आखिर क्यों नही जलाया जाता साधु संतो का शव

अखिल भारतीय परिषद् के प्रमुख अध्यक्ष आचार्य नरेन्द्र गिरी की अंतिम यात्रा के बाद उन्हें भू समाधि दिलवाई गई। हिंदू धर्म से संबंध रखने के बाद भी उनके शव को जलाया नही गया। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार एक गुरु या संत, आम आदमी की तरह जीवन की काम, मोह वासनाओं में लिप्त नही होते हैं। संत बनने के पहले प्रकरण में ही उन्हें सभी आसक्तियों का त्याग करना होता है। ऐसे में जीवन के अंतिम पड़ाव में उन्हें अग्नि की शुद्धता की आवश्यकता नही पड़ती।

September 22, 2021 - 14:33
December 10, 2021 - 09:05
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आखिर क्यों नही जलाया जाता साधु संतो का शव
Group of aghori saints at Varanasi

मनुष्य जीवन शाश्वत् नहीं है, हर मनुष्य को एक न एक दिन संसार से जाना ही होता है। हिंदू धर्म प्राचीनकाल से ही रीति-रिवाजों ,परंपराओ और संस्कृति का धनी माना जाता है। साथ ही इनका दृढ़ता से पालन भी किया जाता है।


आत्मा की शुद्धि क्यों है जरूरी ?

माना जाता है कि आत्मा अजर ,अमर, अविनाशी है ऐसे में जब भी आत्मा एक शरीर धारण कर ,मनुष्य योनि में उतरती है तब वह कई प्रकार के छल , कपट, मोह, लोभ वासनाओ से तृप्त होकर दूषित हो जाती है।

ऐसी स्थिति में जब शरीर आत्मा को छोडकर जाती है तब उसके शव को अग्नि के हवाले कर सभी कलुषता और आसक्तियों को दूर कर शुद्ध किया जाता है। 
पर शव जलाने की अंतिम क्रिया आम मनुष्यों के लिए होती है। 

संतो को दिलवाई जाती है भू - समाधि:

संतो का पद आम मनुष्य से काफी ऊपर होता है। संत जीवन धारण करने का पहला नियम ही सांसारिक आसक्तियों से खुद को दूर कर लेना होता है ऐसे में उनकी आत्मा को अग्नि शुद्धि की आवश्यकता नही पड़ती। 
उनके जीवन भर के तप, त्याग को सम्मान देते हुए ईश्वर का दूत मान उन्हें कमल की भाँति बिठाकर भू- समाधि दिलवाई जाती है।

निष्कर्षतः 

ऐसी ही मान्यता नवजात शिशुओं के संदर्भ में दी जाती है, कि वह ईश्वर का ही रुप होते हैं ऐसे में सांसारिक मोह में पड़ने से पहले ही यदि उनकी मृत्यु हो जाए तो उनके शव को दफना या तेज जल बहाव में बहा दिया जाता है।

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