Dr BR Ambedkar Jayanti 2022: बाबा साहेब का वो किस्सा जो आप सभी के लिए जानना है जरूरी

Ambedkar Jayanti 2022: आज़ादी के बाद कांग्रेस के बुलावे पर वो देश के पहले कानून मंत्री बने और भारत का संविधान बनाने में मुख्य भूमिका निभाई जिसमें अछूतता के खिलाफ भी एक प्रावधान शामिल है। अंबेडकर को आज भी दलित और पिछड़ी जातिया भगवान् की तरह पूजती हैं। हालाँकि अंबेडकर के इतने संघर्ष के बाद भी भारत को जातिवाद से छुटकारा नही मिला है।

April 14, 2022 - 19:37
April 14, 2022 - 19:55
 0

जिस लड़के को उसकी जाति यानि कास्ट की वजह से स्कूल में ज़मीन पर बैठाया गया, जिसे स्कूल में कभी कभी बिना पानी पियें भी रहना पड़ा, जिसे जातिगत भेदभाव से बचने के लिए अपना सरनेम तक बदलना पड़ा, जो लड़का कभी पढाई छोड़ कर घर से भाग जाना चाहता था और सोचता था कि वो एक मील में नोकरी करेगा।

वो लड़का कैसे बन गया ना केवल अपनी जाती के लोगों की आवाज़ बल्कि भारत के दलितों और पिछड़ों का सबसे बड़ा नेता?

आज हम बात कर रहे हैं बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर की जिन्हें भारत का संविधान निर्माता कहा जाता है। भीमराव का जन्म 14 अप्रैल 1891 को British India की central province के महु नाम की जगह पर हुआ था जो आज मध्य प्रदेश में ambedka नगर के नाम से जाना जाता है। उनका जन्म महार जाती में हुआ था जिसे अछूत समझा जाता था।

बाबा साहेब अपने 14 भाई बहनों में सबसे छोटे थे। उनके पिता रामजी सकपाल East India Cimpany की सेना में सूबेदार थे। रिटायरमेंट के बाद उनके पिता परिवार के साथ आज के महाराष्ट्र के सातारा में बस गए। कुछ समय बाद वो काम के सिलसिले में खुद कोरेगांव में रहने लगे जबकि परिवार सातारा में ही रहता था। भीमराव ने अपने बड़े भाई के साथ सातारा में स्कूल जाना शुरू किया जहाँ उनसे जातिगत आधार पर भेदभाव किया जाता था।

जहाँ क्लास के बाकी बच्चे एक साथ बैठते थे, भीमराव और उनके भाई को क्लास के एक कोने में दरी पर बैठाया जाता था। वहीं बच्चे तो घड़े से खुद पानी ले सकते थे लेकिन जब कभी भीमराव को प्यास लगती तो बाकी बच्चों से अलग, उन्हें स्कूल का चौकीदार घड़ा ऊपर कर पानी पिलाता था और जब कभी चौकीदार ना हो तो उन दोनों को पूरे दिन बिना पानी पिये ही रहना पड़ता।

इसी कारण भीमराव को एक बार लोगों ने मारा भी था जब वो नल से पानी पीते हुए पकड़े गए थे। हालाँकि उन्हीं के एक ब्राह्मण टीचर भीमराव से काफी लगाव रखते थे, उन्होनें ही भीमराव का सरनेम अम्बावाडेकर से बदलकर अपना सरनेम लगा दिया यानि अंबेडकर कर दिया था ताकि भीमराव को जातिगत भेदभाव का सामना ना करना पड़े।

9 साल की उम्र में भीमराव के साथ एक ऐसी घटना हुई जिसने उन्हें काफी प्रभावित किया।
1901 में उनके पिता ने उन्हें सातारा से कोरेगांव आने को कहा। ट्रेन से मसूर पहुचने के बाद उन्हें तांगा लेकर 10 मील दूर कोरेगांव जाना था लेकिन उनकी जाति जानने के बाद कोई भी तांगेवाला तैयार नही हुआ।

स्टेशन मास्टर की मदद से एक तांगे वाला तैयार तो हुआ लेकिन शर्त ये थी कि तांगा भीमराव और उनके भाई चलाएंगे जबकि तांगे वाला खुद पैदल आएगा। उनकी मुश्किल यहीं खतम नही हुई,जब उन लोगों को रास्ते में प्यास लगी तो आस पास का कोई भी आदमी उन्हें पानी देने के लिए तैयार नही हुआ।

इस घटना ने भीमराव को जाति और अछूतता के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया जिसका ज़िक्र बाद में उन्होंने अपनी किताब Waiting For A Visa में भी किया। जहां उन्होंने लिखा, " इस घटना का मेरे जीवन में एक ज़रूरी स्थान है। ये तब हुआ जब मैं सिर्फ 9 साल का था। लेकिन इस घटना ने मेरे मन पर एक अमिट छाप छोड़ी।"

The LokDoot News Desk The lokdoot.com News Desk covers the latest news stories from India. The desk works to bring the latest Hindi news & Latest English News related to national politics, Environment, Society and Good News.