Mathilisharan Gupt Birth Anniversary: गांधी ने मैथिलीशरण गुप्त को क्यों दी थी राष्ट्रकवि की उपाधि
Mathilisharan Gupt: व्यक्तिगत तौर पर सत्याग्रह में भाग लेने के कारण 16 अप्रैल 1941 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पहले उन्हें झाँसी और फिर आगरा जेल ले जाया गया। आरोप सिद्ध न होने के कारण उन्हें सात महीने बाद छोड़ दिया गया।
Mathilisharan Gupt Birth Anniversary: हिंदी में अपने समय के साहित्यकारों के बीच दद्दा के नाम से मशहूर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 झांसी के समीप चिरगांव, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने आरंभ में लेखन ब्रजभाषा में शुरू किया था। मगर सरस्वती पत्रिका के संपादक महावीरप्रसाद द्विवेदी के आग्रह और मार्गदर्शन में खड़ी बोली में लिखना पारंभ किया।
राष्ट्रकवि बनने के सफर की शुरुआत
उनकी आरंभिक कविताओं का प्रकाशन "सरस्वती" पत्रिका में हुआ था। उनका प्रथम काव्य संग्रह "रंग में भंग" तथा उसके पश्चात "जयद्रथ वध" प्रकाशित हुआ था।
साल 1912 में राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत "भारत भारती" का प्रकाशन हुआ था।"भारत भारती" के तीन खण्ड में देश का अतीत, वर्तमान और भविष्य चित्रित है। यह रचना उनकी जनता के बीच लोकप्रिय हो गई। इस रचना के संदर्भ में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है कि-"पहले पहल हिंदी प्रेमियों का सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली पुस्तक भी यही है। इस लोकप्रियता का आलम यह है कि इसकी प्रतियाँ रातों-रात खरीदी गई।"
राष्ट्रीय चेतना जगाने में भारत भारती के योगदान पर बच्चन सिंह ने लिखा है कि- " हिंदी भाषा भाषी क्षेत्र में इतने व्यापक स्तर पर राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना जगाने का जो काम अकेले भारत भारती ने किया उतना अन्य पुस्तकों ने मिलकर भी नहीं किया।"
गुप्तजी ने स्वयं प्रेस खोलकर पुस्तकों को छापने का कार्य प्रारंभ किया। साल 1931 में उन्होंने साकेत महाकाव्य और साल 1932 में यशोधरा पूर्ण किया। उसी समय हुआ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के संपर्क में आए। गांधी ने उनकी कविताओं का जनता पर असर और राष्ट्रीय आंदोलनों पर प्रभाव को महसूस करते हुए उन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि दी थी।
अन्य रोचक तथ्य
● उनकी जयंती को हर वर्ष 3 अगस्त को कवि दिवस के रूप में मनाया जाता है।
● व्यक्तिगत तौर पर सत्याग्रह में भाग लेने के कारण 16 अप्रैल 1941 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पहले उन्हें झाँसी और फिर आगरा जेल ले जाया गया। आरोप सिद्ध न होने के कारण उन्हें सात महीने बाद छोड़ दिया गया।
● 1948 में उन्हें आगरा विश्वविद्यालय डी. लिट. की उपाधि से सम्मानित किया गया।
● 1952-62 तक वह राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे।
● 1954 मैं उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदानओं के लिए भारत सरकार द्वारा तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण दिया गया।