फांसी से एक दिन पहले भगत सिंह

हमारी पीढ़ी का सबसे बड़ा दोष ये है की हमने भगत सिंह को ना तो पढ़ा ,ना ही हम भगत को जानते है, ना हम भगत सिंह की तरह लड़ पाए है अपने अधिकारों के लिए । आज के माहौल में भगत सिंह के विचारो को जानना हमारे लिए और भी जरूरी होता जा रहा हैं।

March 22, 2021 - 10:37
January 2, 2022 - 06:21
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फांसी से एक दिन पहले भगत सिंह

आज 22 मार्च है आज का दिन किसी भी सूरत से किसी भी कीमत पर किसी के लिए एतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण नहीं है और न ही इसका किसी भी व्यक्ति के लिए कोई महत्व है , कल का दिन 23मार्च का दिन होगा कल का दिन इस देश के हर राजनीतिक दल के लिए अतिमहत्वपूर्ण दिन होगा , हर नेता अपने सोशल मीडिया हैंडल से भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदान के विषय में , उनके योगदान के विषय में और उनके और उनके साथियों को भारत रत्न देने के विषय में बात करेगा और फिर 24 मार्च को हम सब सामूहिक रूप से भगत सिंह को भूल जायेंगे अगले वर्ष फिर से उनके शहादत दिवस पर उन्हें याद और नमन करने के लिए।

भगत सिंह कौन थे क्या वो हंसते हुए फांसी पर चढ़ने वाले क्रांतिकारी मात्र थे या वो पंजाब के शेर थे जिन्हे बहुत से गानों में , सिनेमा में याद किया जाता रहा है और जिन्हे सिर्फ बम बंदूक तक सीमित कर दिया गया है , लेकिन वो क्रांतिकारी आंदोलन का सबसे सजीव बुद्धिजीवी थे जो आंदोलनजीवी भी था और जो मानता था विचार कभी नहीं मरते। 

भगत सिंह कहते थे : -

किसी भी इंसान को मारना आसान है, परन्तु उसके विचारों को नहीं। महान साम्राज्य टूट जाते हैं, तबाह हो जाते हैं, जबकि उनके विचार बच जाते हैं।”~ भगत सिंह

मैं इतिहास का छात्र हूं और इसीलिए मैं भगत सिंह को आज याद कर रहा हूं क्या कारण है की मैं भगतसिंह को आज याद कर रहा हूं ना की कल याद कर जब सब भगत को कल याद करेंगे और उत्साहित होकर अज्ञानता में जश्न मनाएंगे एक क्रांतिकारी के विचारो को भूल जाने के मासूम निर्ममता में। मैं भगत सिंह को आज याद इसलिए करूंगा क्योंकि आज के ही दिन उन्होंने मार्च 1931 में एक पत्र लिखा था उसे आज पढ़िए और भगत सिंह को समझिए।

हमारी पीढ़ी का सबसे बड़ा दोष ये है की हमने भगत सिंह को न तो पढ़ा ना ही हम भगत को जानते है ,ना हम भगत सिंह की तरह लड़ पाए है अपने अधिकारों के लिए । आज के माहौल में भगत सिंह के विचारो को जानना हमारे लिए और भी जरूरी होता जा रहा हैं। 

भगत सिंह ने अपने साथियों को लिखा था : -

साथियों,

स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता।

मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शो और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है-इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हरगिज नहीं हो सकता।

आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फांसी से बच गया तो वो जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिह्न मद्धिम पड़ जाएगा या संभवत: मिट ही जाए। लेकिन दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तान की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी।

हां, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी, उनका हजारवां भाग भी पूरा नहीं कर सका। अगर स्वतंत्र जिंदा रह सकता तब इन्हें करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता।

इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फांसी से बचे रहने का नहीं आया। मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है। कामना है कि यह और नजदीक हो जाए।

आपका साथी,

भगत सिंह

हमे भगत सिंह को नहीं पूजना है ना ही हीरो बना देना है हमे उन्हें समझने का प्रयत्न करना चाहिए। हमारे भगत सिंह जो सबको अपने विचार में समाहित करना चाहते थे । फांसी से पहले एक व्यक्ति आंदोलन और देश के विषय में कितना सोचता था और आज का हाल .... 

Abhishek Tripathi तभी लिखूंगा जब वो मौन से बेहतर होगा।