Global Hunger Index: क्या आप जानते हैं ग्लोबल हंगर इंडेक्स में क्यों है भारत का 101वां स्थान और कैसे किया जाता है इसका निर्धारण?
ग्लोबल हंगर इंडेक्स की ताजा रिपोर्ट में भारत नें 2020 में 107 देशों में से 94 वां स्थान प्राप्त किया था, जो की 2021 में 116 देशों में से 101 वां स्थान यानि ‘सबसे ख़राब’ की श्रेणी में पहुंच गया है। ऑक्साफेम इंडिया के अनुसार भारत का स्थान अपने पड़ोसी राज्यों पाकिस्तान (92), नेपाल(76), बांग्लादेश (76) तथा श्रीलंका (65) से भी नीचे गिर गया है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स यानि प्रति वर्ष वह रिपोर्ट जो Worldwide और welthungerhilfe द्वारा प्रकाशित की जाती हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की गणना चार संकेतको के आधार पर की जाती हैं, जिनमें अल्पपोषण, कुपोषण, बच्चों की वृद्धि दर और बाल मृत्यु दर को शामिल किया जाता है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की पहली रिपोर्ट सन् 2006 में घोषित की गई थी, जो हर वर्ष अक्टूबर में प्रकाशित की जाती है, 2021 का संस्करण इसका 16 वां संस्करण है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भुखमरी की स्थिती को दो मापदंडों ‘शून्य’ तथा ‘सौ’ द्वारा मापा जाता है। “शून्य” का अर्थ सबसे कम भूखमरी से है तथा ‘सौ‘ को सबसे ख़राब देशों की श्रेणी में रखा जाता है। इस रिपोर्ट में भारत नें 2020 में 107 देशों में से 94 वां स्थान प्राप्त किया था, जो की 2021 में 116 देशों में से 101 वां स्थान यानि ‘सबसे ख़राब’ की श्रेणी में पहुंच गया है। ऑक्साफेम इंडिया के अनुसार भारत का स्थान अपने पड़ोसी राज्यों पाकिस्तान (92), नेपाल(76), बांग्लादेश (76) तथा श्रीलंका (65) से भी नीचे गिर गया है।
कैसे कलेक्ट किया जाता हैं ग्लोबल हंगर इंडेक्स के लिए डाटा?
कुपोषण ( ज़रूरत से कम भोजन मिलना ) का डाटा फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन, बाल मृत्यु दर का डाटा UNIGME (UN Interagency Group for Child Mortality Estimation) से लिया जाता है। वहीं निर्बलता और नाटापन ( बच्चे का कद उसकी आयु के अनुपात में कम रह जाना) का डाटा, UNICEF, WHO और वर्ल्ड बैंक द्वारा दिया जाता है।
कैसे करते हैं कुपोषण की स्थिति का वर्गीकरण?
यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कुपोषण के तीन प्रमुख लक्षण नाटापन (Stunting), निर्बलता (Wasting) तथा कम वजन (Underweight) हैं। नाटापन का अर्थ किसी बच्चे के कद का उसकी आयु के अनुपात में कम रह जाना, तथा निर्बलता का अर्थ यदि किसी बच्चे का वज़न उसके कद के अनुपात में कम होना लिया जाता है। वहीं विकासशील देशों में अक्सर पोषण व देखभाल की कमी तथा बीमारियां बच्चों में कम वजन की समस्या का प्रमुख कारण हैं।
देश को अस्वस्थता से निजात दिलाने के लिए किए गए प्रयास
ईट राइट इंडिया मूवमेंट(‘Eat Right India’ Movement): भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा नागरिकों को उचित खाद्य पदार्थों को भोजन में शामिल करने के लिये प्रेरित किये जाने हेतु आयोजित एक आउटरीच गतिविधि।
पोषण अभियान: इसे महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018 में शुरू किया गया, इसका लक्ष्य स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया को कम करना है।
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना: यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित एक केंद्र प्रायोजित योजना है, यह 1 जनवरी, 2017 से देश के सभी ज़िलों में लागू एक मातृत्व लाभ कार्यक्रम है।
फूड फोर्टिफिकेशन: फूड फोर्टिफिकेशन या फूड एनरिचमेंट प्रमुख विटामिनों तथा खनिजों जैसे- आयरन, आयोडीन, जिंक, विटामिन ए और डी को चावल, दूध एवं नमक आदि मुख्य खाद्य पदार्थों में शामिल करना है ताकि उनकी पोषण सामग्री में सुधार हो सके।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013: यह कानूनी रूप से ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% हिस्से को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत रियायती खाद्यान प्राप्त करने का अधिकार देता है।
मिशन इंद्रधनुष: यह 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को 12 वैक्सीन-निवारक रोगों (वीपीडी) के खिलाफ टीकाकरण के लिये लक्षित करता है।
एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना: 2 अक्तूबर, 1975 को शुरू की गई, आईसीडीएस योजना के तहत छह सेवाओं (पूरक पोषण, पूर्व-विद्यालयी गैर-औपचारिक शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच एवं रेफरल सेवाओं) का पैकेज, 0-6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को उपलब्ध कराया जाता है।