बीते 11 महीने में सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के किसानों ने की खुदकुशी, 2020 में किसानों की आत्महत्या के मामले 18% बढ़े
28 अक्टूबर, 2021 को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने भारत में होने वाली आत्महत्याओं पर एक रिपोर्ट पेश की, जिसके आंकड़ों से पता चलता है कि देश भर में किसानों और कृषि मजदूरों की आत्महत्याओं के मामले रुकने की बजाय बढ़ते जा रहे हैं।
देश भर में किसानों और कृषि क्षेत्र से जुड़े मजदूरों द्वारा सबसे अधिक आत्महत्या करने के मामले महाराष्ट्र में सामने आए हैं। वहीं RTI के अनुसार साल 2020 के दौरान देश भर के 10,677 किसानों ने आत्महत्या की थी इन आत्महत्याओं में 5,579 किसान और 5,098 खेतिहर मजदूर शामिल हैं। तमाम सरकारी वादों और प्रयासों के बाद भी देश में किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला रूक नहीं रहा है। कोरोना के समय में कृषि क्षेत्र ने थोड़ी बहुत सकारात्मक बढ़त हासिल की थी। लेकिन साल 2019 के मुकाबले साल 2020 में किसानों और खेतिहर मजदूरों की आत्महत्या के मामले भी बढ़े हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, किसानों की आत्महत्या के मामले 18% बढ़े हैं, तो वहीं महाराष्ट्र के राजस्व विभाग से मिली जानकारी के अनुसार महाराष्ट्र में पिछले 11 महीने में 2,500 किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। जबकि साल 2020 में महाराष्ट्र में 2,547 किसानों और कृषि क्षेत्र से जुड़े मजदूरों (खेतिहर मजदूर) ने आत्महत्या की थी
देश भर में 7% आत्महत्याएं कृषि क्षेत्रों में
28 अक्टूबर, 2021 को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने भारत में होने वाली आत्महत्याओं पर एक रिपोर्ट पेश की, जिसके आंकड़ों से पता चलता है कि देश भर में किसानों और कृषि मजदूरों की आत्महत्याओं के मामले रुकने की बजाय बढ़ते जा रहे हैं। साल 2020 के दौरान देश भर में सिर्फ कृषि क्षेत्र से जुड़े 10,677 लोगों ने आत्महत्या की, जो देश में होने वाली कुल आत्महत्याओं (1,53,052) का 7% था। इन 10,677 आत्महत्याओं में 5,579 किसान और 5,098 खेतिहर मजदूर थे।
चार साल बाद फिर बढ़े आत्महत्या के मामले
किसानों द्वारा आत्महत्या करने के मामलों में लगातार चार साल गिरावट के बाद फिर से कृषि क्षेत्र में आत्महत्या के मामले बढ़े हैं। साल 2016 में कुल 11,379 किसान और कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की थी। वहीं साल 2017 में इन आत्महत्याओं में गिरावट आई और संख्या 10,655 रह गई। इसी प्रकार साल 2018 में 10,349 तो साल 2019 में कुल 10,281 आत्महत्या के मामले सामने आए थे। वहीं साल 2020 में लगभग 10,677 किसानों और कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की थी, जो पिछले चार साल के आंकड़ों से ज्यादा थी। साल 2020 में आत्महत्या करने वाले 10,677 मामलों में 5,579 किसान थे, जिसमें 5,335 पुरुष और 244 महिलाएं शामिल थीं। दूसरी तरफ 10,677 आत्महत्याओं में 5,098 कृषि मजदूर थे, जिसमें 4621 पुरुष और 477 महिलाएं शामिल थीं।
आखिर क्यों करते हैं कृषि क्षेत्र से जुड़े लोग आत्महत्या ?
