केरल हाईकोर्ट ने सुनाया फैंसला "कुरान देता है चार शादियों की इजाजत, लेकिन भेदभाव करने का नहीं"
केरल हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के पक्ष मे महत्वपूर्ण फैसला सुनाया गया है। कोर्ट ने कहा कि कुरान केवल चार शादियां करने की अनुमति देती है, भेदभाव करने का नहीं।
केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में मुस्लिम महिलाओं के तलाक के अधिकार पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पति अगर अपनी पत्नियों के बीच बराबरी का व्यवहार नहीं करता है या फिर किसी तरह का भेदभाव करता है, तो इस वजह को तलाक के लिए एक ठोस आधार माना जा सकता है।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि अगर पति दूसरी या तीसरी शादी के बाद अपनी पहली या पूर्व पत्नी के साथ व्यवहारिक दायित्व को निभाने से मना करता है, तो यह कुरान के आदेशों का भी उल्लंघन है। जो एक पति को एक से अधिक निकाह करने पर पत्नियों के साथ समान व्यवहार करने का आदेश देता है। यह फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने महिला की तलाक की याचिका को स्वीकार कर लिया है। यह महत्वपूर्ण फैसला केरल उच्च न्यायालय के जस्टिस सोफी थामस और जस्टिस ए. मुहम्मद मुश्ताक ने दिसंबर महीने की शुरुआत में सुनाया है।
क्या था मामला ?
याचिकाकर्ता महिला की शादी 4 अगस्त 1991 को हुई थी और निकाह के बाद उसके तीन बच्चे भी हुए। महिला ने बताया कि उसके पति ने विदेश में रहने के दौरान ही वहां किसी दूसरी औरत से निकाह कर लिया था। पति द्वारा व्यवहारिक दायित्वों का पालन नहीं करने के आधार पर ही महिला ने अपने पति से तलाक मांगा था। महिला के अनुसार उसके पति ने 21 फरवरी 2014 से ही उससे और बच्चों से मिलना बंद कर दिया है। वहीं पति ने अपनी दलील में कहा है कि वह दूसरी शादी के लिए मजबूर था क्योंकि उसकी पहली पत्नी उसकी शारीरिक जरूरतों को पूरा नहीं कर पाती थी। इस पर कोर्ट ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है क्योंकि इस विवाह से आप दोनों के तीन बच्चे भी हुए थे। जिनमें से दो का निकाह भी हो चुका है। कोर्ट की इस बात का प्रतिवादि पति के पास कोई जवाब नहीं था। जिसका अर्थ यह निकाला गया कि वह अपने वैवाहिक दायित्वों से पीछे हट गया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि तलाक की याचिका 2019 में दाखिल हुई थी लेकिन आप दोनों पिछले 5 सालों से अलग रह रहे हो। ऐसी परिस्थितियों में धारा 2(4) के तहत तलाक का कारण बनता है।
कुरान देता है चार शादियो की इजाजत, लेकिन भेदभाव करने का नहीं
कुरान के अनुसार मुसलमानों को चार शादियों की इजाजत है लेकिन साथ में कुरान यह भी कहता है कि अगर पति एक से ज्यादा पत्नियों से निकाह करता है या साथ रहता है तो वह सभी पत्नियों से एक समान व्यवहार करे। मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम 1939 के अनुसार एक महिला ने अपने पति से तलाक मांगा था। जिसे परिवार अदालत ने इस याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद महिला ने तलाक के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। महिला द्वारा दी गई याचिका में मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम की धारा 2(2), 2(4), 2(8) को आधार मानकर तलाक मांगा था।
- धारा 2(2) के अनुसार अगर पति पत्नी की उपेक्षा करता है या दो साल तक उसके भरण पोषण में नाकाम रहता है, तो पत्नी तलाक की हकदार होती है।
- धारा 2(4) के अनुसार जब पति बिना किसी उचित कारण से तीन साल तक अपनी वैवाहिक दायित्वों का पालन नहीं करता है, तो पत्नी तलाक ले सकती है।
- धारा 2(8) के अंतर्गत दो धाराएं आती हैं जो धारा (ए) और (एफ) है।
- 2(8)(ए) के अनुसार यदि पति पर पत्नी हमला करता है, या अपने क्रूर व्यवहार से पत्नी की जिंदगी दयनीय बना देता है, तो पत्नी तलाक ले सकती है।
- 2(8)(एफ) के अनुसार पति यदि एक से अधिक पत्नियों को रखता है तो कुरान के अनुसार उसे सभी के साथ समान व्यवहार करना होता है, यदि पति ऐसा नहीं करता है तो पत्नी तलाक ले सकती है।
हाईकोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि पहली पत्नी के साथ पांच साल तक दूर रहना, यह साबित करता है कि वह उसके साथ समान व्यवहार नहीं करता। आगे कोर्ट ने कहा कि पहली पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने और वैवाहिक जिम्मेदारियों को निभाने से मना करना कुरान के आदेशों का उल्लंघन करना है। कोर्ट ने परिवार अदालत के आदेश को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता महिला को कानूनी धारा 2(2) और 2(8)(एफ) के तहत तलाक का ऑर्डर देता है और 1991 में हुए निकाह को भी खत्म करता है।