पुस्तक समीक्षा : जनता स्टोर
छात्र राजनीति पर आधारित उपन्यास की समीक्षा छात्र राजनीति से भागने वाले एक विद्यार्थी द्वारा जिसे प्रत्याशियों से ज्यादा प्रेम नोटा के बटन से है ।
पुस्तक का नाम: जनता स्टोर
लेखक का नाम: नवीन चौधरी
प्रकाशक: राधा कृष्ण प्रकाशन
जनता स्टोर एक उपन्यास है जो छात्र राजनीति के विभिन्न आयामों को अपने आप में समेटे हुए कुछ दोस्तो , प्रतिद्वंदियों और प्रेम की एक अल्हड़ लेकिन परिपक्व समर्पण की कहानी है जिसके केंद्र में छात्र राजनीति है । राजस्थान की राजधानी जयपुर पर आधारित ये कहानी संघर्ष बताती है कैसे प्रेसिडेंट बनने के लिए छात्र संघर्ष करते है और किन स्थितियों से गुजरते हुए एक छात्र नेता तैयार होता है।
जनता स्टोर के बारे में लेखक लिखते : हैं "मज़ेदार बात यह है कि इस मार्केट में कोई जनता स्टोर नहीं हैं; हाँ, बहुत सालों पहले एक हुआ करती थी। लेकिन जिस तरह हमारे जनतंत्र से जन के गायब होने पर भी उसे जनतंत्र कहा जाता है, वैसे ही जनता स्टोर बन्द होने पर भी इस मार्केट को आज भी जनता स्टोर कहा जाता है।"
दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले मेरे साथ के मित्रो का ये कहना है की छात्र राजनीति बड़े राजनीतिक दलों के पिछलग्गू बनने और नेताओं द्वारा मासूम लेकिन चालाक छात्रों का राजनीति द्वारा शोषण है और कुछ नही! कुछ यहीं हाल इस पुस्तक में भी देखने को मिलता है। कैसे मुद्दों को खड़ा किया जाता हैं, कैसे उन्हे बड़ा बनाया जाता है ये इस पुस्तक में बखूबी देखने को मिलता है जो आम तौर में धरातल पर कम ही दिखाईं देता है।
जनता स्टोर उपन्यास के केंद्र में है राघवेंद्र , मयूर और शक्ति सिंह जिनके बीच राजस्थान विश्वविद्यालय का प्रेसिडेंट बनने का संघर्ष उपन्यास का केंद्र है , कैसे जो मयूर राघवेंद्र को चुनाव लडने में मदद कर रहा था वो ही राघवेंद्र के खिलाफ चुनाव लडने लगता है , कैसे शक्ति सिंह का वर्चस्व राजपूतों के बीच में स्थापित होता है और कैसे इन सबको हराकर मयूर जो इन सबमें सबसे छोटा उम्र के हिसाब से है और अनुभव के हिसाब से कैसे चुनाव जीत जाता है, लेकिन चुनाव जीतने की बाबत मयूर एक बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति खो देता है।
कैसे एक लडक़ी जिसका बलात्कार हुआ है और राजनीति का मुद्दा बनाकर वह अपने बॉय फ्रेंड पर ही अपने दूसरे बलात्कार का आरोप लगा देती है ये सब घटनाक्रम उपन्यास को रोमांचक और कहीं-कहीं थोड़ा डरावना बनाते है। लेकिन इससे पहले उपन्यास मार्मिकता का दर्शन देता है जब लेखक लिखते है:
"हमारे यहाँ रेप के मामलों में जो अपराधी होता है, उसे सजा मिलेगी कि नहीं; कोई नहीं कह सकता। लेकिन जिसके साथ यह दुर्घटना हुई हो, उसे दोतरफ़ा सजा मिलती है। पहली सजा बलात्कार से मिला मन और तन का घाव और दूसरी सजा समाज से मिला तिरस्कार और घृणा जो उसे मानसिक रूप से कमज़ोर करता है। उसके साथ अपने घर के लोग भी ऐसे बर्ताव करते हैं, जैसे गलती अपराधी ने नहीं, लड़की ने ही की हो”।"
उपन्यास जातिवाद किस तरह से राजनीति और खासकर छात्र राजनीति में पैठ बना चुकी है उस पर काफी कुछ लिखता है और कैसे राजपूत , ब्राह्मण और अन्य वोट के लिए प्रत्याशी नीति बनाते है प्रलोभन देते है या फिर जाति अहंकार का प्रयोग करते है उसका अच्छा उदहारण मयूर , राघवेंद्र और शक्ति सिंह द्वारा जो किया गया उससे देखा जा सकता है।
खास बात है पुस्तक का आम विषय ( छात्र राजनीति ) में होने के बावजूद उसे किस कदर मनोरंजक, दिल पकड़ और सांस उखड़ने के लिए बनाया गया है और जीवन के दोस्त के साथ और दोस्त के धोखे देने के बाद की स्थिति पर भी ध्यान दिया गया है।
उपन्यास आज की स्थिति में भी काफी सटीक है काफी सवाल उठते है जैसे छात्र राजनीति का अब उद्देश्य क्या लॉन्चिंग के लिए किया जायेगा या फिर इसका उद्देश्य छात्र और विश्वविद्यालय के विकास के लिए किया जा सकता है।
प्राय हमारे विश्वविद्यालयो की स्थिति एक जैसी ही है जैसा जनता स्टोर में बताया गया है।
लेखक नवीन चौधरी