कृषि क्षेत्र से जुड़ा व्यक्ति चाहे वह किसान हो या फिर खेतिहर मजदूर, अगर वह आत्महत्या करता है तो इसकी कोई ना कोई बड़ी वजह जरुर होती है। इनके जीवन में तमाम समस्याएं आती हैं, जो निम्नलिखित समस्याओं में शामिल हैं-
कर्जदार या दिवालियापन होना
एक किसान की आमदनी उसकी फसलों की मात्रा पर निर्भर करती हैं। किसान अपने परिवारिक मामलों और कृषि संबंधी कार्यों हेतु बैंकों और महाजनों से कर्ज़ लेता है, जिसे वह अपनी अगली फसल को बेचकर चुकाता है। परंतु कभी-कभी किसानों की फसलें प्राकृतिक आपदाओं या मानवजनित आपदाओं के कारण खराब हो जाती हैं, जिससे उस फसल की सही लागत नहीं मिल पाती और वे सभी किसान कर्ज़ चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं। इसी बात से चिंतित होकर कुछ किसान आत्महत्या कर लेते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, साल 2015 में लगभग 3,000 किसानों ने ऋणग्रस्तता से तंग आकर आत्महत्या की थी।
परिवार में होने वाली समस्याएँ
हर किसी की पारिवारिक समस्याएँ होती हैं। वैसे ही किसान परिवारों में ज़मीनी विवाद, आपसी लड़ाइयों जैसी गम्भीर समस्याओं के कारण भी कृषकों में आत्महत्या करने के मामले सामने आते हैं।
फसलों के नुकसान होने पर
जलवायु परिवर्तन के कारण कभी सूखा तो कभी बाढ़ जैसें हालात पैदा हो जाते हैं, जिस कारण किसानों की फसल बर्बाद हो जाती हैं। फसल की पैदावार कम होने से उनका उचित मूल्य नहीं मिल पाता, जिससे किसानों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। कुछ किसान इस बोझ को नहीं संभाल पाते और आत्महत्या कर लेते हैं। आत्महत्या करने वाले किसानों में 72 % छोटे एवं सीमांत किसान होते हैं।
बीमारी और मादक पदार्थों का सेवन
किसानों की आय कम होती है जिससे किसान अपना और परिवार के सदस्यों को बड़ी बीमारियाँ होने पर इलाज़ नहीं करा पाते, क्योंकि इन बीमारियों का इलाज कराना अत्यधिक महँगा होता है। इन बीमारियों के इलाज कराने की बजाय किसान आत्महत्या करना ज़्यादा सही मानते हैं। इसके अलावा कई किसान मादक पदार्थों के सेवन से भावुकता में आकर आत्महत्या कर लेते हैं।
ये भी हो सकती हैं आत्महत्या की वजह
महाराष्ट्र में बढ़ते किसानों की आत्महत्या के मामलों पर किसान नेता विजय जावंधिया का कहना है कि देश में साल 1997 के बाद से किसान आत्महत्या की चर्चा शुरू हुई थी। जिसके बाद से अब तक देश और प्रदेश में कई सरकारें बदलीं, लेकिन किसानों की हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है। ज्यादातर किसान बैंकों से कर्ज लेकर पैसे वापस नहीं लौटा पाते, ऐसे में किसानों को साहूकार के पास कर्ज के लिए जाना पड़ता है और साहूकार किसानों से ब्याज के रूप में ज्यादा पैसे लेते हैं। आर्थिक तंगी से परेशान होकर किसान आत्महत्या कर लेते हैं। किसान नेता किशोर तिवारी के मुताबिक महाराष्ट्र के अन्दर साल 2021 में 2,500 किसानों ने आत्महत्याएं की थी।
आखिर महाराष्ट्र में क्यों होती हैं सबसे ज्यादा किसानों की आत्महत्या?
महाराष्ट्र दूसरे प्रदेशों की तुलना में काफी धनी राज्य माना जाता है, लेकिन यहां किसानों की सबसे ज्यादा दुर्दशा देखने को मिलती है। बीते दो साल में यहां के करीब 5,230 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। अखिल भारतीय किसान सभा के राज्य सचिव डॉ. अजित नवले का कहना है कि “मराठवाडा और विदर्भ जैसे इलाकों में किसानों की आत्महत्याएं ज्यादा होती हैं। यह एरिया नॉन इरीगेटेड (असिंचित) है, यहां पर ड्राई बीटी कॉटन (कपास) की खेती होती है। यह किसानों के लिए काफी घाटे का सौदा होता है, क्योंकि सरकार कपास की फसल की खरीद नाम मात्र करती है। जिससे किसानों को कपास की फसल बाजारों में बेचनी पड़ती है।
बाजार के व्यापारी वर्ग भी किसानों की मजबूरी का फायदा उठाकर अपनी नीतियों से उनका का शोषण कर रहे हैं। कपास की सरकारी एमएसपी 5,515 रुपये प्रति क्विंटल है, लेकिन बाजार से इसे 3,000 रुपये के औसत दाम पर खरीदा जाता है। जबकि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की रिपोर्ट के अनुसार, कपास की खेती में प्रति क्विंटल पर 3,676 रुपये का खर्च आता है। इससे किसानों के ऊपर कर्ज बढ़ता ही जाता है और अंत में किसान तनाव में आकर आत्महत्या कर लेते हैं।
किसानों की आत्महत्या कैसे रोकी जा सकती है?
अखिल भारतीय किसान सभा के राज्य सचिव डॉ. अजित नवले के अनुसार, “काटन की खरीदारी पर एमएसपी के रेट निश्चित किए जाने चाहिए। इसके अलावा कपास की खेती का लागत मूल्य घटाने के लिए सरकार सहयोग प्रदान करे और किसानों के पुराने कर्ज़ माफ करे। महाराष्ट्र सरकार केवल 20-25% ही कपास खरीदती है, जिससे अब कई कॉटन किसान कपास छोड़कर सोयाबीन की खेती कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त किसानों की आत्महत्याओं को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं जा सकते हैं-
-किसानों को कम कीमत पर बीमा मिले और स्वास्थ्य सुविधाएँ भी प्रदान की जाएँ।
-राज्य स्तर पर किसान आयोग बनाए जाएं जिससे किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान जल्द निकाला जा सके।
-कृषि शोध एवं अनुसंधान के द्वारा ऐसे बीजों को विकसित किया जाए जो प्रतिकूल मौसम में भी अच्छी उपज दे सकें।
-किसानों को तकनीकी, प्रबंधन एवं विपणन संबंधी जानकारी और सहायता प्रदान की जाए।
-कृषि क्षेत्र से जुड़े सामान और बीजों की खरीदारी करने पर बैंकों से लेने वाले कर्जों में वृद्धि की जाए।