हम दो लेकिन केवल मेरे ही दो -आज भी नसबंदी का जिम्मा परिवार में महिलाओं के ही माथे

इस लेख को लैंगिक संवेदनशील मुद्दों की रिपोर्टिंग पर क्षमता निर्माण के लिए यूएनएफपीए, हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, जयपुर और लोक संवाद संस्थान मीडिया फेलोशिप के अंतर्गत पुरस्कार के लिए चुना गया है।

December 27, 2023 - 14:05
December 27, 2023 - 14:37
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हम दो लेकिन केवल मेरे ही दो -आज भी नसबंदी का जिम्मा परिवार में महिलाओं के ही माथे
आज भी नसबंदी का जिम्मा परिवार में महिलाओं के ही माथे

जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकार ने "बच्चे दो ही अच्छे", "हम दो हमारे दो" जैसे कई नारे दिए। ऐसे नारों और सरकार के प्रयास से जनता जगरूक हुई है और परिवार नियोजन के कई सुरक्षित तरीके भी अपना रही है लेकिन देखा जाए तो परिवार नियोजन का जिम्मा आज भी महिलाओं के माथे ही है। यही वजह है कि उनके लिए हम दो, हमारे दो नहीं का कोई मतलब नहीं है, बल्कि उनके लिए है हम दो, केवल मेरे ही दो। आंकड़ों से साफ जाहिर है कि परिवार नियोजन के बेहतरीन साधन में एक नसबंदी देश में केवल महिलाएं ही अधिक करवा रही हैं या यूं कहें कि नसबंदी करवाने का दबाव उन्हीं पर अधिक है। राष्ट्रीय परिवार कल्याण सर्वे-5 के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो शहरी क्षेत्र में 36.3 और ग्रामीण क्षेत्र में 35.7 फीसदी महिलाओं ने नसबंदी करवाई, इसके मुकाबले नसबंदी करवाने वाले पुरुषों की संख्या शहरीक्षेत्र में महज 0.2 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्र में 0.3 फीसदी ही थी। 1991 और 2022 राजस्थान के नसबंदी अभियान में लिंग विसंगति को उजागर कर सकते हैं। 1991-92 में, ऐसी 1.73 लाख से अधिक सर्जरी हुईं और केवल 4,759 पुरुषों की नसबंदी हुई। वहीं वर्ष 2021 में में कुल 50,261 प्रक्रियाओं में से केवल 1,642 पुरुषों ने ही अपनी नसबंदी कराई।

पुरुष कहते हैं कि घर की महिला की करो नसबंदी

इस बारे में मणिपाल अस्पताल की महिला एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. नेहा गोदारा का कहना है कि जब लोग नसबंदी के लिए आते हैं, आमतौर पर यही पूछते हैं कि यह सुरक्षित है या नहीं, चाहे वह पुरुष के लिए हो या फिर महिला के लिए। सबकी यही चिंता होती है कि यह किसी भी तरह की दिक्कत तो नहीं देगा न ? आगे सेक्सलाइफ में या कोई इसके दुष्परिणाम तो नहीं होंगे?वहीं यह भी सच है कि पुरुषों की नसबंदी करना आसान और सस्ता है पर इसके बावजूद लोग परिवार में महिलाओं की ही नसबंदी करवातेहैं। इसका एक कारण हमारा पुरुष प्रधान समाज है। बतौर डॉक्टर हम हमेशा यह सुझाव देते हैं कि पुरुष नसबंदी करवाएं क्योंकि आसान है कि न फिर भी वे नहीं मानते। पुरुष कमजोरी आने और वैवाहिक जीवन प्रभावित होने जैसे मिथक के चलते नसबंदी नहीं करवाते।

महिला नसबंदी क्या है ?

