किसने दिया सबसे पहले जय भीम का नारा, क्या थी इसके पीछे की मुख्य वजह?

जय भीम शब्द का संबोधन पहली बार एक मुस्लिम व्यक्ति को देखकर आया था। उन्होंने जब मुस्लिम समाज के लोगों को देखा, मुस्लिम भाई एक दूसरे का अभिवादन करने के लिए ‘अस्सलाम-अलेकुम’ कहते थे। जिसे देखकर बाबू हरदास ने सोचा कि मुस्लिम भाईयों की तरह हमें भी एक दूसरे का अभिवादन करना चाहिए।

January 8, 2022 - 21:08
January 9, 2022 - 23:16
 0
किसने दिया सबसे पहले जय भीम का नारा, क्या थी इसके पीछे की मुख्य वजह?
जय भीम' का नारा देने वाले बाबू हरदास की 83वी जयंती- Photo :shutterstock

जय भीम का नारा  हाल फिलहाल में बहुत प्रचलित है। कई राजनीतिक पार्टियां आजकल जय भीम का स्लोगन इस्तेमाल करती हैं। जय भीम का नारा संविधान निर्माता डॉ. भीम राव अंबेडकर से संबंधित है। इस नारे को महाराष्ट्र के बाबू हरदास ने दिया है। इस नारे का इस्तेमाल मुख्य रूप से अम्बेडकरवादी संगठन, बहुजन समाज पार्टी, आज़ाद समाज पार्टी और वंचितों की आवाज़ उठाने वाली अन्य पार्टियां इसका भरपूर इस्तेमाल करती हैं।

कौन थे बाबू हरदास?

बाबू हरदास का पूरा नाम हरदास लक्ष्मणराव नागराले है। उनका जन्म 6 जनवरी 1904 को महाराष्ट्र के नागपुर जिले के कामठी गांव के महार जाति में हुआ था। जिसे कथित तौर पर नीची जाति माना जाता था। उनके पिता रेलवे में क्लर्क थे। उन्होंने मैट्रिकुलेशन की पढ़ाई नागपुर से की, साथ में संस्कृति का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था। वह एक दलित नेता, राजनेता और समाज सुधारक थे। डॉ. अंबेडकर को वो अपना आदर्श मानते थे, उनके सहयोगी थे और हमेशा उनके साथ खड़े रहते थे, उन्होंने डॉ. आंबेडकर के साथ तमाम आंदोलनों में रहें। बाबू हरदास मजदूरों के नेता रहें, बाद में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के जनरल सेक्रेटरी बनें। नागपुर कामठी के विधानसभा में सन्न 1937 में वो पहले MLA चुनें गए।

जय भीम का नारा कैसे आया?

असल में बाबू हरदास के मन में जय भीम शब्द का संबोधन पहली बार एक मुस्लिम व्यक्ति को देखकर आया था। उन्होंने जब मुस्लिम समाज के लोगों को देखा, मुस्लिम भाई एक दूसरे का अभिवादन करने के लिए ‘अस्सलाम-अलेकुम’ कहते थे जिसके जवाब में दूसरा मुस्लिम व्यक्ति भी ‘वालेकुम-सलाम’ कहता। जिसे देखकर बाबू हरदास ने सोचा कि मुस्लिम भाईयों की तरह हमें भी एक दूसरे का अभिवादन करना चाहिए।

लेकिन तभी उनके दिमाग में तुरंत एक विचार कौंध उठा कि आखिर अभिवादन में कहना क्या चाहिए? उनके मन में आया है कि हम लोग भी एक दूसरे से ‘‘जय भीम’’ का अभिवादन कहेंगे। इसके बाद उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि, मैं आप सभी लोगों से अभिवादन के तौर पर ‘जय भीम’ कहूँगा और आप उसके जवाब में ‘बल भीम’ कहना। तभी से यह अभिवादन शुरू हो गया। लेकिन अभी भी एक सवाल मन में कचोट रहा है कि अभिवादन के रूप में "जय भीम" के जवाब में "बल भीम" कहना!

