Kavach: भारतीय रेलवे को मिला स्वदेशी तकनीक 'कवच', जो रेल हादसों को पूरी तरह शुन्य कर देगा
भारत ने स्वदेशी ट्रेन दुर्घटना सुरक्षा "कवच" तैयार किया है जो रेल हादसों को रोकने में काफी मदद करेगा। स्वदेशी तकनीक से बने इस ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम के जरिए रेलवे जीरो एक्सिडेंट के लक्ष्य को हासिल करेगी। जिससे भविष्य में ट्रेनों के टकराने की दुर्घटना न के बराबर हो जायेंगी।
भारतीय रेलवे ने रेल हादसों को कम करने के लिए हाल ही में एक बड़ा कदम उठाया है। भारत ने स्वदेशी ट्रेन दुर्घटना सुरक्षा "कवच" तैयार किया है जो रेल हादसों को रोकने में काफी मदद करेगा। इस स्वदेशी तकनीक को रेलवे ने "कवच" का नाम दिया गया है। इस तकनीक का ट्रायल कल हैदराबाद में हुआ था। जहां दो ट्रेनों को एक ही पटरी पर एक दूसरे की ओर चलाया गया, जिसमें से एक ट्रेन में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और दूसरी ट्रेन में रेलवे बोर्ड के चेयरमैन थे मौजूद थे। दोनों ही ट्रेनों के कोलिजन का आगे और पीछे दोनों ही ओर से सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था। इस दौरान आमने सामने आ रही दोनों ट्रेन अपने आप 380 मीटर पहले रुक गई थी। स्वदेशी तकनीक के माध्यम से बनाए गए, इस ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम के जरिए रेलवे जीरो एक्सिडेंट के लक्ष्य को हासिल करेगी। जिससे भविष्य में ट्रेनों के टकराने की दुर्घटना न के बराबर हो जायेंगी।
कवच का सिकंदराबाद डिविजन में हुआ सफल परीक्षण
राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस के मौके पर कल रेल मंत्री ने साउथ सेंट्रल रेलवे जोन के सिकंदराबाद डिविजन के लिंगमपल्ली - विकाराबाद सेक्शन के बीच स्वदेशी ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम ‘कवच’ का सफल परीक्षण किया। रेल मंत्री के अलावा रेलवे बोर्ड के चेयरमैन व सीईओ विनय कुमार त्रिपाठी और रेलवे के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी परिक्षण हो रहें ट्रेनों में उपस्थित थे। बता दें कि आने वाले वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने करीब 2,000 किमी रेल ट्रैक को कवच (ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम) के अन्तर्गत लाने का ऐलान भी किया था।
https://twitter.com/RailMinIndia/status/1499649496120061954?t=OPxRvJI8O6vijk9IqIyqDQ&s=09
कवच के परीक्षण के लिए रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ट्रेन के इंजन में सवार थे, और परिक्षण के दौरान सामने से आ रहे दुसरे ट्रेन इंजन को कवच लगभग 380 किलोमीटर की दूरी पर रोक देता है। जिसका विडियो रेलमंत्री ने ट्विटर के जरिए शेयर किया है।
2022 के बजट में कवच पर हो चुका है ऐलान
इस साल 2022 के बजट में ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम यानी कि कवच को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी ऐलान कर चुकी हैं। बजट में कहा गया था कि आत्मनिर्भर भारत अभियान के अन्तर्गत स्वदेशी तकनीक कवच को करीब 2,000 किमी रेल नेटवर्क पर लगाया जाएगा। वहीं कवच को वर्तमान में 1,098 किलोमीटर के रूट पर दक्षिण सेंट्रल रेलवे में लगाया जा चुका है। कवच तकनीक को आगे दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-हावड़ा कोरिडोर में भी लगाया जाएगा, जिसकी कुल दूरी 3,000 किलोमीटर बताई जा रही है। इसे पूरे मिशन को रफ्तार प्रोजेक्ट के तहत लगाया जाएगा, जहां रेलवे ट्रैक पर ट्रेन की रफ्तार 160 किलोमीटर प्रति घंटे होती है।
