला सशक्तिकरण का चेहरा बनीं। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक महत्वपूर्ण आंदोलन चलाया। सत्याग्रह के एक दृढ़ विश्वास और महात्मा गांधी के करीबी,अनुयायी, सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष और भारत में पहली महिला राज्यपाल भी थीं। साल 1929 में, उन्हें देश में प्लेग महामारी के दौरान उनके योगदान के लिए अंग्रेजों द्वारा कैसर-ए-हिंद पदक से सम्मानित किया गया था। बाद में जलियावाला बाग हत्याकांड से उन्हें बहुत दुख हुआ जिसके बाद उन्होंने साल 1908 में मिला ‘कैसर-ए-हिन्द’ सम्मान भी लौटा दिया था।

सरोजिनी नायडू का जीवन

भारत कोकिला के नाम से प्रसिद्ध सरोजिनी नायडू का जन्म हैदराबाद राज्य में 13 फरवरी साल 1879 को अघोरेनाथ चट्टोपाध्याय और वरदा सुंदरी देवी के यहाँ हुआ था। उनका पैतृक घर ब्राह्मणगाँव बिक्रमपुर, ढाका, बंगाल प्रांत में था। उनके पिता एक बंगाली ब्राह्मण थे और हैदराबाद कॉलेज के प्रिंसिपल थे। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय, किंग्स कॉलेज लंदन में अध्ययन किया, और कैम्ब्रिज के गिर्टन कॉलेज में आगे की पढ़ाई भी की। उन्होंने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की । उनकी मां ने बंगाली में कविता लिखी। उसने कुछ समय के लिए यूरोप की यात्रा की। सरोजिनी नायडू साल 1898 में हैदराबाद लौट आईं। उसी वर्ष, उन्होंने गोविंदराजुलु नायडू, एक चिकित्सक से एक अंतर्जातीय विवाह में शादी की, जिसे “अभूतपूर्व और निंदनीय” कहा गया है। उनके दोनों परिवारों ने उनकी शादी को मंजूरी दी, जो लंबी और सामंजस्यपूर्ण थी। सरोजनी नायडू की मृत्यु 02 मार्च, 1949 को लखनऊ में हुई।

आजादी के बाद उत्तर प्रदेश की पहली राज्यपाल

भारत की स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद वे संयुक्त प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) की पहली राज्यपाल बनीं। संयुक्त प्रांत विस्तार और जनसंख्या की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा प्रांत था। उस पद को स्वीकार करते हुए सरोजिनी नायडू ने कहा था कि मैं खुद को क़ैद कर दिये गये, जंगल के पक्षी की तरह अनुभव कर रही हूं लेकिन वह प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की इच्छा को टाल न सकीं। इसलिए वह लखनऊ में जाकर बस गईं और वहाँ सौजन्य और गौरवपूर्ण व्यवहार के द्वारा अपने राजनीतिक कर्तव्यों को निभाया। साल 1947 से 1949 तक संयुक्त प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) की राज्यपाल बनी।

सरोजिनी नायडू का साहित्यिक परिचय

सरोजिनी नायडू जब बारह वर्ष की थी, जब उन्होंने छह दिनों में 1300 पंक्तियों की एक कविता ‘लेडी ऑफ द लेक’ लिखी थी। उनकी कविताओं की पहली पुस्तक 1905 में लंदन में प्रकाशित हुई थी, जिसका शीर्षक 'द गोल्डन थ्रेशोल्ड' था। उनकी मृत्यु के बाद, नायडू की अप्रकाशित रचनाओं सहित पूरी कविताओं को उनकी बेटी पदमा द्वारा संपादित द फेदर ऑफ द डॉन (1961) में एकत्र किया गया था।

गांधी जी से सानिध्य

सरोजिनी नायडू महात्मा गांधी से साल 1914 में लंदन में मिली। इसके बाद उनके जीवन में क्रांतिकारी बदलाव हुआ और वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ीं। दांडी मार्च के दौरान गांधी जी के साथ सबसे पहले पंक्ति में चलने वालों में सरोजनी नायडू भी शामिल थीं। उन्होंने जीवन-पर्यंत गांधीजी के विचारों और मार्ग का अनुसरण किया। आजादी की लड़ाई में तो उनका अहम योगदान था ही साथ ही भारतीय समाज में जातिवाद और लिंग-भेद को मिटाने के लिए भी उन्होंने कई कार्य किए।