भारत में मौजूद ईंट भट्टा मालिको के यहां कैद हैं सैंकड़ों बंधुआ मजदूर, जानिए इनके बंधुआ मजदूर बनने की कहानी

ऑस्ट्रेलिया के वॉक फ्री फाउंडेशन द्वारा बनाए गए वैश्विक गुलामी सूचकांक 2015 के मुताबिक, विश्‍व के करीब 3,60 करोड़ गुलामों (बंधुआ मजदूर) में से लगभग आधे गुलाम भारत में हैं। वहीं जीएसआई (GSI) की लिस्ट के अनुसार भारत में करीब 1.33 करोड़ से 1.47 करोड़ के बीच बंधुआ मजदूर हैं।

March 30, 2022 - 00:40
March 30, 2022 - 00:55
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भारत में मौजूद ईंट भट्टा मालिको के यहां कैद हैं सैंकड़ों बंधुआ मजदूर, जानिए इनके बंधुआ मजदूर बनने की कहानी
ईट भट्टी में काम करता बंधुआ मजदूर- फोटो: सोशल मीडिया

21वीं सदी के भारतीय बंधुआ मजदूर अभी भी प्रचलित हैं, जो कि एक कड़वा सच है। रोजगार का लालच देकर गांव के भोले-भाले लोगों को भट्टा मालिक अपना बंधुआ मजदूर बना लेते हैं। बंधुआ मजदूरी बेगारी, बाल श्रम, ऋण बंधन, मानव तस्‍करी जैसे रूपों में अभी भी दुनिया भर के देशों में मौजूद हैं। वहीं ऑस्ट्रेलिया के वॉक फ्री फाउंडेशन द्वारा बनाए गए वैश्विक गुलामी सूचकांक 2015 के मुताबिक, विश्‍व के करीब 3,60 करोड़ गुलामों (बंधुआ मजदूर) में से लगभग आधे गुलाम भारत में हैं। वहीं जीएसआई (GSI) की लिस्ट के अनुसार भारत में करीब 1.33 करोड़ से 1.47 करोड़ के बीच बंधुआ मजदूर हैं। हालांकि, भारत के पास इससे संबंधित कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है।

लेबर फाइल में जे. जॉन के अनुसार, भारत के लगभग 472,900,000 श्रमिकों (मजदूरों) में से 5 प्रतिशत से भी ज्यादा मजदूर ईंट भट्टों में काम करते हैं। एनएसएसओ के अनुसार साल 2011-12 में भारत के अन्दर लगभग 50,000 से 1,00,000 ईंट भट्टे चल रहें हैं, जिनमें हजारों लोग बंधुआ मजदूर बनकर ईंट बनानें का काम कर रहे हैं। ऐसी ही एक घटना छत्तीसगढ़ के प्रवासी मजदूरों की है, जिनसे जबरदस्ती बंधुआ मजदूरी कराईं जा रही है।

घटना छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में स्थित भकचौडा गांव की है, जहां प्रवासी मजदूरो को लेबर दलाल रजवा ने अपने एक स्थानीय साथी श्याम लाल के साथ मिलकर प्रतापगढ़ जिले के दादूपुर गांव में राज ईंट मार्का के भट्टा मालिक रमेश के यहां निम्न मजदूरों (विष्णु प्रसाद 60 वर्ष, राम कैलाश कोसले 28 वर्ष, राम देव 26 वर्ष, रानी कोसले 20 वर्ष, भानुराम 30 वर्ष, लूदरी बाई 27 वर्ष, सत्य नारायण 27 वर्ष, गनेशिया बाई 24 वर्ष, पप्पू पुत्र 25 वर्ष, कविता 22 वर्ष) को ईट भट्टे पर ईट बनाने का काम करने के लिए भेजा था।

जिसके बाद श्याम लाल सभी मजदूरों को 30 दिसम्बर 2021 के दिन ईट भट्टे पर छोड़कर वहां से फ़रार हो गया। वहीं जब मजदूरों को भट्टा मालिक द्वारा ईट बनाने के लिए मिट्टी दिखाई गई, तो मजदूरों ने यह कहते हुए अपनी असहमति दिखाई कि ईट बनाने वाली मिट्टी की जमीन पथरीली और कंकड़ वाली है‌ और यहां इस मिट्टी से ईट बनाया जाना बहुत मुश्किल होगा। वहीं समय और श्रम भी अधिक लगेगा, इसलिए हम लोग यहाँ काम नहीं कर पाएंगे, हमें कही और काम पर लगाया जाए। श्रमिकों के अनुसार यहां काम करके न के बराबर ईट का निर्माण संभव था और इन मजदूरों को ईट की संख्या के आधार पर ही पैसा दिया जाता है। जिसके चलते श्रमिकों ने ईट बनाने के काम से असहमति जाहिर की थी।