असल में हुआ कुछ यूं कि शुरूआत में बहुजन समाज में जय भीम के संबोधन में बल भीम ही कहा जाता था। समय के साथ-साथ समाज के लोगों ने इसमें परिवर्तन कर दिया और उन्हें पता ही नहीं चला। वे बल भीम के बदले जय भीम ही बोलने लगे, जिसके कारण बल भीम प्रचलन से धीरे-धीरे गायब होता गया और जय भीम ने उसका स्थान ले लिया। तब से लेकर आज तक ‘जय भीम’ आभिवादन चल रहा है। जय भीम का यह नारा आज भी देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को एक धागे के रूप में आपस में बांधे रखने का काम करता है। अक्सर बहुजन समाज अपने मूलनिवासी होने का अहसास जय भीम के अभिवादन से करते हैं।

समाज सुधारक के रूप में उनका योगदान

बाबू हरदास 17 साल की उम्र में ही दलितों के बीच सामाजिक जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से नागपुर से प्रकाशित होने वाली 'महाराष्ट्र' नाम से साप्ताहिक पत्रिका की स्थापना की। उन्होंने साल 1922 में महार समाज संगठन की स्थापना करके महार समुदाय को संगठित करने का प्रयास किया। उन्होंने दलितों पर हो रहे अत्याचारों से बचाने के लिए असंगठित महार युवाओं को एक साथ लाने के लिए एक स्वैच्छिक कोर समूह और एक महार समाज पाठक का भी गठन किया। उन्होंने दलित महिलाओं को सशक्त, आत्मनिर्भर और मजबूत बनाने के लिए प्रशिक्षण केंद्र के रूप में एक महिला आश्रम खोला। साथ ही बीड़ी श्रमिकों को शोषण से बचाने के लिए उन्होंने सहकारी आधार पर बीड़ी का काम शुरू किया, जो गांव में बहुत सफल रहा।

हरदास तर्कहीन और अंधविश्वास रीति-रिवाजों के प्रबल विरोधी थे। वह दलित वर्गों के बीच उप-जाति में जकड़े हुए बाधाओं का कड़ा विरोध करते थे। उन्होंने महार समुदाय के 14वीं सदी के संत चोखामेला की पुण्यतिथि पर वार्षिक सामुदायिक रात्रिभोज की व्यवस्था की थी। वह मूर्ति पूजा के खिलाफ थे। उन्होंने 1927 में किसान फागुजी बंसोड़ की अध्यक्षता में रामटेक में अपने भाइयों के साथ एक बैठक आयोजित की। इस सभा में हरदास ने अपने लोगों को रामटेक के मंदिर में मूर्ति पूजा शुरू करने और वहां के गंदे तालाब में स्नान करने से रोकने का आह्वान किया। हालांकि, उन्होंने शंकर मुकुंद बेले नाम के एक व्यक्ति के नेतृत्व में अपने अनुयायियों के एक समूह को 2 मार्च 1930 को बी.आर. अम्बेडकर के सहयोग से कालाराम मंदिर प्रवेश सत्याग्रह में भाग लेने के लिए भेजा। उन्होंने कहां यह असमानता के खिलाफ था और मूर्तियों की पूजा नहीं करनी चाहिए।

शिक्षा क्षेत्र में उनका योगदान

हरदास दलितों की शिक्षा के प्रबल हिमायती थे। उन्होंने खुद मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की थी, जो उस समय दलितों के लिए एक दुर्लभ बात थी। उन्होंने महार समुदाय के कहने पर 1927 में कामठी में रात्रि पाठशालाएं शुरू कीं। उनके स्कूल में एक समय में 86 लड़के और 22 लड़कियां पढ़ सकते थे। उन्होंने लगभग उसी समय कामठी(नागपुर का एक गांव) में एक संत चोखमेला पुस्तकालय भी खुलवाया।

हरदास एक प्रभावशाली लेखक थे और उन्होंने ज्यादातर अपने लेखन कौशल का इस्तेमाल दबे-कुचले वर्गों में सामाजिक जागरूकता पैदा करने के लिए किया। उन्होंने समाज में बुराइयों के खिलाफ लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए 1924 में एक किताब 'मंडल महात्मे' लिखी। उन्होंने लोगों के बीच इस पुस्तक की फ्री प्रतियां बटवाई। इस पुस्तक ने लोगों पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाला और गांव के दलित लोगों ने हिंदू देवी-देवताओं पर आधारित नाटकों को देखना और उनका आनंद लेना बंद कर दिया। उन्होंने एक नाटक वीर बालक (बहादुर बच्चा) भी लिखा और लोगों में जागरूकता की एक नई लहर पैदा करने के लिए इसका मंचन किया। उन्होंने बाजार के गीत और चूल्हा के गीत लिखे और प्रकाशित किए। उनके लेख साप्ताहिक 'जनता' नामक पत्र में भी प्रकाशित हुए थे, जिसे अम्बेडकर ने संपादित किया था।

