क्या है! तिब्बत का शांतिपूर्ण मुक्ति दिवस, जिसे हर साल 23 मई को मनाया जाता है।
International Tibet Mukti Divas: 23 मई 1951 का दिन ही वह दिन था जब चीन सरकार ने अपना 17 सूत्रीय एजेंडा तिब्बत पर जबरन थोपा था।
23 मई के दिन को तिब्बत में शांतिपूर्ण दिवस के रूप में मनाया जाता है, यह दिन तिब्बत के लोगों के लिए एक काले दिन के रूप में जाना जाता है। आइए जानते हैं ऐसा क्या हुआ था आज के दिन...
आज ही के दिन 71 साल पहले यानी 23 मई साल 1951 को चीनी सरकार ने जबरदस्ती 17 सूत्रीय एजेंडा तिब्बत के लोगो पर थोपा था। इस एजेंडे पर तिब्बत के तत्कालीन अधिकारियों के जबरन हस्ताक्षर भी करवाए गए थे। हालांकि इस एजेंडे मे दलाई लामा के पद को लेकर कोई हस्तक्षेप न करने और तिब्बत की संस्कृति, भाषा को खुद तिब्बतियों द्वारा संरक्षित करने साथ ही तिब्बत में विकास की योजनाओं को खुद आगे चलाने, के साथ साथ पंचेन लामा को लेकर भी कोई हस्तक्षेप ना करने की बातों को रखा गया था, लेकिन कुछ समय बाद ही चीन ने खुद बनाए इस एजेंडे को दरकिनार कर दिया।
हालांकि इससे पहले दोनों ओर से कई प्रकार के संयुक्त एजेंडे बन गए थे लेकिन चीनी सरकार ने इन्हे नकार कर अपने एजेंडा को लोगों पर जबरदस्ती तिब्बत के लोगों पर थोपा था। तब से ही तिब्बत के लोग इसे काले दिन के रूप मे मनाते हैं।
कहा जाता है कि दलाई लामा जब एक आयोजन के तहत भारत आए थे तब उन्होंने चीन के इस जबरन एजेंडे को लेकर प्रधानमंत्री नेहरू से चर्चा की थी, जिस पर सुझाव के तौर पर नेहरू ने उन्हें इस मामले पर चीन से बात करने को कहा था, लेकिन चीन अपने फैसलों पर बना रहा जिसके चलते दलाई लामा तिब्बत छोड़कर 18 अप्रैल 1959 मे भारत आ गए थे, और यहां आकर उन्होंने चीन के इस एजेंडे को पूरी तरह नकार दिया था। तब से लेकर तिब्बत और तिब्बत के लोगों को लेकर उनका यह संघर्ष अब तक चल रहा है।
अभी भी जारी है संघर्ष
संसद के उपसभापति आचार्य यशी फुंचक का कहना है कि तिब्बत की आज़ादी को लेकर संघर्ष जारी है। विश्व स्तर पर तिब्बत की आज़ादी को लेकर आवाज़ बुलंद है और आगे भी यह मुहिम जारी रहेगी।