अंबेडकर जयंती विशेष: BR अंबेडकर को चुनाव जीतने से 2 बार किस पार्टी ने रोका? मस्जिदों के सामने हिंदुओं बैंड बाजे पर क्या थे उनके विचार
डॉ. अंबेडकर ने अपनी किताब “पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन” के पेज नंबर 269 पर लिखा है - “मुसलमानों की मानसिकता गलत तरीके से लाभ उठाने की रही है, जिसका सबूत ये है कि वो गोहत्या का अधिकार और मस्जिदों के बाहर बैंड-बाजे की मनाही की मांग करते हैं।
आज डॉ. आंबेडकर की जयंती है, आज PM मोदी ने अंबेडकर जयंती पर PM संग्रहालय का उद्घाटन किया है. आज हर पार्टी उनकी जयंती जोर शोर से मना रही है वहीं सपा बसपा कांग्रेस भाजपा से लेकर तमाम दल अपने आपको बाबा साहेब का सच्चा हितैषी बता रहे हैं लेकिन सवाल ये है कि आज वोट बैंक के लालच में बाबा साहब को साहब जैसा सम्मान देने वाले दल क्या बाबा साहेब के जीते जी भी उन्हें इतना ही सम्मान देते थे!! ये जानने के लिए आपको पीछे जाना पड़ेगा यानी आजादी के आसपास.
आंबेडकर की समाज सुधारक वाली छवि कांग्रेस के लिए चिंता का कारण थी, यही वजह है कि पार्टी ने उन्हें संविधान सभा से दूर रखने की योजना बनाई. यहां तक कि संविधान सभा में भेजे गए शुरुआती 296 सदस्यों में आंबेडकर नहीं थे. आंबेडकर सदस्य बनने के लिए बॉम्बे के अनुसूचित जाति संघ का साथ भी नहीं ले पाए. उस समय के बॉम्बे के मुख्यमंत्री बीजी खेर ने ये सुनिश्चित किया कि आंबेडकर 296 सदस्यीय निकाय के लिए न चुने जाएं. जब वो बॉम्बे में असफल रहे तो उनकी मदद को बंगाल के दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल सामने आए. उन्होंने मुस्लिम लीग की मदद से आंबेडकर को संविधान सभा में पहुंचाया. यही मंडल बाद में पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने. ये अलग कहानी है कि 1950 में वो पाकिस्तान छोड़ भारत आ गए. सवाल ये भी उठता रहता है की बाद में बाबा साहब ने नेहरू कैबिनेट से इस्तीफा क्यों दिया था?
इसका जवाब खुद बाबा साहेब आंबेडकर ने दिया था उन्होंने कहा था कि 'मुझे कैबिनेट की किसी कमेटी में नहीं लिया गया था. ना ही विदेश मामले की कमेटी में, ना ही रक्षा कमेटी में, मुझे लगा कि मुझे आर्थिक कमेटी में जगह मिलेगी. लेकिन उसमें भी मुझे नहीं लिया गया.मुझे सिर्फ एक मंत्रालय दिया गया जिसमें कोई खास काम नहीं था. अब मैं आपको वजह बताना चाहता हूं जिसने सरकार से मेरा मोह भंग कर दिया. ये पिछडो़ं और दलितों के साथ किए जा रहे बर्ताव से जुड़ा हुआ है. मुझे इसका बहुत दुख है कि संविधान में पिछ़ड़ी जातियों के हितों के संरक्षण के लिए उचित प्रावधान नहीं है, ये कार्य एक आयोग की सिफारिशों के आधार पर होना था. संविधान को लागू हुए एक साल से ज्यादा का समय हो चुका है कि लेकिन सरकार ने अब तक आयोग नियुक्त करने के बारे में सोचा तक नहीं है.' बाबा साहेब आंबेडकर एक बड़े नेता थे लेकिन देश के पहले PM पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें लोकसभा में जाने से एक बार नहीं बल्कि दो बार रोका. बाबा साहेब ने 1952 के आम चुनाव में मुंबई से दावेदारी ठोंकी लेकिन आंबेडकर के खिलाफ कांग्रेस न सिर्फ अपना उम्मीदवार उतारा बल्कि उन्हें हराने के लिए पंडित नेहरु ने खुला प्रचार भी किया. नेहरू जी ने दो बार निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया और आख़िर में आंबेडकर 15 हज़ार वोटों से चुनाव हार गए. हद तो तब हो गई जब आंबेडकर को 1954 में कांग्रेस ने बंडारा लोकसभा उपचुनाव में एक बार फिर हराया. अब आप खुद पढ़कर तय कर लीजिए कि आज आज बाबा साहेब अम्बेडकर के पदचिन्हों पर चलने का दावा करने वाली कांग्रेस क्या वास्तव में अंबेडकर की हिमायती थी!!
