गेहूं के बाद अब सरकार का चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध: महंगाई को लेकर चिंतित दिख रही मोदी सरकार
सरकार ने चीनी के निर्यात की सीमा तय करने के साथ-साथ निर्यात पर भी रोक लगा दी है। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने इससे संबंधित अधिसूचना 24 मई को जारी किया है। अब चीनी के निर्यात की अनुमति खाद्य मंत्रालय के चीनी निदेशालय से लेनी होगी।
केंद्र सरकार ने 1 जून से चीनी के निर्यात पर रोक लगा दी है जो 31 अक्टूबर तक जारी रहेगी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि चीनी के दाम में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है और न ही चीनी के उत्पादन में कमी आई है। ऐसे में सवाल ये है कि सरकार का ये फैसला क्यों सामने आया है। दरअसल सरकार भविष्य को देखते हुए चीनी का स्टॉक रखना चाहती है ताकि देश में चीनी पर महंगाई की मार न देखी जा सके और देशवासियों की चाय से चीनी गायब न हो पाए। ऐसे में सरकार एहतियात के तौर पर यह कदम उठा रही है।
चीनी के निर्यात के लिए लेनी होगी अनुमति
सरकार ने चीनी के निर्यात की सीमा तय करने के साथ-साथ निर्यात पर भी रोक लगा दी है। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने इससे संबंधित अधिसूचना 24 मई को जारी की है। अब चीनी के निर्यात की अनुमति खाद्य मंत्रालय के चीनी निदेशालय से लेनी होगी। सरकार का कहना है कि घरेलू स्तर पर उपलब्धता और दरों में स्थिरता बनाए रखने के लिए यह कदम उठाया गया है।
अक्टूबर तक ही निर्यात पर रोक क्यों ?
दरअसल समझने की बात यह है कि गन्ने का क्रसिंग सीजन सितंबर अक्तूबर होता है, लिहाज़ा नवंबर में चीनी की नई खेप आएगी। इसलिए सरकार चाहती है कि 1 अक्टूबर 2022 को देश का चीनी भंडार कम से कम 60 लाख टन हो ताकि नवंबर तक बिना नई चीनी के काम चले। इसे ही अर्थशास्त्र में ओपनिंग स्टॉक कहते हैं। सरकार के इस फैसले से यह सुनिश्चित होगा कि सितंबर 2022 की समाप्ति तक चीनी का भंडार 60 से 65 टन बचा रहे, जो घरेलू दो-तीन महीने का जरूरी भंडार है।
क्या है ओपनिंग स्टॉक?
अर्थशास्त्र में पिछले साल का बचा हुआ स्टॉक इस साल का ओपनिंग स्टॉक कहलाता है। स्टॉक रखकर देश में सरकार चीनी की महंगाई रोकने की तैयारी में है तथा सरकार ने एहतियातन यह कदम उठाया है।