Rani Lakshmibai Death Anniversary: आज है रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि, नाना साहब और तात्या टोपे से सीखी थी घुड़सवारी

Rani Lakshmibai : नारी शक्ति की मिसाल देने वाली उन्हीं रानी लक्ष्मीबाई की 18 जून को पुण्यतिथि है। रानी लक्ष्मीबाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ऐसी नायिका थीं, जिनके पराक्रम और साहस का जिक्र आज भी समय-समय पर होता है।

June 18, 2022 - 08:45
June 18, 2022 - 19:15
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Rani Lakshmibai Death Anniversary: आज है रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि, नाना साहब और तात्या टोपे से सीखी थी घुड़सवारी
Rani Lakshmibai

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी... रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य और पराक्रम पर लिखी गई, प्रसिद्ध कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान की यह यादगार कविता आज भी युवाओं में देशभक्ति के जोश को भरने का काम करती है। नारी शक्ति की मिसाल देने वाली उन्हीं रानी लक्ष्मीबाई की 18 जून को पुण्यतिथि है। रानी लक्ष्मीबाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ऐसी नायिका थीं, जिनके पराक्रम और साहस का जिक्र आज भी समय-समय पर होता है। रानी लक्ष्मीबाई ने कभी भी ब्रिटिश शासन के सामने झुकना स्वीकार नहीं किया और अंतिम सांस तक झांसी की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लड़ती रहीं। 18 जून को उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।

रानी लक्ष्मीबाई का पराक्रम और साहस आज की महिलाओं के लिए प्रेरणादायी है। उनका जन्म 19 नवंबर 1828 को बनारस के एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह 1857 के पहले 'स्वतंत्रता संग्राम' में ब्रिटिश शासन के खिलाफ बिगुल बजाने वाले नायकों में से एक थीं। उनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था और उन्हें प्यार से मनु कहा जाता था। मनु बचपन से ही शस्त्रों की शिक्षा लेने लगी थी। उन्होंने नाना साहब और तात्या टोपे से घुड़सवारी और तलवारबाजी सीखी। वर्ष 1842 में मनु का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव नवलकर के साथ हुआ था। तब वह केवल 12 वर्ष की थी। शादी के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई पड़ा। शादी के बाद उन्होंने राजकुमार दामोदर राव को जन्म दिया लेकिन कुछ महीनों के बाद उनके बच्चे की मृत्यु हो गई। गंगाधर राव ने तब अपने छोटे भाई के बेटे को गोद लिया और उसका नाम दामोदर राव रखा।

कुछ समय बाद खराब स्वास्थ्य के कारण गंगाधर राव की मृत्यु हो गई। अंग्रेज किसी भी तरह से झांसी को ब्रिटिश कंपनी का हिस्सा बनाने की साजिश में लगे हुए थे। उन्होंने दामोदर राव को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद झांसी की बागडोर लक्ष्मीबाई के हाथ में आ गई। तब अंग्रेज एक के बाद एक भारतीय रियासतों पर अधिकार कर रहे थे, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने साफ कह दिया था- 'मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी'। महज 29 साल की उम्र में रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी छोटी सी सेना के साथ कई दिनों तक अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी। इस दौरान उन्होंने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। उनकी वीरता आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

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