हरदास का राजनीतिक जीवन

हरदास साल 1928 में पहली बार डॉ. बी.आर. अम्बेडकर से मिले। हालाँकि उन्होंने अपनी सामाजिक गतिविधियाँ बहुत पहले शुरू कर दी थीं, लेकिन इस मुलाकात से उनके राजनीतिक जीवन को एक धक्का लगा।  उसी वर्ष डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने उनसे साइमन कमीशन के सामने अपनी गवाही देने का अनुरोध किया। बाद में वर्ष 1930-31 में दूसरे गोलमेज सम्मेलन के संबंध में जब अछूतों के वास्तविक नेतृत्व के बारे में सवाल उठे तो हरदास ने यूनाइटेड किंगडम के तत्कालीन प्रधानमंत्री रामसे मैकडोनाल्ड को एक तार भेजा, कि डॉ. बी.आर. अंबेडकर अछूतों के असली नेता और महात्मा गांधी नहीं हैं। उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में इस बारे में एक राय भी बनाई और विभिन्न अछूत नेताओं द्वारा मैकडॉनल्ड्स को कुल 32 तार भेजे।

बी.आर. अम्बेडकर की तरह, हरदास विधानसभाओं में दलित वर्गों की अधिक से अधिक भागीदारी चाहते थे। उन्होंने केंद्रीय प्रांतों और बरार के राज्यपाल से विधायी परिषद, जिला स्थानीय बोर्डों और नगर पालिकाओं में दलित वर्गों के सदस्यों को नामित करने की अपील की। वह 8 अगस्त 1930 को नागपुर में दलित वर्गों के सम्मेलन के मुख्य आयोजकों में से थे, जिसकी अध्यक्षता डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने की थी।  इस सम्मेलन में दलित वर्गों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल का प्रस्ताव पारित किया गया। इस सम्मेलन ने अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ का गठन किया और हरदास संघ के संयुक्त सचिव के रूप में चुने गए।  अखिल भारतीय दलित वर्ग का दूसरा सम्मेलन 7 मई 1932 को कामठी में हुआ और हरदास इसकी स्वागत समिति के अध्यक्ष थे। इस बैठक में उन्हें महासंघ के राष्ट्रीय निकाय के सचिव के रूप में चुना गया था।

हरदास 1936 में स्वतंत्र लेबर पार्टी (ILP) की केंद्रीय पार्टी (CP) और बरार शाखा के सचिव बने। उन्होंने 1937 में नागपुर-कामठी निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 1938 में उन्हें ILP की CP और बरार शाखा के अध्यक्ष के रूप में भी नामित किया गया था। 1939 में वे क्षय रोग से बीमार पड़ गए और 12 जनवरी 1939 को उनकी मृत्यु हो गई।

हरदास ने अपनी मृत्यु के बाद भी दलित वर्गों पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव छोड़ा। मून कहते हैं कि "जैसे धूमकेतु दिखाई देता है, पूरे आकाश में प्रकाश लाता है और फिर तुरंत गायब हो जाता है, वैसे ही हरदास के साथ हुआ।" उनके द्वारा गढ़ा गया अभिवादन वाक्यांश ‘जय भीम’ दलितों के बीच अभिवादन का एक सामान्य शब्द बन गया है। यह भारत में एक दलित प्रमुख और राष्ट्रीय स्तर की पार्टी, बहुजन समाज पार्टी का औपचारिक अभिवादन वाक्यांश भी है। बाद में कई अन्य पार्टियों ने भी जय भीम को औपचारिक वाक्यांश बना लिया जैसे आज़ाद समाज पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी-लेनिनवादी), राष्ट्रीय लोक दल आदि। 2016 में निर्माता धनंजय गलानी ने "बोले इंडिया जय भीम" नामक एक फिल्म बनाई जिसमें हरदास के जीवन और कार्य को दर्शाया गया।

The LokDoot News Desk The lokdoot.com News Desk covers the latest news stories from India. The desk works to bring the latest Hindi news & Latest English News related to national politics, Environment, Society and Good News.