Book Review: नेहरू और बॉस

हम आज जिस दौर में रह रहे है , हमारे समाज का इतिहासबोध और इतिहास को समझने की काबिलियत लगातार घटती जा रही है और हमारे संपूर्ण राष्ट्र के लोग इतिहास ना जानने के कारण , ध्रुवीकरण की राजनीति के शिकार होते हुए , एतिहासिक संदर्भों और घटनाक्रम से अपरिचित होने की स्थिति में मिथकों को सत्य मान लेते

March 15, 2021 - 09:43
January 2, 2022 - 06:23
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Book Review: नेहरू और बॉस

हम आज जिस दौर में रह रहे है , हमारे समाज का इतिहासबोध और इतिहास को समझने की काबिलियत लगातार घटती जा रही है और हमारे संपूर्ण राष्ट्र के लोग इतिहास ना जानने के कारण , ध्रुवीकरण की राजनीति के शिकार होते हुए , एतिहासिक संदर्भों और घटनाक्रम से अपरिचित होने की स्थिति में मिथकों को सत्य मान लेते है। 

बीते हफ्ते से तीन हफ्ते पहले हमने एक बड़ी सही पुस्तक पढ़ी जिसे लिखा है रुद्रांगशु मुखर्जी ने और पुस्तक का नाम है " नेहरू व बोस समांतर जीवनप्रवास " जिसका अंग्रेजी नाम है "Nehru and Bose: Parallel Lives"।

पुस्तक 7 अध्याय में है जिसमें दोनो नायकों( नेहरू और बोस) के बड़े होने के समय से उनके शिक्षा ग्रहण करने से , उनके राजनीति में आने की कहानी है, उनके कांग्रेस में खुदको समाहित करने की कहानी है फिर दोनो के जीवन में प्रेम और विवाह ( नेहरू का कमला से , बोस का एमिली से) की स्थिति को समझाया गया है और उसके बाद दोनो द्वारा लिखी गई पुस्तक का जिक्र आता है ( बोस ने 'द इंडियन स्ट्रगल' लिखी और नेहरू ने अपनी आत्मकथा लिखी ) , उसके बाद दोनो के कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनने की कहानी काफी विस्तार से और साफ तरीके से बताई गई है और उसके बाद इस बात पर काफी काबिल तरीके से लिखा गया है की क्या कारण थे की बोस और नेहरू की दोस्ती खराब होना शुरू हुई और एक बात जो सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित करती है वो ये है क्या ऐसा हुआ की बोस ने नेहरू के संदर्भ में लिखा की " जवाहरलाल से ज्यादा मुझे किसी ने नुकसान नहीं पहुंचाया" ( Nobody has done more harm to me than Jawaharlal Nehru) उसके बाद पुस्तक में इस बात पर अंतिम अध्याय है की क्या बोस और नेहरू को एक दूसरे की दोस्ती पुनः प्राप्त हुई?

मुझे ये किताब पढ़कर क्या नया सीखने को मिला मैं अब आपको ये बताता हूं :

. बोस का इस्तीफा और गांधी जी की राजनीति 

हम सब एक बात आम तौर पर सुनने को पाते है कैसे गांधीजी ने बोस को इस्तीफे के लिए मजबूर किया और उन्हें कांग्रेस के प्रेसिडेंट के तौर पर काम नही करने दिया।

ये किताब इस बात पर बहुत ज्यादा देर तक बात करती है , एतिहासिक संदर्भों को समझाया गया है , इस वक्त की समस्या और उसके निवारण को समझाया गया है इस किताब में और बहुत तफसील से सारे प्रश्न के उत्तर देने के प्रयत्न किए गए है।

. बोस और नेहरू के निजी जीवन पर बहुत कम काम हुआ है और कैसे उनके निजी जीवन के संकट इन दोनो नेताओ को करीब लेकर आए इस पर इस किताब ने काफी पूर्ण जानकारी दी हैं जैसे बोस कमला नेहरू के इलाज के दौरान उनसे और नेहरू से मिलने जाता है , कैसे इन दो नेताओ के बीच एक भावनात्मक संबंध बनता है और कैसे ये संबंध इनकी दोस्ती को मजबूत करते है इसपर ये किताब काफी कुछ जानकारी देती है।

. एक बात जिसपर बार बार इस देश में सर फुट्टवल होती है और विभिन्न वैचारिक मत अलग अलग बात को सत्य मानने और मनवाने की कोशिश करते है वो है की नेहरू सही थे या बोस सही थे और यकीन मानिए इस किताब ने एतिहासिक दस्तावेजों का प्रयोग कर इस प्रश्न का उत्तर खोजा है और काफी स्पष्टता लाने की कोशिश की है।

. गांधीजी के किस्से और आरोप गांधीजी के हिस्से

ये किताब इस संदर्भ में काफी प्रमाणिक है की ये निष्पक्ष और तटस्थ होकर लिखी गई है। लेखक ने किसी का भी पक्ष लेने की कोशिश नहीं की है ना ही किसी की भी छवि बनाने या बिगड़ने का कार्य किया है।

ये किताब ये भी समझने का प्रयत्न करती है कैसे नेहरू ने बोस के आजाद हिंद फौज के सैनिकों का लाल किले ट्रायल में बचाव किया और कैसे और किन परिस्थितियों में इन दो नायकों का जीवन नाटक गुजरा ।

अब एक बात और ये किताब 280 पन्नो की है और ये किताब इन दो नायकों की दोस्ती की किताब है ना की इन दो नायकों का पूर्ण जीवन विवरण । 

और आपको स्पॉइलर न देने के प्रयास में ये लेख काफी कुछ नही बता रहा हैं बाकी किताब पढ़िए।

इसी पुस्तक को पढ़िए , हम आपसे मिलेंगे अगली बार फिर किसी किताब के साथ किसी लेखक की बात के साथ।

Abhishek Tripathi तभी लिखूंगा जब वो मौन से बेहतर होगा।