पुरुष नसबंदी की ही तरह यह भी परिवार नियोजन का तरीका है। आसान भाषा में समझा जाए तो इस प्रक्रिया के बाद महिला कभी गर्भवती नहीं हो सकती।इसमें फैलोपियन ट्यूब को ब्लॉक कर दिया जाता है, जिससे महिला गर्भधारण नहीं करती। नसबंदी करने से पहले डॉक्टर पेट और पेल्विक हिस्से की जांच करते हैं कि महिला को पीसीओडी जैसी कोई समस्या तो नहीं है। इसका इलाज होने तक सर्जरी को रोका जा सकता है।ट्यूबेक्टोमी में नाभि के आसपास एक छोटा सा चीरा लगाया जाता है और फिर एक पतली सीस्टिक पर लगे कैमरे को उस चीरे से अंदर डाला जाता है। इस उपकरण को लैप्रोस्कोप कहते हैं। इस स्टिकपरलगे कैमरे से डॉक्टर को फैलोपियन ट्यूब देखने में मदद मिलती है। डॉक्टर फैलोपियन ट्यूब को आधा काटकर उसे दोनों सिरों से एक साथ बांध देते हैं। क्लिप के जरिए भी फैलोपियन ट्यूब को एक साथ बांधकर ब्लॉक किया जा सकता है। कुछ स्थितियों में हो सकता है कि डॉक्टर पूरी फैलोपियनट्यूब को ही निकाल दें। इसे परिवार नियोजन का सबसे सुरक्षित और प्रभावशाली तरीका माना जाता है।नसबंदी से महिलाओं की सेक्सड्राइव और हार्मोंस पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ता। जो महिलाएं गर्भधारण करना नहीं चाहतीं, वे नसबंदी करवा सकती हैं।

महिला नसबंदी के नुकसान

हालांकि महिला नसबंदी यौन संचारित रोगों (STDs) से नहीं बचा सकती।इससे संक्रमण, दर्द यार क्त स्राव का खतरा भी हो सकता है। अगर नसबंदी के बाद भी महिला गर्भधारण कर लेती है, तो उसमें एक्टोपिकप्रेग्नेंसी का खतरा बहुत ज्यादा रहता है।आंकड़ों की बात करें तो राजस्थान में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के अनुसार अप्रैल 2014 से मार्च 2019 तक 11 हजार 641 नसबंदी फेल के मामले मिले है। इनमें से 11 हजार 470 महिलाव 171 पुरुष नसबंदी शामिल हैं। अगर महिला दोबारा गर्भवती होना चाहे, तो रिवर्स ट्यूबललिगेशन किया जा सकता है, हालांकि इसकी सफलता की दर बहुत कम है। 

नसबंदी कानून

सितम्बर, 1976 संजय गांधी ने देश में अनिवार्य पुरुषनसबंदी का आदेश दिया था। इस पुरुष नसबंदी के पीछे सरकार की मंशा देश की आबादी को नियंत्रित करना था। इसके अंतर्गत लोगों की इच्छा के विरुद्ध नसबंदी करवाई गयी लेकिन कब पुरुष नसबंदी से नसबंदी करवाने का जिम्मा महिलाओं पर आ गया, पता ही नहीं चला। 

एक नसबंदी ऐसी भी

वर्ष 2015 में नसबंदी कराने के तीन साल बाद एक महिला गर्भवती हो गई।महिला और उसके पति ने उसके लिए स्वास्थ्य विभाग को जिम्मेदार ठहराते हुए मुआवजे की मांग की। उत्तराखंड में जिला मुख्यालय से करीब 34 किलोमीटर दूर चंपावत विकास खंडकी दुधौरी ग्राम पंचायत के दिवानराम का कहना था कि उनकी पत्नी नीलादेवी ने 2015 में जिला अस्पताल में लगे शिविर में नसबंदी कराई थी, लेकिन नसबंदी करवाने के ठीक तीन साल बाद नीलादेवी गर्भवती हो गई। इसके बाद ग्रामीण दिवानराम  ने स्वास्थ्य विभाग से मुआवजे की मांगकी।बता दें कि महिला की नसबंदी के बाद गर्भवती होने पर 90 दिनों के भीतर स्वास्थ्य विभाग को सूचना दिए जाने पर 30 हजार रुपए का मुआवजा दिया जाता है। 

सरकारी प्रयास जारी

पुरुषों को नसबंदी के प्रति जागरूक करने के लिए राजस्थान के कुछ जिलों  में स्मार्टफोन, फ्रीज, एलईडी, गैससिलेंडर-चूल्हा और अन्य आकर्षक उपहार देने की योजना विभाग की ओर चलाई गई है।कई जिलों में किसी विशेष दिन को पुरुष नसबंदी वार के रूप में मनाया जाता है लेकिन आंकड़ों में कोई सुधार नहीं हो रहा। 

मुुद्दा मानसिकता का

तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद पति अपनी पत्नी की ही नसंबदी कराना चाहते हैं।एक छोटे से चीरे वाली वेसेक्टोमी के लिए भी पुरुष तैयार नहीं होते।दरअसल ये मानसिकता का मुद्दा है, जब तक इसमें बदलाव नहीं होगा, समाज में नसबंदी को लेकर लैंगिक समानता लाना मुश्किल है। 

Written By: अन्नू तंवर

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