Ramdhari Singh Dinkar: ‘दिनकर’ जिनकी कविता में थी सत्ताओं को हिलाने की ताकत
Ramdhari Singh Dinkar: सत्ता में रहते हुए सत्ता के सर्वोच्च नेता के खिलाफ कविताएं लिखने वाले रामधारी सिंह दिनकर आज ही के दिन हमें छोड़कर चले गए थे. आज के अधिनायक वाद के दौर में जब साहित्य का एक बड़ा तबका सत्ता के सामने नतमस्तक हुआ पड़ा है. ऐसे वक़्त में दिनकर की कविताएं हमें उम्मीद देती हैं. चूंकि दिनकर जनकवि कवि थे, वो जनता के लिए लिखते थे, जनता के हक में लिखते थे और जनता के हक़ में लिखने वाले बगावत भी लिखते हैं.
कांग्रेस के सांसद रहते हुए बासठ का चीन युद्ध हारने के बाद वो नेहरू के लिए लिखते हैं-
घातक है,,जो देवता-सदृश दिखता है, लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है।
जिस पापी को गुण नहीं, गोत्र प्यारा है, समझो, उसने ही हमें यहां मारा है।
जिस शख़्स को टीटो और नासिर सलाम करते थे उस शख्श के लिए ये लाइनें सिर्फ दिनकर ही लिख सकते हैं.
1962 की हार के करीब साठ वर्षों के बाद अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समय सीमा पर चीन से संघर्ष की स्थिति बनी है। ऐसे में, दिनकर जी ये वाक्य बहुत ही प्रासंगिक हैं। चीन के खिलाफ कवि का गुस्सा जैसे भारतीय जनमानस में अब तक पलता आ रहा हो!
कुत्सिक कलंक का बोध नहीं छोड़ेंगे, हम बिना लिए प्रतिशोध नहीं छोड़ेंगे,
अरि का विरोध-अवरोध नहीं छोड़ेंगे, जब तक जीवित हैं, क्रोध नहीं छोड़ेंगे।
दिनकर की बात हो और रश्मिरथी के उस प्रसंग का ज़िक्र ना हो तो आधूरापन लगता है जिसमें कृष्ण दुर्योधन को चेतावनी देते हुए कहते हैं-
दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम। हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे! दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशिष समाज की ले न सका, उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है। हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया, डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले- 'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे, हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे। राष्ट्रकवि कवि दिनकर को शत्- शत् नमन।