बदलते नारों के स्वरूप के साथ बदलता भारत

नारे बदलाव के सूचक, नारे जिन्होंने इतिहास रचा, नारे जिन्होंने इतिहास को बदला, नारे जिन्होंने आजादी दिलाई, नारे जो चुनावी हुए, नारे जिनमें झलकता है धार्मिक उल्लास, नारे प्रतीक हैं उत्साह के, नारे प्रतिरूप है विरोध का।

September 6, 2021 - 15:10
December 9, 2021 - 10:52
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बदलते नारों के स्वरूप के साथ बदलता भारत
प्रतिकात्मक चित्र @Bloombergquint

नारे बदलाव के सूचक, नारे जिन्होंने इतिहास रचा, नारे जिन्होंने इतिहास को बदला, नारे जिन्होंने आजादी दिलाई, नारे जो चुनावी हुए, नारे जिनमें झलकता है धार्मिक उल्लास, नारे प्रतीक हैं उत्साह के, नारे प्रतिरूप है विरोध का। ‘नारा’, राजनीतिक, वाणिज्यिक, धार्मिक और अन्य संदर्भ में किसी विचार या उद्देश्य को बारंबार अभिव्यक्त करने के लिए प्रयुक्त एक आदर्श वाक्य या सूक्ति है। ‘नारा’ शब्द अंग्रेजी के स्लोगन से व्युत्पन्न है।

भारत में नारे या नारों में भारत: यह कहना बिल्कुल भी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि, नारे भारत के मूल में स्थापित है। स्वतंत्रता संग्राम हो या उससे पहले का समय या आजाद भारत, भारत में समय-समय पर नारों का असर देखा जा सकता है। निःसंदेह वे नारे ही थे जिन के मूल में आजादी है ‘इंकलाब जिंदाबाद’,  ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’, ‘आजादी मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ ऐसे बहुत से नारे हैं जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में नई उमंग पैदा की और नया जोश भर दिया।

स्वतंत्रता संग्राम के समय के नारे: 
आज हम जो आजादी का यह पावन महोत्सव हर साल मनाते हैं इनमें उन नारों का विशेष योगदान है, यह ऐसे नारे थे जिन्हें सुनकर भारत के लोग अपने धर्म-जाति को छोड़कर एक होकर,अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। नारे ही थे जिन्होंने ‘मोहनचंद करमचंद गांधी को “गांधी” बनाया और “भगत सिंह” को वीर’, नारे ही थे जिन्हें गुनगुनाते हुए मां भारती के लाल हंसते हंसते फांसी चढ़ गए और फिर जन्में उन नारों में जिन्होंने भारत को उस क्रूर ब्रिटिश हुकूमत से आजादी दिलाई।

आइए देखते है कुछ ऐसे ही नारे जो स्वतंत्रता आंदोलन की जान थे :

इंकलाब जिंदाबाद- भगत सिंह ...
तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा-सुभाष चंद्र बोस ...
करो या मरो-महात्मा गांधी ...
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा-मोहम्मद इकबाल ...
वंदे मातरम-बंकिम चंद्र चटर्जी ...
सत्यमेव जयते-पंडित मदन मोहन मालवीय ...
स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूंगा-बाल गंगाधर तिलक

धार्मिक नारे : धर्म जिस की व्युत्पत्ति का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता पृथ्वी पर सबसे पहला धर्म कौन सा हुआ होगा। कब और कहां किस मनुष्य को ईश्वर की प्राप्ति हुई हो और धर्म इस पृथ्वी पर आया हो। हालांकि कहा जाता है इस पृथ्वी का सबसे पुरातन धर्म हिंदू धर्म है जिसे ‘सनातन’ भी कहा जाता है अर्थात पृथ्वी की शुरुआत के समय से। धर्म के प्रचार प्रसार में भी अहम योगदान दिया है इन छोटे से नारों ने जिसके दम पर अपने अनुयायियों में धर्म के मर्म को पहुंचाया जाता है। पर यह नारे, नारों की बिरादरी में सबसे आक्रोशित जाति के माने जाते हैं। कहां जाता है की यह नारे चाहे तो  सवार दे और चाहे तो बिगाड़ दे। इन नारों की तत्कालिक भूमिका बहुत तीव्र गति से अपना असर दिखाती है। और इन नारों में अपना घमंड होता है जो दिखाता है कि जिस भी धर्म के हो उसी धर्म को सबसे बड़ा दिखाने का प्रयास करते हैं।

