Book Review: नीम का पेड़
बहुत से पेड़ होते है जिनके फल मीठे होते है , कुछ के फल कड़वे होते है। राजनीति की कहानी को सुनने के लिए कहानीकार एक नीम के पेड़ को सूत्रधार बनाता है और कहानी नीम के पेड़ की तरह ही कड़वाहट और उदासी से भरी हुई है।
पुस्तक का नाम : नीम का पेड़
लेखक का नाम: राही मासूम रज़ा
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
"सत्ता का अपना एक नशा होता हैं और अपनी जात भी | जो भी उस तक पहुँचता हैं उसकी ही जात का हो जाता हैं| जो उसकी रंगत मे नहीं रँगना जानता है वह उस तक कभी नहीं पहुँच सकता | कभी नहीं पहुँच पाता | उस तक पहुँचने के लिए उसकी ताकत को ही सलाम करना पड़ता हैं|"
ऊपर लिखे शब्द "नीम के पेड़" के लेखक राही मासूम रज़ा का कथन है। सोचिए एक देश आज़ाद हुआ, स्वराज्य की आशा तले उसके विकास के हर दावे मरते रहे, राजनेताओं द्वारा राजनीति की नई चालें चली जाती रही, गरीब गरीब बना रहा और शोषित, शोषित ही रहा। यही इस उपन्यास की पृष्ठभूमि है, आज़ाद हिंदुस्तान में कैसे राजनीति , राजनेता और नए समीकरण बदलते और बनते है।
नीम का पेड़ , सामाजिक व्यवस्था , राजनीतिक परिवेश और जन द्वारा सत्ता पर काबिज नेताओ के प्रति जनता का विश्वास अविश्वास सब कुछ अपने के समेटे हुए हैं । उपन्यास के केंद्र में दो मौसेरे भाई है जामिन और मुस्लिम मियां। बुधई जामिन का नौकर है और नीम का पेड़ है जो कहानी का सूत्रधार है जिसके माध्यम से कहानी कही जाती है और जिसने कहानी को अपने सामने घटते हुए देखा है।
इससे पहले की हम आगे बढ़े पुस्तक समीक्षा में हमे जानना चाहिए लेखक के इस पुस्तक का आज के राजनीति के विषय में क्या महत्व है?
इस प्रश्न के उत्तर के लिए जब हम इस कहानी को पढ़ते है तो हम विभिन्न जगह कहानीकार द्वारा की गई टिप्पणी का जिक्र पाते है जहां वो अपने राजनीतिक समझ तथा कटाक्ष का प्रयोग करते हैं। राजनीतिक स्वार्थ तथा सत्ता से चिपके रहने वाले नेताओं के लिए और सत्ता वर्ग के विशेष लोगो के लिए ही शायद वो लिखते होंगे :
"सत्ता का अपना एक नशा होता हैं और अपनी जात भी | जो भी उस तक पहुँचता हैं उसकी ही जात का हो जाता हैं| जो उसकी रंगत मे नहीं रँगना जानता है वह उस तक कभी नहीं पहुँच सकता | कभी नहीं पहुँच पाता | उस तक पहुँचने के लिए उसकी ताकत को ही सलाम करना पड़ता हैं|"
इस कहानी के केंद्र में एक नीम का पेड़ है जो अपने अस्तित्व तथा समय के विषय में विमर्श करते हुए सोचता है और इसी नीम के पेड़ के द्वारा लेखक हमे कहानी तक पहुंचाता है। नीम का पेड़ सोचता है:
"क्या मेरी यादें ही इतिहास बनेगी | मैं एक मामूली नीम का पेड़ हूँ.. तो क्या हुआ समय की कितनी करवटें देखी हैं मैंने, उनके बिना कोई इतिहास बन सकता है क्या ? न जाने कितनों का भविष्य छुपा है मेरी यादों में ..मैं बुधई के दरवाजे पर खड़ा समय को बीतते देखता रहा ..सन 46 में उसने मुझे यहाँ लगाया था अब सन उनीयसी है कितना कुछ बदल चुका है इन बरसों में; एक दुनिया टूट गई; उसकी जगह नई दुनिया बन गई..”
दुनिया बनने और टूटने के क्रम में नीम का पेड़ कहानी कहते रहता है और कहानी राजनीति और उसके बुरे कृत्यों पर एक व्यंग करती हुई नज़र आती है।
अब सोचने वाली बात ये भी है की कहानी का नाम नीम का पेड़ ही क्यों रखा गया होगा? इसपर सोचते हुए ये सोचा जा सकता है शायद लेखक नीम के स्वाद की तरह ही राजनीति पर कड़वी लेकिन सटीक टिप्पणी करना चाहते होंगे।