खैर, दो तथ्य और गौरतलब है कि जब बाबा साहेब 1952 में लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे तो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया का उस सीट पर क्या रुख था ? गौर तो इस पर भी कर सकते हैं कि जनसंघ का कोई उम्मीदवार उस सीट पर क्यों नहीं लड़ा था? अब बात करते हैं भारत के सबसे बड़े सम्मान यानी भारत रत्न की. बाबा साहेब के प्रति यह कांग्रेस के तिरस्कार का भाव नहीं तो और क्या था कि 1956 में प्रधानमंत्री रहते नेहरू खुद को भारत-रत्न दे दिए मगर उन्हें अंबेडकर याद नहीं आये, इसके बाद 1971 में बेटी इंदिरा ने भी खुद को भारत रत्न दिया, लेकिन उन्हें भी आंबेडकर याद नहीं आये. खुद को खुद ही भारत रत्न देने की कार्ययोजना भारत के लोकतंत्र में इन दोनो के अलावा किसी दूसरे किसी राजनेता ने नहीं की है. इसमें नेहरू-इंदिरा अनोखे हैं. 1984 में राजीव गांधी आये लेकिन उन्हें भी अंबेडकर याद नहीं आये, यह संयोग नहीं बल्कि तिरस्कार की घूँट पी रहे वक्त की प्रतीक्षा का एक प्रतिफल था कि 1989 में एक गैर-कांग्रेसी सरकार बनी तो आंबेडकर को भारत रत्न मिला.
अब अगर चालीस वर्षों में नेहरू-गांधी परिवार ने अंबेडकर को यह सम्मान दे दिया होता, तो ग़ैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह दोबारा तो नहीं दे देते न ? खैर, आज आंबेडकर के लिए PM मोदी जो कर रहे हैं, वही आप कर दिए होते तो मोदी दोबारा नहीं कर देते न ? नेहरू-इंदिरा परिवार ने नहीं किया तभी तो किसी और को आंबेडकर पर काम करने का मौका मिला.
बीते दिनों रामनवमी पर जब पूरे देश में शोभायात्राएं निकाली तब उसको लेकर बहुत बवाल हुआ, कई जगह यात्राओं पर जमकर पथराव, आगजनी और मारपीट हुई जिसकी वजह से MP के खरगोन में और राजस्थान के करौली में हिंदू परिवारों ने पलायन शुरू कर दिया है. आज अंबेडकर जयंती है तो ये भी जान लेते है कि मस्जिद के सामने बैंड-बाजा बजाने को लेकर डॉ. अंबेडकर के क्या विचार थे? दरअसल 1937 में मुसलमानों ने दो मांगें रखीं थीं पहली ये कि गौ हत्या के खिलाफ कानून नहीं बनना चाहिए और दूसरी ये कि मस्जिदों के सामने बैंड-बाजा बजाने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. मुसलमानों की इसी बेतुकी मांग पर डॉ. अंबेडकर ने अपनी किताब “पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन” के पेज नंबर 269 पर लिखा है -
“मुसलमानों की मानसिकता गलत तरीके से लाभ उठाने की रही है, जिसका सबूत ये है कि वो गोहत्या का अधिकार और मस्जिदों के बाहर बैंड-बाजे की मनाही की मांग करते हैं। सभी मुस्लिम देशों में किसी भी मस्जिद के सामने बिना किसी आपत्ति के गाजे-बाजे के साथ गुजर सकते हैं। यहाँ तक कि अफगानिस्तान में भी जहां धर्मनिरपेक्षता को स्वीकार नहीं किया गया है, वहां भी मस्जिदों के पास गाजे-बाजे पर आपत्ति नहीं होती है. परंतु भारत में मुसलमान इस पर आपत्ति करते हैं, सिर्फ इसलिए कि हिंदू इसे उचित मानते हैं. मुसलमानों द्वारा राजनीति में अपराधियों के तौर तरीके अपनाये जाते हैं. दंगे इस बात के पर्याप्त संकेत है कि गुंडागर्दी उनकी राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है जब तक मुसलमान आक्रामक थे, हिंदू सहनशील बने रहे और संघर्ष में मुसलमानों से अधिक नुकसान हिंदुओं को उठाना पड़ा. ”
Article By - शिवम प्रताप