Jinnah Tower: आंध्र प्रदेश में स्थित जिन्ना मीनार को गिराने की क्यों हो रही मांग, क्या है जिन्ना टॉवर का इतिहास
जिन्ना मीनार को लेकर कई कहानियां कही जाती हैं। जिन लोगों की नजर पहली मर्तबा इस टावर पर पड़ती है, वह यही सवाल करते हैं कि जिन्ना के नाम पर यह खूबसूरत मीनार भारत में क्यों?
73वें गणतंत्र दिवस पर आंध्र प्रदेश के गुंटूर शहर में स्थित 77 साल पुरानी जिन्ना मीनार अचानक चर्चाओं में आ गई। बता दें कि भारत में लियाकत अली जिन्ना के नाम पर यह एकमात्र इमारत है। गत दिनों बीते गणतंत्र दिवस पर हिंदू वाहिनी के लोग 26 जनवरी को जिन्ना मीनार पर तिरंगा फहराना चाहते थे। हवा के रुख को देखते हुए राज्य की भाजपा और अन्य हिंदू संगठनों ने इस मीनार का नाम बदलने की मांग शुरू कर दी। आइए जानते हैं जिन्ना मीनार के बनने और अब तक इसका नाम जिन्ना पर रहने की दिलचस्प कहानी।
बता दें कि गणतंत्र दिवस के मौके पर आंध्र प्रदेश के गुंटूर में हिंदू वाहिनी कार्यकर्ताओं ने जिन्ना टॉवर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने की कोशिश की थी। जिसके बाद पुलिस ने इन्हें हिरासत में ले लिया। गुंटूर शहर के एसपी आरिफ हफीज ने बताया कि पुलिस ने 15-20 कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया है और उन्हें एक स्थानीय पुलिस स्टेशन भेज दिया गया। हालांकि सभी प्रदर्शनकारियों को बाद में रिहा कर दिया गया।
जिन्ना मीनार का इतिहास
पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर भारत में यह एकमात्र इमारत है। यह इमारत मीनार जिन्ना की याद में बनवाई गई थी। मीनार आंध्र के जिस गुंटूर में है, यह समुद्र तटीय इलाका है। इसके नाम को लेकर यहां कभी कोई विवाद नहीं हुआ। गुंटूर के लोग इस मीनार को शहर की शान भी कहते हैं। बता दें कि साल 1945 में बनी यह मीनार गुंटूर के महात्मा गांधी मार्ग पर स्थित है।
जिन्ना मीनार के निर्माण की दिलचस्प कहानियां
जिन्ना मीनार को लेकर कई कहानियां कही जाती हैं। जिन लोगों की नजर पहली मर्तबा इस टावर पर पड़ती है, वह यही सवाल करते हैं कि जिन्ना के नाम पर यह खूबसूरत मीनार भारत में क्यों? कहा जाता है कि आजादी से पहले साल 1939 में मुहम्मद अली जिन्ना कुछ दिनों के लिए गुंटूर आए थे। यहां उन्होंने बड़ी जनसभा को संबोधित किया था, जिसके बाद यहां जिन्ना के नाम पर मीनार बनवा दी गई। बता दें इसके अलावा भी इसे लेकर काफ़ी कहानियां प्रचलित हैं।
मीनार बनने की एक रोचक कहानी यह भी
जिन्ना मीनार बनने की एक कहानी यह है कि लियाकत अली खान आजादी से पहले मुस्लिम लीग के बड़े नेता थे और जिन्ना के प्रतिनिधि भी। वे जब आजादी से पहले गुंटूर आए तो उनका बहुत अच्छे से स्वागत किया गया। स्थानीय लोग बताते हैं कि पूर्व राज्यसभा सदस्य और तेलगू देशम पार्टी के उपाध्यक्ष एसएम बाशा के ग्रेंडफादर लालजन बाशा ने जुदालियाकत के स्वागत में जिन्ना मीनार ही बनवा डाली थी।
जिन्ना की रैली की योजना में बना था टॉवर
दूसरी कहानी यह है कि साल 1942 में गुंटूर के तत्कालीन विधायक एसएम लालजन बाशा ने यहां पर मोहम्मद अली जिन्ना को बुलाकर बड़ी रैली करने की योजना बनाई थी। जब यह योजना बन रही थी तो जिन्ना के सम्मान में इस टॉवर का निर्माण शुरू हो गया। हालांकि जिन्ना किसी कारणवश गुंटूर नहीं आ सके थे। लोग बताते हैं कि इसके बावजूद इस इमारत पर काम जारी रहा और साल 1945 में जब यह टॉवर बनकर तैयार हो गया तो इसे जिन्ना मीनार सेंटर नाम दिया गया।
भारत – पाकिस्तान बटवारें के समय गुंटूर में थी शांति
इसे लेकर एक कहानी यह भी है कि इस मीनार को नगर पालिका के तत्कालीन चेयरमैन नदीम्पल्ली नरसिंह राव और तेलाकुला जलैया ने बनवाया था। इसे उन्होंने जिन्ना का नाम दिया लेकिन मकसद था शांति और सदभाव। भारत - पकिस्तान बंटवारे के दौरान जब पूरे देश में हिंसा हुई तब भी गुंटूर में शांति बनी रही।
गुंटूर की पहचान है यह मीनार
जिन्ना मीनार गुंटूर की पहचान भी है, जो यात्री यहां आते हैं, इस मीनार को देखने जरूर जाते हैं। हालांकि, आंध्र प्रदेश के कई संगठनों ने जिन्ना टावर को ध्वस्त करने की मांग भी सरकार के समक्ष रखी थी, जिसे आंध्र प्रदेश सरकार ने खारिज कर दिया था। बता दें कि यह मीनार छह स्तंभों पर खड़ी है, इसका ऊपरी हिस्सा गुंबदनुमा है और यह एक प्रकार से 20वीं सदी की मुस्लिम स्थापत्य कला का उदाहरण है।