जैव विविधता पर मंडराता खतरा, गधों की घटती आबादी चिंताजनक

बीआई की रिपोर्ट कहती है कि साल 2012 से लेकर साल 2019 के बीच गधों की संख्या यानी आबादी में 61.2 फीसदी की गिरावट आई है। इसके अलावा साल 2012 में पशुधन गणना के तहत इनकी कुल संख्या 3.2 लाख दर्ज की गई थी।

February 1, 2022 - 18:28
February 2, 2022 - 09:28
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जैव विविधता पर मंडराता खतरा, गधों की घटती आबादी चिंताजनक
गधों की घटती आबादी- फोटो: gettyimages

जैव-विविधता संरक्षण लंबे समय से एक चिंता का विषय बना हुआ है, जिस पर ऐसी कई रिपोर्टें या अध्ययन सामने आए हैं जिन्हें पढ़कर बहुत आश्चर्य होता है कि हमारी जैव-विविधता पर हमेशा मानव गतिविधियों के कारण संकट के काले बादल छाए रहते हैं। अब एक बार फिर से एक ऐसी ही रिपोर्ट सामने आई है जो ब्रुक इंडिया (बीआई) के द्वारा ’द हिडन हाईड'  नाम पर आधारित है जिसे पढ़कर या जानकर आपको हैरानी होगी कि देश में गधों की जनसंख्या यानी आबादी में बहुत तेजी से गिरावट आ रही है। इसका मुख्य कारण भी मानव गतिविधियों को ही बताया जा रहा है। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि क्या है ब्रुक इंडिया (बीआई) की रिपोर्ट में?

क्या कहती है ब्रुक इंडिया (बीआई) की रिपोर्ट?

बीआई की रिपोर्ट कहती है कि साल 2012 से लेकर साल 2019 के बीच गधों की संख्या यानी आबादी में 61.2 फीसदी की गिरावट आई है। इसके अलावा साल 2012 में पशुधन गणना के तहत इनकी कुल संख्या 3.2 लाख दर्ज की गई थी। वहीं साल 2019 में पशुधन गणना करने पर सामने आया कि इनकी संख्या घटकर 1.2 लाख पर आ गई है। यानी पिछले आठ वर्षों में गधों की संख्या में करीब 2 लाख तक की गिरावट आई है।

बीआई की इस रिपोर्ट या अध्ययन के तहत इन आठ सालों में महाराष्ट्र में 39.7 फीसदी की कमी दर्ज की गई है, तो वहीं उत्तरप्रदेश में इनकी संख्या 71.7 फीसदी रही। इसके अलावा राजस्थान में भी इनकी संख्या 71 फीसदी तक रही है। ध्यान देने वाली बात यह है कि साल 2012 की गणना के मुताबिक राजस्थान में गधों की संख्या देश में सबसे ज्यादा करीब 81,000 थी जो साल 2019 में घटकर केवल 23,000 पर आ गई थी। 

यह भी बता दें कि देश के अन्य राज्यों में भी इनकी संख्या में भारी गिरावट देखी जा रही है। जिसके चलते गुजरात में गधों की आबादी में 70.9 फीसदी से भी अधिक कमी आई है, वहीं आंध्रप्रदेश में इनकी संख्या 53.2 फीसदी रही। बिहार में भी गधों की संख्या में 47.3 फीसदी की कमी देखी गई है।

ऐसी बात नहीं है कि देश में केवल गधों की आबादी में ही गिरावट आई हो। अध्ययन के दौरान यह भी पता चला था कि गधों के साथ-साथ घोड़ों, टट्टू और खच्चरों की संख्या में भी गिरावट आई है। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 की पशुधन गणना के तहत घोड़ों एवं टट्टूओं की कुल आबादी में 45.6 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है। इसके अलावा खच्चरों की संख्या में भी 57 फीसदी से अधिक की गिरावट रही। यदि इस पर विचार किया जाए तो साल 2012 में घोड़ों एवं टट्टूओं की कुल आबादी 6.2 लाख थी जो साल 2019 में की गई गणना के अनुसार घटकर 3.4 लाख रह गई थी। 

गधों की संख्या में कमी के पीछे की मुख्य वजह क्या है? 
• अध्ययन के दौरान पता चला है कि गधों की खाल की तस्करी अन्य देशों में बहुत बड़े पैमाने पर की जा रही है, जो मुख्य रूप से चीन में की जाती है, जिसका मुख्य रूप से उपयोग विभिन्न बीमारियों के इलाज करने में किया जाना बताया गया है। यह भी बता दें कि चीन में इतने बड़े पैमाने पर गधों की तस्करी के कारण पिछले कुछ सालों में गधों की मांग बहुत हद तक बढ़ गई है। अध्ययन के अनुसार गधों को इनकी त्वचा से मिलने वाले जिलेटिन के लिए मारा जा रहा है। इस जिलेटिन को ‘इजियाओ’ कहा जाता है। चीन में इसका उपयोग दवाइयों को बनाने से लेकर सौंदर्य प्रसाधनों के लिए भी किया जाता है।

• अध्ययन में यह भी कहा गया कि एक गधा कारोबारी से पूछ्ताछ करने पर यह सामने आया कि उस कारोबारी से एक चीनी व्यक्ति कुछ साल पहले हर महीने 200 गधे खरीदने के लिए संपर्क बनाए रहता था। बता दें कि अध्ययन में कहा गया कि, ‘‘चीनी व्यक्ति ने उसे महाराष्ट्र के स्थानीय व्यक्ति के जरिये संपर्क किया और कहा कि उन्हें केवल गधों की खाल की जरूरत है।"

• रिपोर्ट के अनुसार नेपाल की खुली सीमा पर गधों की खरीद-बिक्री के लिए मेले का आयोजन किया जाता है जो इस धारणा को रद्द करता है कि देश गधों की अवैध तरीके से की जाने वाली हत्या से मुक्त है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिंदा गधों, उनकी खाल एवम मीट का अवैध ढंग से निर्यात सीमापार के आसान मार्गों के जरिए किया जाता रहा है।

• रिपोर्ट के एक और पहलु के अनुसार गधों की संख्या में तेजी से आने वाली गिरावट का कारण कहीं ना कहीं मशीनीकरण भी है, क्योंकि कई देशों में गधों को ही ईंट भट्टों एवं अन्य कामों में सामान ढोने के लिए पाला जाता है। परन्तु जैसे-जैसे मशीनों ने इनकी जगह ले ली है उनकी जरुरत ही घटती जा रही है। इसके अलावा देश में गधों की जगह खच्चरों का उपयोग बढ़ता उपयोग भी इसके लिए जिम्मेदार है।

क्या है ब्रुक इंडिया (बीआई)? 

ब्रुक इंडिया (बीआई) की स्थापना साल 2001 में हुई थी, जो एक अंतरराष्ट्रीय भारतीय संगठन है। ब्रुक इंडिया का मुख्य मकसद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गधों, घोड़ों एवं खच्चरों के हित में कार्य करना, देश में कार्य योग्य घोड़ों , गधों एवं खच्चरों की पीड़ा को कम करना है। इसकी स्थापना के बाद से यह भारत के 11 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में काम कर रही है जिसमें दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तथा उत्तराखंड आदि शामिल हैं। यह संगठन वर्तमान में 11 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में अश्व पालकों की स्थिती में सुधार लाने और उनकी स्थिती को और बेहतर करने के लिए काम कर रहा है।

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