Buddha Jayanti: बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर जीवन को खुशहाल बनाने के लिए अपनाएं महात्मा बुद्ध के ये विचार
बुद्ध जयंती (Buddha Jayanti) के दिन महात्मा बुद्ध का जन्म, परिनिर्वाण और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बुद्ध पूर्णिमा का दिन खास है और इस दिन हमें बुद्ध के विचारों को जानने, समझने और अपनाने की कोशिश करनी चाहिए।
आज वैशाख पूर्णिमा है इसे बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन महात्मा बुद्ध का जन्म, परिनिर्वाण और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बुद्ध पूर्णिमा का दिन खास है और इस दिन हमें बुद्ध के विचारों को जानने, समझने और अपनाने की कोशिश करनी चाहिए। बुद्ध महान हैं और उनके कई विचार व्यावहारिक प्रतीत होते हैं जिसे अपने जीवन में अपनाकर हम जीवन को सुखमय बना सकते हैं।
महात्मा बुद्ध के कई ऐसे विचार हैं जिनसे हमारे जीवन के लिए काफी लाभप्रद हैं। जहां जाति के लिए उनके विचार अत्यंत व्यावहारिक प्रतीत होते हैं जिनमें उनका सबसे मूल्यवान विचार ‘आत्म दीपो भाव’ है। ‘आत्म दीपो भाव’ का अर्थ है अपना दीपक खुद बनो।
बुद्ध अपने विचारों में अपना रास्ता स्वयं तलाशने की तथा अपने जीवन के उद्देश्य और दुविधाओं का हल खुद निकालने पर ज़ोर देते हैं। ऐसा करने से बुद्ध प्रत्येक व्यक्ति की क्षमताओं में विश्वास रखते हैं और उनका मानना था कि जब प्रत्येक व्यक्ति विचार करने लगेगा तो रूढ़िवाद का अंत होगा तथा समाज में नवाचार फैलेगा। इसलिए यह विचार जीवन में अपनाने योग्य है, जिसका सीधा अर्थ है कि व्यक्ति जब खुद संघर्ष करेगा तो उसे स्वयं रास्ता मिल जाएगा।
महात्मा बुद्ध (Mahatma Buddha) “मध्यम मार्ग” की भी बात करते हैं व्यावहारिक स्तर पर यह मनुष्य के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकता है। इसका सीधा अर्थ यह है कि हम मनुष्य किसी भी प्रकार के अतिवादी व्यवहार से बचें और जीवन में संतुलन बनाकर चलें। हम एन्द्रिक सूख के प्रति पागल होने का चुनाव न करें और ब्रह्मचर्य के कठोर संयम को भी ना अपनाए जिससे जीवन नीरसता की तरफ़ न बढ़ जाए। बुद्ध यहाँ बीच का संतुलन निकालने की बात करते हैं। उनके विचार पेट के लिए पशु हत्या के खिलाफ़ हैं परन्तु मरे हुए पशुओं को खाएं जाने का समर्थन करते हुए प्रतीत होते हैं।
बुद्ध का तीसरा अनुकरणीय विचार है- संवेदनशीलता। यही वह विचार है जिसकी वजह से उन्हें करुणावतारं बुद्ध कहा जाता है। वे संवेदनशीलता के चरम पर पहुंचते हैं। संवेदनशीलता का अर्थ है दूसरों के दुखों को खुद अनुभव करने की क्षमता। यही भावना समाज में परोपकार को जन्म देती है। हमें भी दूसरों के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है यही आज की मांग भी है।
महात्मा बुद्ध को पढ़ते वक्त उनके विचार अत्यंत प्रासंगिक प्रतीत होते हैं। बुद्ध के इन विचारों को अपनाकर हम जीवन को एक सही दिशा की ओर मोड़ सकते हैं तथा जीवन में शांति की तरफ़ अपने कदम बढ़ा सकते हैं।