8 अप्रैल:आज ही महान क्रांतिकारी मंगल पांडे को दी गई थी फांसी की सजा,कोलकाता से बुलाए गए थे जल्लाद
8 अप्रैल का दिन भारत के इतिहास के लिए बेहद खास दिन है. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति की चिंगारी भड़काने वाले बैरकपुर रेजीमेंट के सैनिक मंगल पांडे को आज के ही दिन फांसी पर चढ़ा दिया गया था. आज उनकी यह 165 वीं पुण्यतिथि है.
देश की आगे आने वाली पीढ़ियां स्वतंत्र माहौल में सांस ले सकें और उनका भविष्य सुनहरा व सुरक्षित हो सके, इसके लिए देश के कई नौजवानों ने अपने प्राणों सहित अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया. ऐसे में आज 8 अप्रैल का दिन भारत के इतिहास के लिए बेहद खास दिन है. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति की चिंगारी भड़काने वाले बैरकपुर रेजीमेंट के सैनिक मंगल पांडे को आज के ही दिन फांसी पर चढ़ा दिया गया था. आज उनकी यह 165 वीं पुण्यतिथि है. उनकी आजादी की क्रांति की चिंगारी मात्र ने ही ब्रिटिश हुकूमत में इतना डर पैदा कर दिया था कि फांसी की सजा की निश्चित तारीख 18 अप्रैल 1857 से 10 दिन पहले ही 8 अप्रैल 1857 को पश्चिम बंगाल की बैरकपुर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई.
बलिया में जन्मे थे मंगल
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे व माता का नाम अभय रानी पांडे था. मात्र 22 साल की उम्र में ही ही मंगल पांडे ईस्ट इंडिया कंपनी की 34 वी बंगाल इन्फेंट्री में सैनिक के तौर पर शामिल हुए थे. समय के साथ बदलते हालातों ने मंगल पांडे को ब्रिटिश हुकूमत का दुश्मन बना दिया.
बंदूक चलाने से इसलिए किया था इंकार
अगर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत की बात की जाए तो यहीं से ही स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हो गई थी. साल 1850 में सैनिकों को एनफील्ड राइफल दी गई थी. पुरानी रायफलों की अपेक्षा इस शक्तिशाली और अचूक एनफील्ड राइफल को भरने के लिए कारतूस को दातों की सहायता से पहले खोलना पड़ता था. इसके बाद राइफल की नाल में डालना होता था.
आपको बता दें कि, कारतूस के कवर को पानी की सीलन से बचाने के लिए उसमें चर्बी लगी होती थी. इसी बीच खबर यह मिली कि कारतूस में गाय और सुअर के मांस से बनी हुई चर्बी लगी है तो सैनिकों ने इसे ब्रिटिश हुकूमत की सोची - समझी साजिश के तहत हिंदू - मुसलमानों के धर्म से खिलवाड़ समझा और तभी क्रांतिकारी मंगल पांडे ने कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया.
ब्रिटिश हुकूमत पर पहली चोट करने वाले सैनिक थे मंगल पांडे
कलकत्ता के निकट बैरकपुर परेड मैदान में 29 मार्च 1857 की शाम को रेजीमेंट के अफसर लेफ्टिनेंट बाग द्वारा जोर जबरदस्ती करने पर मंगल पांडे ने उस पर हमला कर दिया. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ किसी भी सैनिक का यह पहला विरोध था. इसके बाद उन पर धार्मिक उन्माद फैलाने का भी आरोप लगाया गया तथा अंग्रेज अफसरों की हत्या के लिए साथी सैनिकों को उकसाने के आरोप में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई. कोई भी जल्लाद उन्हें फांसी देने के लिए तैयार ही नहीं हुआ. मंगल पांडे ने मारो फिरंगियों को का नारा देने के साथ ही अन्य साथी सैनिकों से ब्रिटिश हुकूमत का विरोध करने को कहा और इसके साथ ही मंगल पांडे ने अपनी गोली से सार्जेंट मेजर ह्यूसन को गोली मार दी. वहीं दूसरी ओर, मंगल पांडे ने अपनी गिरफ्तारी से पहले खुद को गोली मारने का प्रयास किया लेकिन गोली का घाव उन पर गहरा नहीं हुआ. जिसके कारण वे बच गए. इसके बाद उनकी गिरफ्तारी हुई और उन पर कोर्ट मार्शल कर 18 अप्रैल 1857 को फांसी देने की सजा की तारीख निश्चित की गई.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, उन दिनों बैरकपुर छावनी में फांसी की सजा देने के लिए जल्लाद रखे जाते थे लेकिन उन्होंने मंगल पांडे को फांसी देने से साफ इंकार कर दिया था. तब अंग्रेजों ने विवश होकर बाहर से जल्लाद बुलाए थे.
कोलकाता से बुलाए गए थे जल्लाद
बैरकपुर में क्रांतिकारी मंगल पांडे को जल्लादों द्वारा फांसी न देने की बात पर ब्रिटिश अधिकारियों ने कोलकाता से चार जल्लाद बुलाए. यह खबर मिलते ही कई सैनिकों में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ असंतोष की भावना भड़क उठी. इसी वजह से अंग्रेज अधिकारियों ने आनन-फानन में चुपचाप मंगल पांडे की फांसी की निश्चित तिथि से 10 दिन पहले ही 8 अप्रैल 1857 को सुबह तड़के ही उन्हें फांसी पर लटका दिया.
8 अप्रैल की सुबह जब यह खबर अन्य सैनिकों को पता चली तो एकदम मातम पसर गया। वहीं दूसरी तरफ क्रांति की ज्वाला और तेज हो गई.