International Tiger Day: क्यों मनाया जाता है विश्व बाघ दिवस, जानें भारत में बाघों की क्या है स्थिति
Tiger Day: आज का दिन पूरी दुनिया में हमारे जंगल के बहादुर पशु बाघ के नाम से मनाया जाता है। आखिर क्या है इस दिन को मानने की वजह और क्यों पड़ी इसकी जरूरत ?
दुनियाभर के केवल 13 देशों में ही बाघ पाया जाता है,और इससे भी रोचक बात यह है कि इसमें से भी 70% केवल भारत में हैं। एक समय ऐसा आया जब बाघों की संख्या दुनिया भर में लुप्त होने पर आ गई और इसी समस्या पर ध्यान देते हुए साल 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में इससे मनाए जाने का एलान किया गया।
बता दें कि उस समय भारत में बाघों की संख्या 1700 के करीब थी और साल 2022 तक इस संख्या को दुगना करने का लक्ष्य भी रखा गया था। अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के दिन लोगों को बाघों की अहमियत से रूबरू कराया जाता है तथा साथ ही बाघ संरक्षण का संदेश भी दिया जाता है। जिसके परिणाम हम आंकड़ों में साफ देख सकते हैं। साल 2010 में जो संख्या 1706 थी वो 2018 में 2973 तक पहुंच गई। बाघों की जनसंख्या की गणना हर चार साल में एक बार की जाती है।
क्यों जरूरी है बाघ?
प्रकृति में हर जीव का अपना एक महत्व है चाहे वो एक कीटाणु हो या जंगल में बेबाक घूमता बाघ। इससे इस तरह समझिए कि जंगल में रहने वाला हर जानवर भोजन के लिए एक दूसरे पर निर्भर होता है जिसे किताबी भाषा में फूड चेन कहते हैं। अब अगर एक तरह के जानवर की संख्या ज्यादा हो जाए और दुसरे जानवर की संख्या कम हो जाए तो यह फूड चेन बिगड़ जाती है। अब इसे उदाहरण से समझिए मान लीजिए हमारे जंगलों से बाघ बिलकुल विलुप्त हो जाएं तो हिरण जैसे जानवरों की संख्या अपने आप बढ़ जाएगी, क्योंकि उनका शिकार करने वाला कोई नहीं है ऐसा होने पर जंगल में घास हद से ज्यादा बढ़ जाएगी और प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जायेगा।
क्यों घटने लगी थी बाघों की संख्या?
बाघों की संख्या घटने के भी कईं कारण हैं जिनमें से इनका शिकार सबसे प्रमुख है। असल में दुनिया भर में बाघ ऐसा जानवर है जिसके शरीर के हर अंग की अंतराष्ट्रीय बाजार में बहुत मांग है चाहे वो इसके दांत हों, चमड़ी हो या फिर इसकी पूंछ। इसकी इसी खूबी के चलते कईं लोग बाघ का शिकार करके उसको बेच दिया करते थे।
बाघों की गिरती संख्या का एक कारण शहरीकरण भी है। शहर को बसाने के लिए जंगलों को काटा जाता है। जंगल के कटने से अन्य जानवर मारे जाते हैं और उनके मारे जाने से बाघ को भरपेट भोजन नहीं मिलता जिसकी वजह से ये भी मर जाते हैं। सरल शब्दों में कहें तो फूड चेन का खराब होना भी एक प्रमुख कारण है।
वैसे तो इसको रोकने के लिए सरकार ने कानून भी बनाएं हैं लेकिन उन कानूनों का सिद्धांत बड़ा गुनाह और कम सजा है। ऐसे समझिए कानून के तहत बाघ को मारने पर 3 साल की कैद और 25000 का जुर्माना है लेकिन वही एक बाघ की कीमत बाजार में 30 लाख रुपए तक है।
क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
सबसे पहले कानूनों को और सख्त करने की जरूरत है,कानून ऐसे हों जिनसे अपराधियों के मन में डर पैदा हो। उसके बाद बाघों के रहने के लिए सेंचरीज और टाइगर रिजर्व की व्यवस्थाएं करनी चाहिए। साथ ही साथ सरकार को प्राकृतिक जंगलों के संरक्षण की ओर भी ध्यान देना चाहिए ताकि फूड चेन सुचारू रूप से चलती रहे।