Vijay Diwas 2021: 50वें विजय दिवस का स्वर्णिम इतिहास, भारत और बांग्लादेश संबंधों की जीत का उत्सव।

हर वर्ष मनाया जाने वाला विजय दिवस साल 1971 मे पाकिस्तान पर भारत की जीत का जश्न है। जिसे विजय दिवस के नाम से प्रतिवर्ष मनाया जाता है। विजय दिवस को भारतीय सेना की वीरता और शौर्य का प्रतीक माना जाता है।

December 16, 2021 - 15:39
December 16, 2021 - 15:46
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Vijay Diwas 2021: 50वें विजय दिवस का स्वर्णिम इतिहास, भारत और बांग्लादेश संबंधों की जीत का उत्सव।
विजय दिवस- Photo: gettyimages

यह 1971 के युद्ध में भारत की पाकिस्तान पर निर्णायक जीत को चिह्नित करता है। वर्ष 2021 बांग्लादेश के साथ-साथ भारत के ऐतिहासिक महत्व व स्वर्णिम इतिहास को भी प्रदर्शित करता है। यह वर्ष बांग्लादेश के 50वें विजय दिवस समारोह का है जो उनके वीरता और संघर्ष का प्रतीक है। भारत-बांग्लादेश के कुटनीतिक और राजनीतिक संबंध हमेशा से अच्छे रहे हैं। बांग्लादेश की इस खुशी में भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी बांग्लादेश के 50वें वर्ष दिवस के समारोह में शामिल होने के लिए 15 से 17 दिसंबर तक बाग्लादेश में अपनी राजकीय यात्रा पर हैं। आज ही के दिन यानी 16 दिसंबर 1971 को आधुनिक हथियारों और सैन्य साजोसमान से लैस पाकिस्तान के 92,000 से अधिक सैनिकों ने भारतीय सेना के अदम्य साहस और वीरता के आगे घुटने टेक दिए थे और इसी के साथ दुनिया के मानचित्र में बांग्लादेश का उदय हुआ। यही दिन 16 दिसंबर का दिन था जिसे भारत में हर साल विजय दिवस (Vijay Diwas) के रूप में मनाया जाता है। 

प्रधानमंत्री मोदी ने किया सैनिकों की बहादुरी और शहादत को याद

आज विजय दिवस के मौके पर भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट करते हुए सैनिकों की शहादत को याद किया।

क्यों मनाया जाता है विजय दिवस? क्या है विजय दिवस का इतिहास?

हर वर्ष मनाया जाने वाला विजय दिवस साल 1971 मे पाकिस्तान पर भारत की जीत का जश्न है। जिसे विजय दिवस के नाम से प्रतिवर्ष मनाया जाता है। विजय दिवस को भारतीय सेना की वीरता और शौर्य का प्रतीक माना जाता है। 1947 में भारत के विभाजन के साथ पाकिस्तान का जन्म हुआ। इसके साथ ही कई और देशों का भी जन्म हुआ। जहां बंगाल व आसाम के कुछ क्षेत्रों को पूर्वी पाकिस्तान का नाम दिया गया।

पूर्वी पाकिस्तान नाम दिए जाने के बाद से स्थानीय स्तर पर बंगाली संस्कृति व भाषा के आधार पर पाकिस्तान में दुर्व्यवहार होने लगा तथा वहां के लोगों पर उर्दू भाषा अपनाने पर जोर दिया गया तथा लोगों की संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया गया। पूर्वी पाकिस्तानी में रह रहे लोगों ख़ासकर बंगाली हिन्दुओं को प्रताड़ित किया जाता रहा, उनके मंदिरों को धवस्त किया जाने लगा। इन सब घटनाओं के परिणामस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान में एक जन आक्रोश पैदा होने लगा तथा इस आक्रोश को चिंगारी 1970 में हुए पाकिस्तान के आम चुनावों में हुए धोखे की बदौलत मिली। दरअसल 1970 में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए जिनमें नेशनल असेंबली की 300 सीटों के लिए मतदान हुआ जिसमे से 162 सीटें पूर्वी पाकिस्तान में थी। बंगबंधु नाम से मशहूर शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टी आवमी लीक को 160 सीटों के साथ बहुमत हासिल हुआ।  जबकि ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो की पार्टी PPP को केवल 81 सीटें ही मिली। इस तहत निश्चित रूप से शेख़ मुजीबुर रहमान की सत्ता निश्चित थी परन्तु ऐसा नहीं हुआ।

शेख को सत्ता सौंपने की बजाए जनरल टिक्का खान को पूर्वी पाकिस्तान में पूरी आर्मी के साथ लोगों का दमन करने भेजा गया तथा 25 मार्च 1971 कि रात को ओप्रशन सर्च लाईट के तहत एक भयानक नरसंहार देखने को मिला। इस ऑपरेशन के तहत लगभग 30 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। वहीं विपक्ष का दमन करने के लिए शेख मुजीबुर्रहमान को जेल में डाल दिया गया। इस बीच अपनी जान बचाने के लिए एक बड़ी संख्या में लोग शरणार्थी बनकर भारत आ गए। शरणार्थी बनकर भारत आए 80000 शरणार्थियों को भारत ने शरण दी।
उन विकट परिस्थितियों में भारत सरकार ने उन्हें अपने देश में पनाह देने और पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की स्वतंत्रता की मांग का समर्थन करने तथा वित्तीय व सैन्य सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया।


जिसके बाद अप्रैल 1971 में बांग्लादेश से मुक्त सेनानियों के एक समूह मुक्तिवाहिनी का भारत ने समर्थन और सहयोग किया। इस सहयोग की वज़ह से पाकिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 को भारत के सैन्य ठिकानों पर हमले शुरू किए और भारत पर युद्ध की घोषणा कर दी। जिसका भारतीय सेना ने करारा जवाब दिया और 16 दिसंबर 1971 तक चले इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना के लगभग 92000 सैनिकों ने अपने हथियार डालते हुए भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाज़ी ने भारतीय सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने हार मान ली। उसी दिन, 16 दिसंबर को जनरल नियाज़ी ने आत्मसमर्पण के कागजात पर हस्ताक्षर किए। इस तरह बांग्लादेश अस्तित्व में आया। उस दिन के बाद से यह दिन विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।

भारत और बांग्लादेश के सम्बन्ध:  भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय संबंधों की स्थापना के 50 वर्ष इस विजय दिवस  के मौके पर पूरे हो गए हैं। यदि इन 50 वर्षों का इतिहास देखा जाए, तो दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं, जो दोनों देशों की घनिष्ठता को दिखाता है।

2021 में 'विजय दिवस' के 50 वर्ष पूरे होने के साथ-साथ बांग्लादेश के ' मुक्ति संग्राम ' को भी 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं , जिसके उपलक्ष मे बांग्लादेश के वर्तमान  राष्ट्रपति एम. अब्दुल हमीद ने भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को आमंत्रित भी किया है।  आर्थिक पहलुओं की बात की जाए तो  समय-समय पर भारत बांग्लादेश की आर्थिक रूप से सहायता करता आया है। और हाल ही में बांग्लादेश की हुकूमत द्वारा दिए गए बयान को आधार मानकर सोचें तो यह कहा जा सकता है कि भविष्य मे भी भारत और बांग्लादेश के बीच संबंध मैत्रीपूर्ण रहेंगे। 

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