राजनैतिक नारे: इन नारों की अपनी एक अलग कहानी और इतिहास है इनको ना किसी धर्म से मतलब है न जाति से इन्हें फर्क नहीं पड़ता कि तुम भूखे हो बदहाल हो या फिर तुम्हारी आजादी तुम से छीनी जा रही है। यह जन्म ही इस मकसद के लिए लेते हैं  कि किस तरह अपने जन्मदाता का परचम, चुनावी समर के सबसे ऊंचे मुकाम पर सुशोभित किया जाए। भारत की आजादी के बाद एक लंबे समय तक इन नारों का भारत पर एक छत्र वर्चस्व कायम रहा, पर एक अल्पविराम के बाद फिर से ये अपनी जड़े जमाने लगे हैं पर इस बार इनका रूप कुछ भिन्न है। ऊपर से तो यह मारे आपको धार्मिक नारो के वेरिएंट में नजर आएंगे पर सूक्ष्मदर्शी टेलीस्कोप से देखने पर आप पायेंगे कि ये वह नारे हैं जो राजनीतिक रूप से धार्मिक उन्माद भड़काने के लिए काम आते हैं।
कुछ इस तरह के नारों में शुमारनारोंका जिक्र किया जाए तो कुछ नारे इस प्रकार हैं:

गरीबी हटाओं- 1971 ( कॉन्ग्रेस )
इंदिरा हटाओं देश बचाओ- 1977( जयप्रकाश नारायण )
सम्पूर्ण क्रांति- उस काल में दिनकर जी की यह कविता बाद में नारा बन गया। “सम्पूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास तुम्हारा है”, “ये नखत अमा के बुझते हैं, सारा आकाश तुम्हारा है।   
आपातकाल के समय ये नारे लोगों की जबान पर थे- "जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हदबंदी में, द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मेरा मर्द गया नसबंदी में।“

आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा जी को लाएंगे-( कांग्रेस )

सौगंध राम की खाते हैं हम मंदिर वहीं बनाएंगे- राम मंदिर आंदोलन के समय इस नारे ने मंदिर समर्थकों को आंदोलित किया था. 

 1984 ( कांग्रेस ) राजा नहीं फकीर है देश की तकदीर है- 1989 के चुनाव में यह नारा बहुत लोकप्रिय हुआ। उस समय यह नारा वीपी सिंह के लिए तैयार किया गया था। इस नारे में फकीर वीपी सिंह को कहा गया ।


 बाबरी ध्वंस के बाद यह नारा आया- “ये तो पहली झांकी है, काशी मथुरा बाकी है”।
अबकी बारी अटल बिहारी- 1998 ( भाजपा )
हर हाथ शक्ति हर हाथ तरक्की’ हर हाथ शक्ति हर हाथ तरक्की’-( कांग्रेस)

जनता कहेगी दिल से, कांग्रेस फिर से’-( कांग्रेस)
अबकी बार मोदी सरकार’-( भाजपा)

अच्छे दिन आने वाले हैं, मोदी जी को लाने वाले-( भाजपा )
जात पर न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मोहर लगेगी हाथ पर- ( कॉन्ग्रेस)

यह इतिहास के वह नारे रहे जिन्होंने अपने आकाओं का परचम चुनावी समर में आसमान के बुलंदियों पर फहराया है।

नारे चाहे धार्मिक हो या राजनैतिक या जनता की आवाज को बहरी सरकारों के कानों तक पहुंचाने वाले यह हमेशा अपना काम पूरी ईमानदारी वह निष्ठा के साथ करते हैं। एक बार को किसी आंदोलन में कोई इंसान गद्दार हो सकता है पर यह नारे कभी भी किसी से गद्दारी नहीं करते। पर आज के समय में यह अपनी गरिमा खोते जा रहे हैं पर शायद इसमें गलती इनकी नहीं इनके प्रयोग करने वालों की हैं जो इन्हें इस रूप में इस्तेमाल करते हैं। ‘भारत तेरे टुकड़े होगें’, ‘हम लेकर रहेंगे आजादी’ हम चाहे भूल गए हो पर यह नारे नहीं भूले कि उस करो ब्रिटिश हुकूमत में किस प्रकार स्वतंत्रता वीरों ने अपनी कुर्बानी के बल पर यह आजादी हासिल की है। हालांकि नारों ने नकारात्मकता का चौगा पहना है पर अभी भी कुछ नारे हैं जो लगातार हमें दिखाते हैं कि हम उस आजादी को क्षीण नहीं होने देंगे जिसका सपना गांधी ने देखा था। ‘सब का साथ,सब का विकास, सब का विश्वास’ जैसे नारे भी हालांकि कभी-कभी ही सही आज के समय भी सुनाई देते है जिससे लगता है कि नारे ही हैं जिन्होंने  हर काल में भारत को संभाले रखा है।

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