सआदत हसन मंटो: कहानीकार ‘ सआदत हसन मंटो’ की 67वीं पुण्यतिथि पर जानिए उनकी जिंदगी के बारे में
ख़बरों के मुताबिक मंटो ने लगभग 270 अफ़साने, 100 से ज़्यादा नाटक , कई फिल्मों की कहानियाँ और डायलॉग्स भी लिखे थे। मुंबई में रहने के दौरान मंटो ने ऐसी कई फिल्मों की पटकथाएं भी लिखी थी, जिनमें से ‘चल चल रे नौजवान’, ‘मिर्जा गालिब’ और ‘आठ दिन' जैसी पटकथाएं बॉलीवुड के बड़े पर्दे पर फिल्माई भी गई थी।
‘सआदत हसन मंटो' उर्दू के एक मशहूर लेखक थे, जिनकी कहानियों ने खूब सुर्खियां बटोरी हैं। सआदत हसन मंटो को शायद ही कोई उनके पूरे नाम से जानता था, क्योंकि उन्हें लोग ‘मंटो’ के नाम से अधिक जानते थे। मंटो की कहानियाँ हमेशा एक चर्चा का विषय बनी रहती थी , जिसे लोग बहुत चाव से पढ़ते थे। मंटो न केवल एक उर्दू के प्रसिद्ध कहानीकार थे बल्कि मंटो एक लघु कथाकार, रेडियो पटकथा लेखक तथा एक पत्रकार भी थे। आज उनकी 67वीं पुण्यतिथि है।
मंटो का जन्म 11 मई , 1912 में लुधियाना के समराला नगर के एक कश्मीरी परिवार में हुआ था तथा 18 जनवरी , 1955 को लाहौर में ‘सआदत हसन मंटो’ ने आखिरी सांसें ली थी। मंटो ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी( AMU) से अपनी पढ़ाई पूरी की थी। अपनी पढ़ाई के दौरान मंटो ने कहानियाँ लिखना तथा उनका मंचन करना भी आरम्भ कर दिया था। ऐसा भी कहा जाता है कि मंटो को उर्दू साहित्यिक क्षेत्र में अद्वितीय स्थान भी प्राप्त था, जिनकी बराबरी शायद ही कोई कर सकता था। मंटो ने साल 1948 में पाकिस्तान जाने से पहले अपना अधिकतर जीवन दिल्ली और मुंबई में व्यतीत किया।
ख़बरों के मुताबिक मंटो ने लगभग 270 अफ़साने, 100 से ज़्यादा नाटक , कई फिल्मों की कहानियाँ और डायलॉग्स भी लिखे थे। मुंबई में रहने के दौरान मंटो ने ऐसी कई फिल्मों की पटकथाएं भी लिखी थी, जिनमें से ‘चल चल रे नौजवान’, ‘मिर्जा गालिब’ और ‘आठ दिन' जैसी पटकथाएं बॉलीवुड के बड़े पर्दे पर फिल्माई भी गई थी। इसके अलावा मंटो ने पहली रंगीन फ़िल्म ‘ किसान कन्या ‘ के डायलॉग भी लिखे थे। इतना ही नहीं ‘तमाशा’, ‘धुआं’ , ‘शिकारी’ जैसी फ़िल्में भी मंटो द्वारा लिखे उपन्यास पर ही आधारित हैं।
मंटो के जीवन से लोगों को परिचित कराने के लिए अभिनेत्री और निर्देशक नंदिता दास ने ‘मंटो’ नामक एक फ़िल्म भी बनाई थी, जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने मंटो के किरदार को निभाया था। फ़िल्म का एक बड़ा भाग मंटो की पांच सबसे लोकप्रिय तथा प्रसिद्ध कहानियों और उनकी कहानियों में अश्लीलता के आरोपों के साथ उनके संघर्ष को दिखाता है। इनमें मंटो की मुख्य शॉर्ट स्टोरी ‘ठंडा गोश्त’ थी, जिस पर एक समय पर बहुत विवाद भी खड़ा हुआ था। नंदिता दास की इस फ़िल्म में मंटो की बॉम्बे से लेकर लाहौर की यात्रा और अश्लीलता के मामलों पर विशेषकर ध्यान केंद्रित दिया गया था। क्योंकि ये घटनाएं ऐसी थीं, जिसने नंदिता दास के काम को प्रेरित तो किया ही था, लेकिन उन्हें एक बुरा अनुभव भी मिला था। हालांकि मंटो को अगर किसी ने सबसे ज्यादा अंदर से तोड़ा था, तो वो था देश का बंटवारा। मंटो भी ऐसे कई भारतीय मुस्लिमो में से एक थे , जिन्हें इस बटवारे से किसी भी तरह की खुशी नहीं थी। लेकिन इस बटवारे ने उनके चाहने वालों को कुछ अच्छी कहानियां भी तोहफे में दीं थी, जिनमें ‘टोबा टेक सिंह’, ‘खोल दो’, ‘ठंडा गोश्त’ जैसी शॉर्ट स्टोरीज शामिल हैं।
एक इंटरव्यू के मुताबिक, नंदिता दास का कहना है कि मंटो की कहानियाँ समाज को आईना दिखाती हैं तथा समाज की वास्तविकता को भी दिखाती हैं जो आज भी वैसा ही हैं जैसा कि मंटो की कहानियो में जिक्र हैं। इसी इंटरव्यू के दौरान जब नंदिता से पूछा गया था कि मंटो जैसा इंसान आज के समाज में कैसे फिट होगा? तो जवाब देते हुए नंदिता ने कहा था कि उनके जैसे इंसान किसी भी समय में फिट नहीं होगा। क्योंकि वे हमारे कुरूप जैसे वाले समाज को सबके सामने रखते थे। अगर वह आज जीवित होते तो उनके पास आज के समाज बारे में कहने के लिए बहुत कुछ होता शायद अब तक वह सलाखों के पीछे भी होते।