मजदूरों के अनुसार मजदूरों के द्वारा ईंट बनाने की बात से इनकार करने के बाद भट्टा मालिक रमेश ने गुस्से में आकर कहा कि "मैंने रजवा को पैसा दे दिया है, तो तुम लोगों को कोई पैसा भी नहीं मिलेगा और जब तक चाहूंगा यही काम करवाऊँगा, अब तुम लोगों यही काम करना होगा।" जिस पर आपत्ति जताते हुए मजदूरों द्वारा कहा गया कि हमें कोई पैसा नही मिला है और हम में से यहां कोई भी काम नहीं करेंगा। इस पर भट्टा मालिक द्वारा कहा गया कि तुम लोग कही नही जा सकते हो। वहीं मजदूरों द्वारा जुल्म ज्यादती की शिकायत उच्च अधिकारियों से करने की बात कहने के बाद भट्टा मालिक ने यह कहते हुए मजदूरों को डराने की कोशिश करते हुए धमकी दी कि "सब जगह हमारे लोग हैं, तुम कही भी शिकायत नही कर पाओगें, अब तुम लोग यही रहोगे और यही काम करोगे। जिसके बाद सभी मजदूरों को बंधुआ मजदूर बना लिया गया और ज़ोर जबरजस्ती काम करने का दबाव बनाया गया। वहीं भट्टा मालिक के दबंग क़िस्म के व्यक्तित्व और लट्ठेतो के डर से मजदूर काम करने को मजबूर हो गए।

वहीं इसके बारे में पता तब लगा जब एक मजदूर ने बीमारी के बहाने अपने गांव के लोगों से टेलीफोन के माध्यम से सम्पर्क किया और अपने ऊपर हो रहे अत्याचार के बारे में परिजनों को जानकारी दी। जानकारी मिलने के बाद पीड़ित परिवार के रिश्तेदारों ने छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता लखन सुबोध और छत्तीसगढ़ ऐक्टू राज्य सचिव बृजेन्द्र तिवारी से सम्पर्क किया, जिसके बाद दोनों लोगों ने इस विषय को गम्भीरता से लेते हुए इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) के एक्टू राष्ट्रीय सचिव डॉ कमल उसरी से सम्पर्क किया।

जहां डॉ कमल ने कार्रवाई करते हुए सबसे पहले गोपनीय तरीके से मजदूरों की वास्तविक स्थिति की जानकारी ली और लोकतांत्रिक तरीके से अंतरराज्यीय प्रवासी कर्मकार अधिनियम 1979 एवं अन्य श्रमिक कानूनों का हवाला देते हुए शासन-प्रशासन पर दबाव बनाया। अंततः मजदूरों को उत्तर प्रदेश प्रशासन द्वारा 22 मार्च को ईट भट्टा मालिक से मुक्त कराकर प्रतापगढ़ से एक विशेष वाहन में बैठाकर मजदूरों को उनके निजी आवास पर 23 मार्च को देर शाम तक पहुचा दिया गया है। जहां उनका स्वागत लखन सुबोध ने किया, तो वहीं डॉ कमल उसरी ने फिलहाल प्रशासन को धन्यवाद देते हुए यह सवाल भी किया कि "आखिर आज़ाद मुल्क में मजदूरों को कब तक गुलाम बनाया जाता रहेगा"।

भारत सरकार ने बंधुआ मजदूरी के खत्म करने के लिए पहली बार साल 1976 में कानून बनाया था। जिसमें बंधुआ मजदूरी को अपराध की श्रेणी में रखा गया था। इसके अलावा बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराए गए लोगों के आवास और पुर्नवास के लिए दिशा निर्देश भी इस कानून का हिस्सा हैं। लेकिन दशकों बाद भी भारत मे बंधुआ मजदूरी से जुड़े मामलों का हर दिन दिखाई देना चिंताजनक है।