कवच के इस्तेमाल से रेल हादसे हो जाएंगे जीरो
रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि इस कवच (तकनीक) को ट्रेन में लगाने के बाद ट्रेनों के हादसों को पूरी तरह रोका जा सकता है। इस तकनीक पर होने वाले खर्च की बात करें तो प्रति किलोमीटर पर करीब 50 लाख रुपए का खर्च आएगा, जो विदेशी तकनीक से कई गुना सस्ती है। वहीं विदेशी तकनीक जिसका उपयोग दुनियाभर में होता है, उसका खर्च प्रति किलोमीटर 2 करोड़ रुपए आता है।
इस तकनीक से अपने आप रुक जाएगी ट्रेन
कवच तकनीक को प्रमुख रूप से रेल हादसों को रोकने के लिए बनाया गया है। अगर ग़लती से एक ही पटरी पर एक ट्रेन, दूसरी ट्रेन को अपनी तरफ आते हुए देखती है तो वह अपने आप इस तकनीक के जरिए एक तय दूरी पर रुक जाती है। इसके अलावा जब ट्रेन के भीतर लगा डिजिटल सिस्टम किसी मानवीय गलती को पकड़ता है तो भी ट्रेन अपने आप रुक जाएगी। अगर ट्रेन अपनी रफ़्तार से चल रही हो और लाल बत्ती के जलने के बाद भी कोई व्यक्ति अचानक से रेलवे ट्रैक के सामने कूदता है या फिर कोई अन्य तकनीकी समस्या पर ट्रेन के संचालन की नजर जाती है तो कवच ट्रेन को अपने आप रोक देता है।
हर तरह के हादसे को रोकने में सक्षम है कवच
रेलवे अधिकारी का कहना है कि इस स्वदेशी तकनीक की मदद से परीक्षण किया गया है कि कैसे ट्रेनों के आमने सामने की टक्कर को रोका जाए। बता दें कि तकनीक हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो कम्युनिकेशन पर काम करता है, जो ट्रेन की रफ्तार को नियंत्रित करने के साथ-साथ अपने आप ट्रेन को रोकने का काम भी करता है।
आखिर कैसे काम करता है यह कवच ?
रेलवे ट्रैक पर आरएफआईडी टैग के अलावा इसे स्टेशन यार्ड के हर ट्रैक पर लगाया जाता है, साथ ही इसे सिग्नल आईडेंटिफिकेशन में भी लगाया जाता है। जिससे चल रही ट्रेन की लोकेशन और ट्रेन की दिशा का पता लग जाता है। इसी के साथ ऑन बोर्ड डिस्प्ले ऑफ सिग्नल आस्पेक्ट ट्रेन पायलट को सिग्नल चेक करने के अतिरिक्त जब कोहरे के समय में विजिबिलिटी कम हो तो भी यह तकनीक ट्रेन पायलट की मदद करता है। कवच तकनीक लागू होने के बाद यह ट्रैक पर पांच किलोमीटर के दायरे में आने वाली सभी ट्रेनों को अगल-बगल के रेलवे ट्रैक से सुरक्षा मिलनी शुरू हो जाती है। वहीं फिलहाल के समय में ट्रेन पायलट को अपना सिर खिड़की से बाहर निकालकर ही बाहर के सिग्नल को देखते हैं।
साल 2016 में शुरू हुआ था प्रोजेक्ट
जानकारी के लिए बता दें कि कवज का पहला फील्ड ट्रायल साल 2016 के फरवरी में शुरू किया गया था और मई 2017 में इस प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया गया था। इसके बाद प्रोजेक्ट कवच को थर्ड पार्टी के द्वारा इसकी सुरक्षा का जायजा लिया गया। पहले चरण में कवच को 110 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली ट्रेनों के लिए फाइनल किया गया, जिसे बाद में बदल कर 160 किलोमीटर प्रति घंटे से चलने वाली ट्रेनों के लिए भी लागू कर दिया गया है। वहीं रेलवे इस सुरक्षा तकनीक के लिए फिलहाल सप्लायर की तलाश कर रही है।