Sedition Law: राजद्रोह क़ानून क्या है और इस पर Supreme Court ने रोक क्यों लगाई ?
इस कानून के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ कुछ लिखता, बोलता है या फिर किसी अन्य सामग्री का इस्तेमाल करता है, जिससे देश और संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है तो उसके खिलाफ IPC की धारा 124A के तहत केस दर्ज हो सकता है। इसके अलावा अन्य देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने पर भी राजद्रोह के तहत मामला दर्ज किया जाता है।
राजद्रोह कानून का उल्लेख भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (IPC Section-124A) में है। इस कानून के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ कुछ लिखता, बोलता है या फिर किसी अन्य सामग्री का इस्तेमाल करता है, जिससे देश और संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है तो उसके खिलाफ IPC की धारा 124A के तहत केस दर्ज हो सकता है। इसके अलावा अन्य देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने पर भी राजद्रोह के तहत मामला दर्ज किया जाता है।
इस कानून का लंबे वक्त से देश में विरोध किया जा रहा है। विरोध करने वाले लोगों का तर्क है कि ये कानून अंग्रेजों के जमाने में बना है। हालांकि ये बात बिल्कुल ठीक भी है क्योंकि ब्रिटिश शासन में ही साल 1870 में इस कानून को बनाया गया था। उस समय इस कानून का इस्तेमाल अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत और विरोध करने वाले लोगों की आवाज़ को दबाने के लिए किया जाता था।
अब सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 124A यानि कि सेडिशन, यानि कि राजद्रोह के कॉन्स्टिट्यूशनल वैलिडिटी पर सुनवाई करते हुए 162 साल पुराने इस कानून पर अंतरिम रूप से रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट में चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमन्ना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली के तीन सदस्यीय बेंच ने यह ऐतिहासिक फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह आदेश दिया कि जबतक केंद्र इन सारे प्रावधानों पर पुनर्विचार कर इसके प्रोविज़न्स में बदलाव नहीं करती है तबतक सिडिशन के तहत किसी पर प्राथमिकी दर्ज़ ना की जाए और ना ही पुराने किसी केस में इन्वेस्टिगेशन या कठोर कदम उठाए जाएं। अर्थात धारा 124A के तहत लगाए गए आरोपों के संबंध में सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही अंतरिम रूप से स्थगित रहेगी।
वहीं बीती दो सुनवाईओ में केंद्र की तरफ़ से काउंटर एफिडेविट सबमिट नहीं किया गया था जिस कारण सरकार का प्रथम दृष्टया इस पर विचार स्पष्ट नहीं हो पा रहा था। लेकिन आज सुनवाई शुरू होते ही सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र इस कानून के प्रावधानों पर पुनर्विचार करने को तैयार है और उन्होंने कोर्ट से यह भी अपील की कि जब तक केंद्र इस पर कोई कॉल न ले ले तब तक इस मामले में आगे किसी भी सुनवाई को टाला जाए।
पीटीशनर्स की तरफ़ से अपीयर हो रहे सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और गोपाल शंकरनारायण कोर्ट से इसपर अंतरिम रोक लगाने की अपील कर रहे थे।
बेंच ने पिछली सुनवाई में सॉलिसिटर जेनरल से यह सवाल भी पूछा था कि जब तक केंद्र इस मामले में कोई बदलाव नहीं करती या फैसला नहीं आ जाता, क्या तब तक केंद्र सरकार की तरफ़ से राज्यों को यह निर्देश दिया जा सकता है कि वो इस कानून के उपयोग पर अंतरिम रोक लगा दें?
जहां तुषार मेहता इस पक्ष में बिल्कुल भी नहीं दिखे। उन्होंने विनोद दुआ के मामले में दिए गए एक डिसीज़न का ज़िक्र करते हुए कहा कि वो राज्यों को यह निर्देश जारी करेगी कि उस आदेश का पालन वो ईमानदारी से करें।
बता दें कि विनोद दुआ पर सेडिशन मामले में कोर्ट ने कहा था कि सिडिशन के मामले तभी दर्ज़ किये जाएं जब पुलिस अधीक्षक लिखित में इसका कारण दें।
वहीं कपिल सिब्बल ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि अगर यह कानून असंवैधानिक है तो बात वहीं खत्म जो जाती है। किसी पुलिस अधीक्षक को इसकी ज़िम्मेदारी सौंपना बेकार है।
सभी पक्षों को सुनने के बाद बेंच ने थोड़ा समय लेते हुए इस पर फैसला देते हुए अंतरिम रूप से कानून पर रोक लगा दी।
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सेडिशन के कॉन्स्टिट्यूशनल वैलिडिटी को चैलेंज करने वाली बैच ऑफ पीटीशन्स की सुनवाई कर रही थी। कोर्ट में सेडिशन को चैलेंज करने वाले 9 पीटीशन्स पेंडिंग हैं जिसमें एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी के पीटीशन्स भी शामिल हैं।
यह जानना अहम है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 9 महीने पहले भी सुनवाई की थी जब चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमन्ना ने इसे एक कोलोनियन लॉ बताते हुए कहा था कि क्या आज़ादी के 75 वर्षों बाद भी देश में इस कानून की ज़रूरत है? उन्होंने इसकी तुलना एक आरी से की थी जिसे एक अगर एक पेड़ काटकर अगर फर्नीचर बनाने कहा जाता है लेकिन वो पूरे जंगल को ही काट देता है। उन्होंने कहा था कि एक पक्ष इसका इस्तेमाल दूसरे पक्ष की आवाज़ को दबाने के लिए करता है।